Jaya Ekadashi 2020: प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्लपक्ष के दिन जया एकादशी पड़ता है. सनातन धर्म में इस एकादशी व्रत का बड़ा महत्व है. मान्यता है कि इस दिन व्रत एवं श्रीहरि की पूजा तथा रात्रि जागरण करने वाला सारे पापों से मुक्ति पाता है और उसे भूत-पिशाच की योनी में जन्म नहीं लेना पड़ता. जया एकादशी का व्रत एवं पूजा करने वाले के घर में सुख-शांति एवं समृद्धि आती है. पौराणिक मान्यतानुसार दुख, दरिद्रता एवं तमाम कष्टों से मुक्ति पाने के लिए जया एकादशी का व्रत करना चाहिए. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 5 फरवरी यानी आज जया एकादशी का पर्व मनाया जा रहा है.
हिन्दू धर्म में माघ शुक्लपक्ष के दिन की एकादशी को ही जया एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि यह व्रत करने से उपवासी तमाम पापों से मुक्त होकर मृत्युपर्यंत मोक्ष को प्राप्त होता है, तथा इस व्रत के प्रभाव से भूत-पिशाच आदि बुरी योनियों से भी मुक्त हो जाता है. एक अन्य मान्यता के अुनसार जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करता है, वह हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करता है.
कैसे करें पूजा एवं व्रत:
एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें. मंदिर के सामने एक चौकी पर नया लाल वस्त्र बिछायें एवं उस पर विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें. एक तांबे के लोटे में गंगाजल, तिल, रोली, अक्षत एवं मुद्रा डालें और उस पानी की कुछ बूंदें पूजा स्थल के चारों ओर छिड़कें. फिर इसी लोटे को कलश स्वरूप स्थापना करें. इसके पश्चात श्रीहरि की के सामने शुद्ध घी की दीप प्रज्जवलित करें एवं धूप जलाने के बाद पुष्प अर्पित करें. अब तिल का भोग लगाएं एवं तुलसी की पत्ती अर्पित करें. इसके पश्चात ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ का कम से कम 21 बार जाप करने के बाद विष्णु जी की आरती उतारें. तिल का दान करने के बाद सायंकाल के समय विष्णुजी की पूजा कर फलाहार ग्रहण करें. अगले दिन प्रातःकाल स्नान करने के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान-दक्षिणा देने के बाद व्रत का पारण करें.
जया एकादशी व्रत (5 फरवरी-2020) और शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 4 फरवरी 2020, रात 09.49 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 5 फरवरी 2020 को रात 09.30 मिनट तक
पारणः 6 फरवरी 2020 प्रातः 07.07 मिनट से 09.18 मिनट तक
पौराणिक कथा:
एक दिन देवराज इंद्र नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे. इस खुशी में गंधर्व गान कर रहे थे. इन गंधर्वों में पुष्पदंत, उसकी कन्या पुष्पवती, चित्रसेन, उसकी स्त्री मालिनी, बड़ा पुत्र पुष्पवान और छोटा पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे. गंधर्व कन्या पुष्पवती माल्यवान पर मोहित हो गई और उस पर काम-बाण चलाने लगी. उसने अपने रूप लावण्य से माल्यवान को वश में कर लिया. वे दोनों इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गान तो कर रहे थे, परंतु उनका चित्त भ्रमित होने से स्वर ताल में भटक रहे थे. यह देख देवराज इंद्र ने इसे अपना अपमान मानते हुए क्रोधित होकर उन्हें शाप दिया, हे मूर्खों तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, अब तुम दोनों पिशाच रूप में मृत्युलोक में ही रहो और अपने कर्मों का फल भोगो.
इंद्र का शाप सुनकर वे बहुत दु:खी हुए. दोनों हिमालय पर्वत पर जाकर दु:खपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे. उन्हें गंध, रस तथा स्पर्श आदि किसी बात का ज्ञान नहीं था. एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा, "पिछले जन्म में हमने ऐसा कौन-सा पाप किया था कि हमें पिशाच की योनि प्राप्त हुई. उन्होंने तय किया कि अब वे कोई पाप नहीं करेंगे. संयोगवश माघ मास में शुक्लपक्ष की एकादशी का दिन आया. दोनों ने भोजन नहीं किया. फल-फूल खाकर पूरा दिन गुजार दिया. सायंकाल के समय वे पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गये. उस समय सूर्य अस्त हो रहे थे. दोनों ने ठंड और थकान के कारण एक दूसरे से चिपके-चिपके पूरी रात जागकर गुजार दी. जया एकादशी के उपवास एवं रात्रि जागरण से अगले दिन वे पिशाच योनि से मुक्ति पा गये. देवराज इंद्र ने उन्हें पुनः स्वीकार लिया.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.