Bahula Chaturthi 2025: कब और क्यों मनाया जाता है बहुला चतुर्थी? जानें इसका महत्व, अनुष्ठान विधि एवं पौराणिक कथा!

  हिंदू पंचांग के अनुसार सावन माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को देश भर में बहुला चतुर्थी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व उत्तर भारत के अलावा गुजरात में विशेष रूप से मनाया जाता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ गाय और बछड़े की पूजा की जाती है. मान्यता है कि यह पूजा करने वाले जातक के साथ-साथ इसे देखने वाले भक्तों के जीवन में भी सुख, शांति और सौभाग्य आता है. इस दिन भक्त गाय का दूध अथवा इससे बने खाद्य पदार्थों का इसलिए सेवन नहीं करते ताकि बछड़े को दूध की कमी नहीं होने पाए. इस वर्ष यह पर्व 12 अगस्त 2025, को मनाया जाएगा. आइये जानते हैं इस आध्यात्मिक पर्व के बारे में विस्तार से...  

 कब मनाई जाएगी बहुला चतुर्थी 2025

श्रावण कृष्ण पक्ष चतुर्थी प्रारंभ: 08.40 AM (12 अगस्त 2025, मंगलवार) से

श्रावण कृष्ण पक्ष चतुर्थी समाप्त 06.34 AM (13 अगस्त 2025, बुधवार) तक

चूंकि यह पूजा गोधूलि बेला में होती है, इसलिए बहुला चतुर्थी का पर्व 12 अगस्त को मनाया जाएगा.

पूजा का शुभ मुहूर्तः गोधूलि बेला यानी 06.51 PM से 07.16 PM

बहुला चतुर्थी का महत्व

  बहुला चतुर्थी का पर्व गौमाता के महत्व को परिभाषित करता है. इस दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है, उन्हें स्नान करवाकर सजाया जाता है. फल, फूल और माला अर्पित किया जाता है. सनातन धर्म में इस पर्व का इसलिए भी विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन माताएं अपनी संतान की अच्छी सेहत, सुरक्षा और लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं, और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करती हैं. इसके साथ ही इस पर्व के साथ भगवान कृष्ण और बहुला नामक गाय के बीच प्रेम और भक्ति की पौराणिक कथा भी जुड़ी है. यह पर्व हमें त्याग, करुणा और धर्म का पालन करने की भी प्रेरणा देता है. बहुला चतुर्थी का व्रत रखने से धन, ऐश्वर्य और संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है.

बहुला चतुर्थीः व्रत एवं अनुष्ठान

   बहुला चतुर्थी पर्व में गाय-बछड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसलिए ज्यादातर अनुष्ठान और उत्सव उन्हीं पर केंद्रित होते हैं. इस दिन लोग सूर्योदय से पूर्व स्नान करते हैं, क्योंकि इस पर्व की शुरुआत इसी समय से होती है. स्नान-ध्यान के पश्चात भगवान कृष्ण का स्मरण कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लेते हैं. इसके पश्चात गौशाला की सफाई करते हैं, मवेशियों (गाय-बछड़े) को स्नान कराते हैं. उनका श्रृंगार करते हैं, उन्हें फल खिलाए जाते हैं घरों में विशेष प्रकार के पकवान बनते हैं, और पहले मवेशियों को परोसे जाते हैं. गोधूलि बेला में मुहूर्त के अनुरूप भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं, और व्रत-कथा सुनते हैं. पूजा के पश्चात लोगों को प्रसाद बांटे जाते हैं.

बहुला चतुर्थी व्रत कथा

  एक प्राचीन कथा के अनुसार एक बार खेतों में भ्रमण करने के पश्चात बहुला नामक गाय अपने बछड़े के पास जा रही थी, तभी एक शेर उसके सामने आ गया. उसने उसे खाने की कोशिश को तो गाय ने उससे प्रार्थना की कि उसका बछड़ा सुबह से भूखा है, वह उसे दूध पिलाकर वापस आ जाएगी, तब वह उसका भक्षण कर लेगा. गाय यह वादा करके चली आई. शेर ने उस पर विश्वास करते हुए उसे जाने दिया. गाय बछड़े को दूध पिलाकर तुरंत शेर के पास आई और कहा कि वह उसका भक्षण कर सकता है. शेर गाय की वचनबद्धता से बहुत प्रभावित शेर की जगह भगवान कृष्ण प्रकट हुए, कहा बहुला मैं तुम्हारे परीक्षा ले रहा था, अब तुम भयमुक्त होकर अपने बछड़े के पास जाओ, अन्यथा कल उसे दूध कौन पिलायेगा. इसके बाद से ही बहुला चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है.