कार्तिक मास में मनाई जानेवाली दीपावली आमतौर पर पांच दिन का पर्व होता है. लेकिन इस बार रूप चौदस यानी छोटी दीवाली और मुख्य दीवाली एक ही दिन मनाई जायेगी. 13 नवंबर को धनत्रयोदशी, 14 नवंबर को नरक चतुर्दशी, रूप चौदस और दीपावली (लक्ष्मी पूजन), 15 नवंबर को गोवर्धन पूजा, काली पूजा, अन्नकूट एवं 16 नवंबर को भाई दूज, चित्रगुप्त जयंती, यम द्वितीया और बलिप्रदा मनाई जायेगी. ज्योतिषियों का मानना है कि इस दीपावली पर ग्रहों का बड़ा खेल देखने को मिलेगा. क्योंकि दीपावली पर गुरु ग्रह अपने स्वराशि धनु और शनि अपनी स्वराशि मकर में रहेंगे, जबकि शुक्र ग्रह कन्या राशि में रहेगा. ज्योतिषाचार्य श्री रवींद्र पाण्डेय के अनुसार इस वर्ष तीन ग्रहों के दुर्लभ संयोग इस बार दीपावली के महात्म्य को बढ़ायेंगे. ऐसा संयोग साल 1521 यानी 499 वर्ष पूर्व बना था.
धनतेरस से दीपोत्सवी का शुभारंभ धनत्रयोदशी, (13 नवंबर, शुक्रवार) त्रयोदशी तिथि 12 नवंबर की रात 09.31 बजे से शुरु होकर 13 नवंबर की शाम 06.00 बजे तक रहेगी. 13 नवंबर को ही प्रदोष व्रत भी रहेगा. ऐसे में 13 नवंबर को ही धनतेरस का पर्व मनाया जायेगा. इसी दिन आरोग्य देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है. धनतेरस के दिन व्यापारी अपनी दुकानों के पुराने बहीखातों की जगह नये बहीखाते बनाते हैं, उसमें नये सिरे से लाभ-हानि का ब्योरा तैयार करते हैं. इसी दिन लोग नये बर्तन, वाहन एवं स्वर्ण आभूषण इत्यादि खरीदते हैं. इन दिनों बर्तनों, ज्वेलर्स एवं नये वाहनों की दुकानें एवं शो रूम को खूब सजाया जाता है. लोग अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार खरीदारी करते हैं.
नरक चतुर्दशी, काली पूजा एवं दीपावली (14 नवंबर, शनिवार) धनतेरस के अगले नरक चतुर्दशी का पर्व मनाते हैं. इस दिन किसी पुराने दीये में सरसों का तेल जलाकर उसमें पांच किस्म के अनाज डालकर घर की नाली की तरफ रख देते हैं. इसे 'यम दीपक' अथवा छोटी दीपावली कहते हैं. चूंकि इस बार छोटी दीपावली और मुख्य दीपावली एक ही दिन पड़ रही है. इसी दिन देवी काली की पूजा की जाती है. कहते हैं कि मां काली की पूजा से हमारे रास्ते में आनेवाली बुरी एवं नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं. इसी दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध कर उसके कारागार से 16 हजार कन्याओं को छुड़ाया था. इसलिए इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी की जाती है. यह भी पढ़े: Diwali 2020: दीपावली से पहले गाय के गोबर से दीये बनाने की अनूठी पहल
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस दिन सूर्यास्त के बाद एक घड़ी अधिक तक अमावस्या की तिथि रहती है, उसी दिन दीपावली मनाये जाने का विधान है. मान्यता है कि चौघड़िया महायोग एवं शुभ कारक लग्न में इस दिन शुभ लाभ के प्रतीक कहे जाने वाली माता लक्ष्मी और गणेशजी की पूजा की जाती है. यह परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है. ऐसा करने से पुराने कर्जों से मुक्ति मिलती है और घर में धन-धान्य एवं समृद्धि बढ़ती है. मान्यतानुसार कार्तिक अमावस्या की इसी रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर अवतरित होती हैं, और पूरी रात पृथ्वी पर विचरण करती हैं. इसी कारण लोग दीपावली की रात घर के दरवाजे खुले रखते हैं कि क्या पता माता लक्ष्मी की कृपा उनके घर को भी मिल जाये. नवरात्रि स्थापना शनिवार को था और दिवाली भी शनिवार को है. इसे बहुत बड़ा मंगलकारी योग बताया जा रहा है कि शनि स्वाग्रही मकर राशि पर है, यह योग व्यापार के लिए लाभकारी एवं जनता के लिए शुभ फलदाई रहेगा. लंबे वर्षों बाद यह दुर्लभ संयोग बन रहा है. यह भी पढ़े: Narak Chaturdashi 2020: नरक चतुर्दशी कब है? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और छोटी दिवाली से जुड़ी पौराणिक कथा
गोवर्धन पूजा एवं पड़वा (15 नवंबर, रविवार) दीपावली के अगले दिन अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है. इसे गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन घर की महिलाएं तमाम किस्म के व्यंजन बनाकर गोवर्धन के साथ भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं. इस दिन को पड़वा भी कहते हैं. इस दिन बहुत सारे लोग गंगा अथवा किसी पवित्र नदी में स्नान-दान करते हैं. भाईदूज, यम द्वितीया एवं श्रीचित्रगुप्त जयंती (15 नवंबर, सोमवार) दीपावली के चौथे दिन यानी हिंदी कैलेंडर के अनुसार कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया के दिन भाई-दूज का पर्व मनाया जाता है. इस दिन भाई बहन एक दूसरे को सुविधानुसार अपने-अपने घरों पर भोजन के लिए आमंत्रित करते हैं. बहन भाई को तिलक लगा कर मिठाई खिलाते हुए उसके लंबे जीवन की कामना करती है. बदले में भाई बहन को गिफ्ट अथवा कोई उपहार देकर प्रसन्नता महसूस करता है. बहुत सी जगहों पर बहनें अपनी जुबान को जलते हुए दीपक से दागती हैं. इसके पीछे यह धारणा है कि भविष्य में भूलकर भी वे अपने भाई के खिलाफ गलत शब्दों का प्रयोग न करें. इसी दिन यम द्वितिया का पर्व भी मनाते हैं. मान्यता है कि इस दिन भाई और बहन अगर यमुना नदी में स्नान करें तो यमराज उनके सामने नहीं फटकते. वे आकस्मिक मृत्यु के शिकार नहीं बनते. इसी दिन भगवान श्रीचित्रगुप्त जी की जयंती भी मनाई जाती है. धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि जन्म-मृत्यु का ब्योरा रखने और अच्छे कार्यों के लिए स्वर्ग और बुरे कार्यों के लिए नर्क भेजने वाले भगवान श्रीचित्रगुप्त जी का जन्म हुआ था. इनके मानक पिता ब्रह्मा जी हैं. इसके साथ ही इस महोत्सव की समाप्ति होती है.