Engineer's Day 2019: प्रत्येक वर्ष सितंबर माह की 15 तारीख को हम भारतीय ‘अभियंता (इंजीनियर) दिवस’ (Engineer's Day) के रूप में सेलीब्रेट करते हैं. इस दिन इंजीनियर दिवस मनाने की मुख्य वजह यह है कि इसी दिन महान इंजीनियर डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (Mokshagundam Visvesvaraya) का जन्म हुआ था. 1955 में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित श्री विश्वेश्वरैया को श्रद्धांजलि स्वरूप उनकी जन्मतिथि को इंजीनियर दिवस के रूप में समर्पित किया गया है. डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने ऐसे समय में एशिया का बिगेस्ट बांध बनाया था, जब देश में सीमेंट का उत्पादन नहीं होता था. किसानों के हित में डॉ. विश्वेश्वरैया ने काफी कार्य किया, उन्हें फादर ऑफ मैसूर भी कहा जाता था.
आज से कुछ दशक पूर्व तक भारत में बेहतर इंजीनियरिंग की सुविधाएं नहीं थी. ऐसे में एक सामान्य कद-काठी वाले इंजीनियर ने एक विशाल बांध बनाकर साबित कर दिया कि भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. अगर उन्हें मौका मिले तो वे असंभव कहे जाने वाले कार्य संभव करके दिखा सकते हैं. अकेले दम पर भारी भरकम बांध बनाकर पूरी दुनिया को चौंकाने वाले एम. विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (आज के कर्नाटक) में कोलार डिस्ट्रिक्ट के मुद्देनाहल्ली गांव में 15 सितंबर 1860 में हुआ था. पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत विद्वान एवं आयुर्वेदिक चिकित्सक थे, जबकि मां वेंकचाम्मा हाउस वाइफ थीं.
विश्वेश्वरैया पंद्रह साल के थे, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी. चिकबल्लापुर में रहकर प्रायमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे बंगलुरू आ गये. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन वे मेधावी छात्र थे. 1881 में विश्वेश्वरैया मद्रास (चेन्नई) युनिवर्सिटी के सेंट्रल कॉलेज से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके पश्चात मैसूर सरकार की मदद से उन्हें पूना (पुणे) के साइंस कॉलेज में इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल गया. 1883 में एलसीई और एफसीई की परीक्षा में टॉप किया. यह परीक्षा आज के बी.ई. के समकक्ष थी. यह भी पढ़ें: Engineer's Day 2019: भारत के महान इंजीनियर विश्वेश्वरैया की याद में मनाया जाता है इंजीनियर्स डे, जानिए इस दिवस का महत्व
बिना सिमेंट के एशिया का बिगेस्ट बांध बनाया
इंजीनियरिंग की परीक्षा पास करने के पश्चात बाम्बे सरकार ने विश्वेश्वरैया को नासिक में असिस्टेंट इंजीनियर की नौकरी मिल गयी. एक इंजीनियर के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने देश विशेषकर गांवों में किसानों के लिए काफी कार्य किये. उन्होंने सिंधु नदी का पानी सुक्कुर गांव तक सप्लाई करवाया. सिंचाई की एक नई व्यवस्था ब्लॉक सिस्टम शुरू करवायी, बांध में पहली बार लोहे के दरवाजे लगवाये, ताकि पानी के तेज प्रवाह को मजबूती के साथ रोका जा सके और जरूरत पड़ने पर इस पानी को खेतों में सप्लाई करवाया जा सके. उऩ्होंने मैसूर में कृष्णराज सागर बांध, पूना के खड़कवासला जलाशय पर बांध, ग्वालियर में तिगरा बांध के निर्माण में अहम भूमिका निभाई.
यहां 1932 में 'कृष्ण राजा सागर' बांध के निर्माण परियोजना का जिक्र करना जरूरी होगा. उस समय वह वहां चीफ इंजीनियर थे. उन दिनों बांध बनाना इतना आसान नहीं था, क्योंकि उन दिनों देश में सीमेंट तैयार नहीं होता था. विश्वेश्वरैय्या ने स्थानीय इंजीनियर्स के साथ मिलकर 'मोर्टार' तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था. मोर्टार की मदद से बांध बनकर तैयार हुआ, उस समय यह एशिया का सबसे बड़ा बाँध था.
फादर ऑफ मैसूर
साल 1906 में भारत सरकार ने विश्वेश्वरैया को जल निकासी व्यवस्था के गहन अध्ययन के लिए अदेन भेजा. अदेन सरकार ने श्री विश्वेश्वरैया के कई प्रोजेक्ट को अदेन में सफलता पूर्वक क्रियान्वित किया. उन्होंने हैदराबाद सिटी को तकनीकी तौर पर खूब विकसित किया. यहीं पर उन्होंने बाढ़ सुरक्षा प्रणाली को विकसित किया. समुद्र के कटाव से रोकने के लिए उन्होंने विशाखापटनन बंदरगाह की सुरक्षा व्यवस्था को काफी मजबूत बनाया. श्री विश्वेश्वरैया ने मैसूर राज्य के लिए इतना कुछ किया कि उन्हें फादर ऑफ मैसूर कहा जाने लगा. यह भी पढ़ें: Happy Engineer's Day 2019 Wishes: अपने इंजीनियर दोस्तों या रिश्तेदारों को इन WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, SMS, GIF, Wallpapers के जरिए दें इंजीनियर्स डे की शुभकामनाएं
एक रोचक मगर सच्ची कहानी
एक बार ब्रिटिशकाल में यात्रियों से भरी एक रेलगाड़ी चली जा रही थी. ट्रेन में अधिकांश अंग्रेज यात्री थे. वहीं एक सामान्य-सा व्यक्ति शांत मुद्रा में बैठा था. अंग्रेज उसके सांवले रंग और मझौले कद पर ठहाके लगाकर उसे मूर्ख और अनपढ़ समझ रहे थे. अचानक वह व्यक्ति उठा और ट्रेन की जंजीर खींच लिया. ट्रेन रुकते ही अंग्रेज यात्री उस पर भड़क गये. तभी ट्रेन का गार्ड आया, उसने उससे पूछा आपने जंजीर क्यों खींची? उस व्यक्ति ने कहा, मुझे लगता है कि आगे पटरी सही नहीं है. गार्ड ने पूछा तुम्हें कैसे पता? व्यक्ति ने कहा कि मुझे ऐसा लगा कि ट्रेन स्वाभाविक गति से नहीं चल रही है. गार्ड ने पता करवाया, व्यक्ति की बात सही साबित हुई.
कुछ किमी आगे पटरियों को जोड़ने वाले नट बोल्ट खुले पड़े थे. अब तो गार्ड से लेकर सभी अंग्रेज यात्री उसकी प्रशंसा करने लगे. गार्ड ने पूछा आप कौन हैं. व्यक्ति ने बताया मेरा नाम डॉ एम विश्वेश्वरैया है, मैं इंजीनियर हूं. उन दिनों तक विश्वेश्वरैया अपने काम की वजह से पूरे हिंदुस्तान में काफी लोकप्रिय हो चुके थे और ‘सर एम.वी.’ के नाम से विख्यात थे. जैसे ही उन्होंने अपना परिचय दिया, वहां उपस्थित सारे अंग्रेजों ने सर झुकाकर उनका अभिवादन किया और उनसे क्षमा मांगने लगे, इस पर डॉ विश्वेश्वरैया ने कहा आपने क्या कहा मुझे याद नहीं है. 14 अप्रैल 1962 में डॉ. विश्वेश्वरैया की मृत्यु हो गयी.