Dhumavati Jayanti 2019: ज्येष्ठ माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन पूरे देश में माता धूमावती जी की जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. माता धूमावती को महाविद्या के रूप में भी पुकारा जाता है. पौराणिक ग्रंथों में माता धुमावती देवी को वस्तुतः दस तांत्रिक देवियों का समूह बताया गया है. इन्हें माँ दुर्गा का सबसे उग्र रूप माना जाता है. कहीं-कहीं माता धुमावती को एक शिक्षक के रूप में भी वर्णित किया गया है, जो ब्रह्माण्ड को भ्रामक कथाओं से बचने का संदेश देते हैं. देवी धूमावती को अलौकिक शक्तियों के रूप में भी उल्लेखित किया जाता है.
विद्वानों के अनुसार उनकी पूजा-अर्चना शत्रुओं के विनाश के लिए की जाती है. धूमावती जयंती के दिन रात के समय बड़े ही धूमधाम से माता के जुलूस का आयोजन किया जाता है.
धुमावती माता का महात्म्य
माता धुमावती को एक रथ की सवारी करते हुए बताया जाता है, और इस रथ को कौआ खींचता है. देवी को एक बुजुर्ग और बदसूरत विधवा के रूप में दर्शाया जाता है. इनकी साड़ी और बाल सफेद बताये गये हैं. उनकी उपस्थिति भले ही भयावह हो, लेकिन वह हमेशा पापियों एवं दुष्ट राक्षसों का संहार करने के लिए इस पृथ्वी पर अवतरित होती हैं. यह इस बात का संकेत होता है कि सच्चाई में विश्वास और सदाचार आपके सारे कष्टों को मिटा देता है. इस दिन पूजा करने से जीवन में आये सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और व्यक्ति जीवन भर सुख भोगता है.
जिसके उपासक थे दुर्वासा और परसुराम
मान्यता है कि प्राचीनकाल में महर्षि दुर्वासा और संत परसुराम ने देवी धूमकेतु की पूजा अर्चना करके विशेष शक्तियों को हासिल करता है. माता धूमकेतु को बुरी आत्माओं से सुरक्षा करने वाली शक्ति के रूप में भी पूजा जाता है. माता धूमकेतु को संसार के तमाम कष्टों का समाधान करने वाली देवी के रूप में काल्हप्रिया नाम से भी पुकारा जाता है.
कैसे करें पूजा अनुष्ठान
इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही स्नान-ध्यान करने के पश्चात भक्त पूरे दिन उपवास रखते हुए देवी के अऩुष्ठान में भाग लेता है. पूजा के लिए घर में ही किसी साफ-सुथरी जगह को चुनकर उस स्थान का दिव्य श्रृंगार किया जाता है. इसके पश्चात देवी धूमकेतु की पूजा धूप, अगरबत्ती और ताजे फूलों से किया जाता है. पूजा के दौरान ही देवी को काला तिल काले कपड़े में बांध कर चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से देवी भक्त की सारी मनोकामना को पूरी करती हैं. पूजा में विशेष प्रसाद चढ़ाया जाता है. पूजा करते समय देवी के लिए मंत्रों का शुद्ध रूप से उच्चारण किया जाता है. इससे देवी प्रसन्न होती हैं. मंत्र पूरे होने के पश्चात देवी की आरती गायी जाती है. अंत में पूजा स्थल के आसपास जो भी बैठा होता है, उन सभी को प्रसाद का वितरण किया जाता है. माता धूमावती के प्रति आस्था रखने वाले भक्तों का अटूट विश्वास है कि उनकी पूजा-अर्चना करने से संतान और पति की रक्षा होती है.
धूमावती जयंती के दिन रात के समय बड़े ही धूमधाम से माता के जुलूस का आयोजन किया जाता है. इस जुलूस में स्त्रियां और बच्चे नहीं होते. महिलाएं देवी माता की पूजा अथवा जुलूस को दूर से देख जरूर सकती हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि इस पूजा-अनुष्ठान में विवाहित लोगों को शामिल नहीं होना चाहिए. क्योंकि उनकी पूजा-अर्चना से एकांत की इच्छा जागृत होती है, सांसारिक चीजों से मोह भंग होने लगता है.
पौराणिक कथा
एक बार माता पार्वती को बहुत तेज भूख लगी. उन्होंने शिव जी से कुछ खाने का प्रबंध करने को कहा. शिव जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि शीघ्र ही वह भोजन की व्यवस्था करते हैं. लेकिन जब काफी देर होने के बाद भी शिव भगवान भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाये तो माता पार्वती ने संपूर्ण शिव जी को ही निगल लिया. लेकिन भगवान शिव के गले में हलाहल (तीव्र विष) होने से जब माता पार्वती के गले में तीव्र धुंआ निकलने लगा और वह भयावह सी दिखने लगीं. तब भगवान शिव जी ने कहा कि तुम्हारे इस रूप को धूमावती के नाम से जाना जायेगा. चूंकि माता पार्वती ने अपने पति को ही निगल लिया था, इसलिए शिव जी ने उन्हें शाप दिया था कि माता धूमावती के लिए वह विधवा स्वरूप में ही पूजा जाती हैं.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.