दीपावाली महोत्सव कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है. हिंदी पंचांग के अनुसार इस साल दीपावली 14 नवंबर (शनिवार) को पड़ रहा है. इस दिन धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी और बुद्धि के देवता श्री गणेशजी की पूजा की जाती है. इस दिन हर भारतीय परिवार विशिष्ठ परंपराओं एवं और रीति-रिवाजों के साथ एकसाथ मिलकर देवी लक्ष्मी और गणेशजी का पूरे विधि-विधान से पूजा-अनुष्ठान करता है. मान्यता है कि ऐसा करने से सुख, समृद्धि और बुद्धि चातुर्य का विशेष सुफल प्राप्त होता है, तथा निर्धनता का नाश होता है. दीपावली पर कुछ विशिष्ठ परंपराएं एवं रीति रिवाज भी हैं, जिनका जिक्र हम यहां करेंगे.
लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त :
हमारे ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस वर्ष ग्रह-नक्षत्रों की गणनाओं के अनुसार 14 नवंबर को 01.16 बजे तक चतुर्दशी रहेगा. इसके बाद अमावस्या लग जायेगा. इसलिए 14 नवंबर को मुख्य दीपावली यानी लक्ष्मी-पूजन होगा. लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए शाम 05.40 से रात 08.15 बजे का मुहूर्त सर्वोत्तम माना गया है.
पूजा सामग्री और विधि:
देवी लक्ष्मी और श्रीगणेश जी की सोने, चांदी, पीतल अथवा मिट्टी की मूर्ति, नारियल, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, रोली, कुमुकम, अक्षत, पान, सुपारी, मिट्टी, दीपक, रूई, कलावा, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, मौसमी फल, लाल कमल, गुलाब और गेंदे का फूल, जौ, गेहूं, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, पंचामृत, दूध, मेवे, बताशा, जनेऊ, श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, कमल गट्टा की माला, शंख, थाली, आसन, हवन कुंड, हवन सामग्री, आम के पत्ते व खोए की मिठाई इत्यादि. शाम को शुभ मुहूर्त मां लक्ष्मी एवं श्रीगणेश जी की प्रतिमा की षोडषोपचार विधि से पूजा करते हैं. लक्ष्मी जी को कमल का फूल बहुत प्रिय है इसलिए एक कमल का फूल उन्हें पूजा के दरम्यान अवश्य अर्पित करना चाहिए.
सोनलाठी जलाकर पितरों से आशीर्वाद लेने की परंपरा:
काफी लंबे समय से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार दीपावली की रात बहुत सारी जगहों पर लोग अपने घरों में मंत्रोच्चार के साथ बाहर निकलते हैं और सोनलाठी जलाकर घर के करीब किसी तिराहे पर उसकी राख को गिरा देते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों को सालभर तक प्रकाश का एहसास होता है. इससे प्रसन्न होकर वे अपने जीवित सदस्यों के जीवन में सदा प्रकाश और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
भोर में भगाया जाता है दरिद्रा
दीपावली के अगले दिन यानी रविवार की भोर यानी सूर्योदय से पूर्व घरों से दरिद्रा भगाने की भी परंपरा है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. इसके तहत दीपावली की रात गृहणियां सोने से पहले घरों के आंगन या बालकोनी में पुराना सूप व एक छड़ी किसी ईंट से दबाकर रख देती हैं. भोर में उठते ही बासी मुंह सूप को छड़ी से पीटते हुए घर के भीतर की दरिद्रा को भगाते हुए कहती हैं, दरिद्रा भाग रे बाहर, माता लक्ष्मी आ जा भीतर, ऐसा कहते हुए घर के करीबी चौराहे तक जाकर वापस आती हैं.
राजेश श्रीवास्तव