Holi 2020: होली (Holi) भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं मस्ती भरा पर्व है, जो बसंत के रंगीन मौसम में मनाया जाता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन मास (Falgun Maas) रंगों के पर्व (Festival of Colors) के रूप में मनाया जाता है. देश के अधिकांश क्षेत्रों में होली दो दिनों तक मनायी जाती है. भारत और नेपाल में इसकी मस्ती और धूम देखते बनती है. होली के पहले दिन होलिका जलाई जाती है, जिसे होलिका-दहन (Holika Dahan) कहते हैं. होली को राग-रंग का पर्व भी कहा जाता है, यहां राग का अर्थ संगीत और रंग का अर्थ रंग है, यानी रंग और संगीत के संग मस्ती भरा पर्व. चूंकि यह फाल्गुनी मास में मनाया जाता है, इसलिए इस पर्व को फाल्गुनी का नाम भी दिया जाता है. देश के कुछ हिस्सों में बसंत पंचमी से ही होली का पर्व शुरु हो जाता है. जिस तरह भारत विभिन्न जाति, भाषा, संस्कृति एवं समुदायों का देश है, इसलिए यहां होली के पर्वों में भी तमाम विभिन्नताएं देखने को मिलती है. होली की कुछ इन्हीं विभिन्नताओं (Holi Traditions) की बात हम यहां कर रहे हैं.
जयपुर का हाथी महोत्सव
‘पिंक सिटी’ के नाम से मशहूर जयपुर शहर में भी होली के तमाम रंग देखने को मिलते हैं. होली के ठीक एक दिन पूर्व रामबाग पोलोग्राउंड पर पर्यटन विभाग के सौजन्य से हाथी महोत्सव मनाया जाता है. इस महोत्सव में शामिल होने वाले हाथियों को विविध रंगों एवं कढ़ाईदार वस्त्रों से सजाया जाता है. इसके बाद मधुर संगीत की धुनों के साथ हाथी रैंप वॉक करते है. इस महोत्सव को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक यहां आते हैं. यहां भी बसंत पंचमी से होली का पर्व शुरु हो जाता है.
बरसाने की लट्ठमार होली
उत्तर भारत विशेषकर बरसाने की लट्ठमार होली भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में मशहूर है. होली के दिन रंगों और अबीर-गुलाल की वर्षा के बीच गांव की महिलाएं पुरुषों को लट्ठों से पीटती हैं, वहीं पुरुष लट्ठों के आक्रमण को अपने ढाल पर लेकर खुद को बचाने की कोशिश करते हैं. इस बीच दोनों के बीच हंसी-ठिठोली होती रहती है.
होली और भांग
उत्तर-पूर्व भारत में होली के संदर्भ में एक कहावत मशहूर है कि ‘क्या भांग के बिना भी होली की कल्पना की जा सकती है? ’ वस्तुतः यहां भांग को होली का अहम हिस्सा माना जाता है, क्योंकि भांग मिली ठंडाई, भांग के पकौड़ों के साथ होली की मस्ती दुगनी हो जाती है. हांलाकि भारत में भांग का सेवन अवैध है, लेकिन होली पर धार्मिक महत्व होने के कारण इस दिन इसका खुलकर सेवन किया जाता है. यह भी पढ़ें: Chhoti Holi 2020: कब है होलिका दहन और धुलेंडी, जानें होली के दिन कैसे खिल जाते हैं दिल
बंगाल की ‘डोल यात्रा’
बंगाल में होली के दिन डोल-यात्रा निकालने की पुरानी परंपरा है. यह उत्सव बंगाल में होली से एक दिन पहले मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं लाल किनारी वाली पारंपरिक सफेद साड़ी पहनकर शंख बजाते हुए राधा-कृष्ण की प्रतिमा को एक डोले पर लेकर प्रभात-फेरी का आयोजन करती हैं. यहां डोल शब्द से आशय झूला होता है. इस दिन अबीर-गुलाल से होली खेली जाती है.
इन बातों का भी रखें ध्यान
होली के दिन सिंथेटिक रंगों के बजाय टेशू के फूल अथवा हर्बल रंगों का इस्तेमाल करें, जो आपकी त्वचा को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाती. इसके साथ ही सड़कों पर चलने वाले भी रंग नहीं फेंके, क्योंकि इससे उनके बदन में जलन हो सकती है. इसके अलावा जिन पारंपरिक रंगों (टेश्यू के फूल, अबीर, गुलाल) का इस्तेमाल होली खेलने के लिए करते रहे हैं, उन्हीं रंगों का इस्तेमाल करें, केमिकल रंगों, पेंट्स, वार्निश गुब्बारों आदि का इस्तेमाल आपके साथ-साथ दूसरों के लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकते हैं.