Janmashtami 2025: भगवान श्री कृष्ण का जन्म किस नक्षत्र में हुआ था? जानें उनके जन्म और रोहिणी नक्षत्र का गूढ़ संबंध
कृष्ण जन्माष्टमी (Photo: X|@HareKrsnaTV)

Janmashtami 2025: कृष्ण जन्माष्टमी एक जीवंत और उल्लासपूर्ण हिंदू पर्व है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का प्रतीक है. जो हिंदू धर्म के सबसे पूज्य और प्रिय देवताओं में से एक माने जाते हैं. यह त्योहार न केवल भारत में बल्कि विश्वभर के हिंदू समुदायों द्वारा अपार श्रद्धा, भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है. जन्माष्टमी (Janmashtami 2025) सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह ब्रह्मांडीय संतुलन और दिव्यता का उत्सव भी है. इस दिन का ज्योतिषीय महत्व भी अत्यंत विशिष्ट है, क्योंकि श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, जो वैदिक ज्योतिष के अनुसार अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है. इसलिए हर साल कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है. इस साल जन्माष्टमी 15 अगस्त को मनाई जाएगी. यह भी पढ़ें: Janmashtami 2025: 15 या 16 अगस्त कब है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी? जानें किस दिन है छुट्टी

कृष्ण जन्माष्टमी और रोहिणी नक्षत्र का गूढ़ संबंध

कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व को केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि खगोलीय दृष्टिकोण से भी एक अत्यंत विशिष्ट और दिव्य घटना माना जाता है. इस दिन रोहिणी नक्षत्र की उपस्थिति, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को एक ब्रह्मांडीय संयोग और आध्यात्मिक घटना के रूप में स्थापित करती है.

रोहिणी नक्षत्र का महत्व

वैदिक ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में से एक, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि में स्थित होता है और इसका स्वामी चंद्रमा है. इसका प्रतीक ‘रथ’ है और यह सृष्टिकर्ता प्रजापति ब्रह्मा से जुड़ा हुआ माना जाता है. यह नक्षत्र विकास, उर्वरता, समृद्धि और रचनात्मकता का प्रतीक है. अपने पोषणकारी और संवेदनशील गुणों के कारण इसे अत्यंत शुभ और जीवनदायक माना जाता है. श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में होना इस खगोलीय घटना को विशेष अर्थ देता है. यह संयोग दर्शाता है कि उनका आगमन ब्रह्मांडीय संतुलन और प्रेम, करुणा व मार्गदर्शन की शक्ति के रूप में हुआ. एक ऐसी शक्ति जो सृष्टि को पोषित करने और धर्म की स्थापना के लिए अवतरित हुई.

जन्माष्टमी का ज्योतिषीय संयोग

कृष्ण जन्माष्टमी हर वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था, जब रोहिणी नक्षत्र प्रभाव में था. यह विशिष्ट समय केवल खगोलीय दृष्टि से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है. कहा जाता है कि इस संयोग के दौरान आध्यात्मिक ऊर्जा चरम पर होती है, जो भक्ति, ध्यान और साधना के लिए एक अत्यंत अनुकूल क्षण प्रदान करती है.

रोहिणी और कृष्ण—एक दिव्य सामंजस्य

जैसे रोहिणी नक्षत्र पोषण, सौंदर्य और रचनात्मकता का प्रतीक है, वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण जीवन में प्रेम, धैर्य, करुणा और संतुलन का सजीव स्वरूप हैं. यह खगोलीय और आध्यात्मिक मेल जन्माष्टमी को केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ने का एक पवित्र अवसर बना देता है.

कृष्ण और रोहिणी नक्षत्र का दिव्य संबंध

रोहिणी नक्षत्र की प्रतीकात्मकता भगवान श्रीकृष्ण के जीवन, शिक्षाओं और आध्यात्मिक स्वरूप तक विस्तारित होती है. श्रीकृष्ण, जो भगवद् गीता में अपने उपदेशों के माध्यम से धर्म, कर्म और भक्ति का मार्ग दिखाते हैं, एक ऐसे मार्गदर्शक और गुरु हैं जो आत्मा को ज्ञान से प्रकाशित करते हैं. रोहिणी, जो पोषण, रचनात्मकता और विकास का प्रतिनिधित्व करता है, उन ऊर्जाओं का प्रतीक है जिन्हें कृष्ण अपने भक्तों को प्रदान करते हैं. चाहे वह आध्यात्मिक बल हो, प्रेम की शक्ति या जीवन में संतुलन का बोध.

रोहिणी नक्षत्र का पोषणकारी पक्ष कृष्ण के उस रूप को दर्शाता है जहाँ वे रक्षक, पालनकर्ता और करुणा के प्रतीक हैं. उनके बचपन की लीलाएं जैसे पूतना वध, कालिया नाग को वश में करना, और गोवर्धन पर्वत उठाना, दिखाते हैं कि वे न केवल भक्तों की रक्षा करते हैं, बल्कि उन्हें भय, अन्याय और अज्ञान से मुक्ति भी दिलाते हैं.