Gudi Padwa 2019: गुड़ी पड़वा पर इस विधि से करें पूजा, सारी मनोकामनाएं होंगी पूरी

दक्षिण भारत के अनेकों भूभागों में मनाये जानेवाले ‘गुड़ी पड़वा’ को यदि शाब्दिक रूप से देखें तो ‘गुड़ी’ को ‘ध्वज’ यानि ‘पताका’ कहते हैं, जबकि ‘पड़वा’ प्रतिपदा तिथि को कहा जाता है. इसलिए इस दिन लोग अपने घरों में गुड़ी टांगते हैं. द

गुड़ी पड़वा 2019 (Photo Credits-Facebook)

Gudi Padwa 2019: हिंदू पंचांग (Hindu Panchang) और अन्य धार्मिक शास्त्रों में चैत्र मास (Chaitra) की शुक्ल प्रतिपदा को वर्ष का सबसे शुभ दिन माना गया है. संपूर्ण भारत में इस दिन को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, और तेलंगाना में ‘गुड़ी पड़वा’ (Gudi Padwa) अथवा ‘युगादी’ (Ugadi) के नाम से तो गोवा और केरल में ‘संवत्सर पड़वो’, कश्मीर में ‘नवरेह’, मणिपुर में ‘साजिबू नोंग्मा पैन्बा’ अथवा ‘मीटीई चेराओबा’ तो उत्तर भारत में नौ दिन की ‘चैत्र नवरात्रि’ (Chaitra Navratri) के पहले दिन की ‘शक्ति पूजा’ होती है.

दक्षिण भारत के अनेकों भूभागों में मनाये जानेवाले ‘गुड़ी पड़वा’ को यदि शाब्दिक रूप से देखें तो ‘गुड़ी’ को ‘ध्वज’ यानि ‘पताका’ कहते हैं, जबकि ‘पड़वा’ प्रतिपदा तिथि को कहा जाता है. इसलिए इस दिन लोग अपने घरों में गुड़ी टांगते हैं. दक्षिण भारत में बहुत सी जगहों पर इस दिन को ‘उगादी’ के नाम से भी सेलिब्रेट किया जाता है.

मान्यता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की शुरुआत की थी, इसलिए इसे ‘नव संवत्सर’ के रूप में भी मनाया जाता है. ‘गुड़ी’ को ‘ब्रह्मध्वज’ (भगवान ब्रह्मा का ध्वज) भी माना जाता है. कुछ लोग इसे इंद्रध्वज (इंद्र का ध्वज) भी कहते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने के प्रतीक के रूप में भी गुड़ी फहराते हैं. यह भी पढ़ें: Happy Gudi Padwa 2019 Wishes: दोस्तों व परिवार वालों को भेजें ये शानदार WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, Quotes और दें गुड़ी पाड़वा की शुभकामनाएं

कहानी ‘गुड़ी पड़वा’ की

जिस तरह से अलग-अलग जगहों पर इस पर्व के नाम बदल जाते हैं, वैसे ही इस पर्व की कहानी भी अलग-अलग है. ‘गुड़ी पड़वा’ से जुड़ी एक कहानी अनुसार, एक समय दक्षिण भारत में एक बहुत सशक्त मगर दुष्ट राजा बालि राज्य करता था. प्रजा उससे आतंकित रहती थी. वनवास काल में श्रीराम की मुलाकात बालि के भाई सुग्रीव से हुई, तो श्रीराम को बालि की दुष्टता की सारी कहानी ज्ञात हुई. उन्होंने युद्ध करके इसी दिन बालि का वध किया था. बालि के कुशासन से मुक्ति पाने के उपलक्ष्य में लोगों ने घर-घर में विजय पताका (गुड़ी पड़वा) फहराई. यह परंपरा आज तक चली आ रही है.

इसी पर्व से जुड़ी एक कहानी यह भी है कि किसी जमाने में शालिवाहन नामक एक कुम्हार व नगर के लोग कुछ साकों के अत्याचार से हमेशा परेशान रहते थे. तब कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी से एक पूरी सेना बनाई, व उन पर दिव्य जल छिड़क कर उन्हें जीवित कर दिया. फिर इसी सेना के सहारे शालिवाहन ने शत्रुओं का वध कर दिया. राजा शालिवाहन साकों का वध करके अपने नगर में आये तो लोगों ने जीत का प्रतीक स्वरूप घरों में विजय पताका फहराई.

इस विधि से करें पूजा 

मान्यता है कि ‘गुड़ी पड़वा’ के दिन अगर नीचे लिखी बातों को अपने जीवन में अपनाएं तो सुख, शांति, समृद्धि और समाज में मान-सम्मान बढ़ता है.

'भगवंस्त्वत्प्रसादेन वर्ष क्षेममिहास्तु में।

संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषतः।'

'चैत्राय नमः, 'वसंताय नमः'

गुड़ी पड़वा के दिन पूजन करने के पश्चात नीम के मुलायम पत्तों और पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री और अजवाइन का पाउडर मिलाएं. प्रसाद स्वरूप इसका सेवन करने से रक्त स्वच्छ होता है और शरीर निरोगी रहता है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की अपनी निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं.
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