Michiyo Tsujimura Google Doodle: जापानी साइंटिस्ट मिशियो सुजिमुरा का जन्मदिन, गूगल ने ग्रीन टी पर खोज करने वाली वैज्ञानिक पर खास डूडल किया समर्पित
जापानी वैज्ञानिक मिशियो सुजिमुरा (Photo Credits: Google)

Michiyo Tsujimura Google Doodle: सर्च इंजिन गूगल (Search Engine Google) ने ग्रीन टी (Green Tea) पर खोज करने वाली जापानी साइंटिस्ट मिशियो सुजिमुरा (Japanese Scientist Michiyo Tsujimura) की 133वीं जयंती पर खास डूडल समर्पित किया है. आज यानी 17 सितंबर को गूगल ने खास डूडल बनाकर मिशियो सुजिमुरा और उनकी उपलब्धियों को याद किया है. अपने डूडल में गूगल ने मिशियो सुजिमुरा (Michiyo Tsujimura) के 133वें जन्मदिन पर उन्हें ग्रीन टी के रासायनिक घटकों का अध्ययन करते हुए दिखाया है. गूगल के अक्षरों को बनाने के लिए चाय की झाड़ी, एक कप ग्रीन टी, एक पेन, एक फ्लास्क और एक नोटपैड जैसे शोध घटकों का इस्तेमाल किया गया है.

मिशियो सुजिमुरा का जन्म 17 सितंबर 1888 को जापान के सैतामा प्रांत (Saitama Prefecture) के ओकेगावा (Okegawa) शहर में हुआ था. स्कूली दिनों में ही उन्हें साइंटिफिक रिसर्च में अपना करियर बनाने के लिए प्रेरणा मिली थी. स्नातक होने के बाद उन्होंने साल 1920 में होक्काइडो इंपीरियल यूनिवर्सिटी जाने से पहले दो अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाया. होक्काइडो इंपीरियल यूनिवर्सिटी में एक अवैतनिक प्रयोगशाला सहायक के तौर पर काम करते समय उन्होंने रेशम के कीड़ों के पोषण मूल्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक शोध किया था. यह भी पढ़ें: Sarla Thukral's 107th Birthday Google Doodle: सरला ठकराल की 107वीं जयंती पर गूगल ने खास डूडल बनाकर किया याद

सुजिमुरा को ग्रीन टी पर खोज करने के लिए जाना जाता है. उन्होंने एक लैब में काम करते हुए अपने सहयोगी सीतारो मिउरा के साथ मिलकर ग्रीन टी को विटामिन सी के एक प्राकृतिक स्रोत के रूप में खोजा. मिशियो सुजिमुरा के शोध के वजह से उत्तरी अमेरिका में निर्यात की जाने वाली ग्रीन टी की मात्रा में इजाफा हुआ था.

गौरतलब है कि ग्रीन टी पर रिसर्च करने के लिए साल 1956 में सुजिमुरा को कृषि विज्ञान के जापान पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. साल 1968 में उन्हें ऑर्डर ऑफ दम प्रीशियस क्राउन ऑफ द फोर्थ क्लास से सम्मानित किया गया. ग्रीन टी की खोज में अपना अहम योगदान देने वाली मिशियो सुजिमुरा का निधन 80 साल की उम्र में हुआ था. उन्होंने 1 जून 1969 को अंतिम सांस ली थी. आज भी ओकेगावा में एक पत्थर का स्मारक मौजूद है, जहां उनकी महान उपलब्धियों का जश्न मनाया जाता है.