बहुला चतुर्थी: इस व्रत से बांझ को पुत्र और संतान को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, करें गोमाता माता का पूजन!
(बहुला चतुर्थी (Photo Credit- File Photo)

Bahula Chaturthi 2019: हिंदी पंचांग के अनुसार भादों माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को ही बहुला चौथ भी कहते हैं. इस बार यह व्रत आज यानी 19 अगस्त को है. यह व्रत संतान की रक्षा के लिए किया जाता है. भादों माह की चतुर्थी के दिन पुत्रवती स्त्रियां अपनी संतान की सुख-शांति-समृद्धि की रक्षा के लिए यह उपवास रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान पर आनेवाले कष्ट दूर होते हैं. करवा चौथ की तरह बहुला चौथ का भी व्रत होता है. इसके अनुसार चंद्र दर्शन करने के पश्चात गणेश जी की पूजा कर व्रत का पारण करते हैं. कई स्थानों पर इस दिन गाय एवं सिंह की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा की जाती है. इसलिए इसे गौ-पूजा व्रत भी कहते हैं. आइये जानें क्या है बहुला चतुर्थी का महात्म्य? कैसे करते हैं इसकी पूजा अर्चना? और क्या है इसकी पारंपरिक कथा?

व्रत का महात्म्य

बहुला चतुर्थी का व्रत संतानोत्पति के साथ-साथ उसके सुख एवं समृद्धि को बढ़ानेवाला पर्व माना गया है. इस व्रत में गौ-माता को मां की तुलना में ज्यादा श्रेष्ठ बताया गया है, क्योंकि गाय अपना दूध पिलाकर अपनी संतान के साथ-साथ पूरी मानव जाति की रक्षा करती है, जबकि मनुष्य केवल अपनी संतान को दूध पिलाती है. यह व्रत करने से बांझ औरत को मातृत्व-सुख प्राप्त होता है, वहीं जिसकी संतान होती है, उसे सुरक्षा, मान-सम्मान और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि भादों मास की चतुर्थी के दिन भगवान श्रीकृष्ण सिंह का वेष धरकर बहुला नामक गाय की परीक्षा लेने आते हैं. इसलिए इस दिन गाय की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन मिट्टी की गाय, शेर और बछड़ा बनाकर भी पूजा-अर्चना की जाती है.

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पूजन विधि

भाद्रपद की चतुर्थी की प्रातःकाल सुर्योदय से पूर्व स्नानादि कर इत्र, अक्षत, दूब, सिक्का एवं जल लेकर विधिवत पूजा कर व्रत का संकल्प लें. इस दिन गाय का दूध एवं उससे बनी वस्तुओं का प्रयोग वर्जित होता है. मान्यता है कि इस दिन गाय के दूध पर उसके बछड़े का ही हक होता है. बहुला चतुर्थी के दिन मिट्टी से बने शेर, गाय और बछड़े की पूजा की जाती है. शाम के समय व्रती श्री गणेश, गौरी, भगवान शिव, श्रीकृष्ण और बछड़े के साथ गाय का पंचोपचार विधि से पूजन करे. तत्पश्चात दूब की गांठ बनाकर उससे सभी के चित्रों पर जल का छिड़काव करें. अब तिल के तेल का दीप प्रज्जवलित करें तथा चंदन की धूप जलाएं. इसके बाद चंदन का तिलक, पीले फूल सभी देवी-देवता को अर्पित करें और गुड़ एवं चने का भोग लगायें. इसके पश्चात दूब, सुपारी, रोली, पुष्प एवं अक्षत हाथ में लेकर श्रीकृष्ण जी एवं गाय की वंदना करते हुए यह श्लोक पढ़ें.

श्लोक:-

कृष्णाय वासुदेवाय गोविन्दाय नमो नमः।।

त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।

त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे।।

मान्यता है कि बहुला चतुर्थी के दिन श्रीकृष्ण की कथा सुनने से सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है.

रात्रि में चंद्रोदय होने पर अर्घ्य दें. जौ और सत्तू का भोग लगाएं. बाद में इसी भोग को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें. इस पूजन से बांझ को पुत्र की प्राप्ति होती है. परिवार में सुख एवं शांति रहती है.

प्रचलित कथा

एक बार कामधेनु गाय ने श्रीकृष्ण की सेवा के लिए बहुला गाय को नंदबाबा की गौशाला में भेजा. श्रीकृष्ण गायों से बहुत स्नेह करते थे. बहुला भी उन्हें बहुत पसंद थी. एक दिन बहुला वन में चर रही थी, तभी भगवान सिंह के वेश में बहुला के सामने आकर खड़े हो गये. साक्षात सिंह को सामने देखकर बहुला भयभीत होकर सिंह से बोली, वनराज मेरा बछड़ा बहुत भूखा है, आप आदेश दें तो मैं उसे दूध पिलाकर आपके पास आ जाऊं. सिंह ने कहा अगर तुम नहीं आई तो मैं भूखा रह जाऊंगा. तब बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेते हुए कहा कि आप यहीं पर मेरा इंतजार करो, मैं जरूर वापस आऊंगी. बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस वन में आ गई. बहुला की सत्यनिष्ठा से श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक रूप में आकर कहा कि - बहुला, मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था, जिसमें तुम सफल हुई. आज के बाद भाद्रपद चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा गोमाता के रूप में होगी. जो भी तुम्हारी पूजा करेगा उसे धन और संतान का सुख प्राप्त होगा.