Dhanteras 2019: धनतेरस (Dhanteras) के साथ ही दीपों के महापर्व दीपावली (Diwali) का श्रीगणेश हो जाता है. यद्यपि अधिकांश लोग धनतेरस का आशय स्वर्णाभूषण एवं बर्तन खरीदना ही समझते हैं, लेकिन धनतेरस का मूल आशय धन की देवी माता लक्ष्मी (Mala Lakshmi) और धन एवं स्वास्थ्य के देवता को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा दिन होता है. मान्यता है कि धनतेरस के दिन देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि (Dhanvantari) की पूजा-अर्चना करने वालों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है एवं सुख, शांति व समृद्धि की वर्षा होती है. ऐसे में यह जानना आवश्यक है कि इनकी पूजा के लिए हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए.
नए बर्तन एवं आभूषण खरीदने की परंपरा
विष्णु पुराण के अनुसार देव एवं असुरों के प्रयास से समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे तब चौदह रत्नों के साथ-साथ उनके एक हाथ में पीले रंग का दिव्य स्वर्ण कलश भी था. कहा जाता है कि उसके बाद से ही इस दिन पीले रंग (तांबे एवं पीतल) के बर्तन खरीदने की परंपरा शुरू हुई और आज तक वह जारी है. हालांकि सामर्थ्यवान लोग इस दिन स्वर्ण एवं चांदी के बर्तन एवं आभूषण आदि खरीद कर धनतेरस की परंपरा का निर्वाह करते हैं.
चांदी के सिक्के खरीदने की परंपरा
इस दिन देश में भारी मात्रा में चांदी के बर्तन, मूर्ति, आभूषण एवं सिक्के आदि खरीदे जाते हैं. लगभग सभी घरों में लक्ष्मी-गणेश के चित्रों वाले सिक्के खरीदे जाते हैं, जिनकी पूजा मुख्य दीपावली के दिन की जाती है. दरअसल चांदी चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है. चंद्रमा इंसान के जीवन में शीतलता, सुख-शांति-समृद्धि और अच्छी सेहत का प्रतीक साबित होता है. दीपावली के दिन लक्ष्मी और श्रीगणेश की पूजा के पश्चात चांदी के सिक्के तिजोरी में रखा जाता है, लेकिन यहां ध्यान देने की बात यह है कि पूजा स्थल पर रखने के लिए लक्ष्मी-गणेश चित्रों वाले सिक्के जरूर रखे जाएं, मगर सोने या चांदी से निर्मित श्रीगणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा खरीदकर उनकी पूजा नहीं करनी चाहिए. लक्ष्मी पूजा का सुफल तभी मिलता है, जब मिट्टी निर्मित गणेश लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा करते हैं. एक साल बाद धनतेरस के दिन नयी मूर्तियां खरीदकर लाने के बाद पुरानी मूर्तियों को घर से बाहर किसी पवित्र स्थान पर रख देते हैं या सरोवर में प्रवाहित कर देते हैं. यह भी पढ़ें: Dhanteras 2019: धनतेरस के दिन ही क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस, जानिए क्या है इसका उद्देश्य और कौन थे भगवान धन्वंतरि
क्या करें क्या न करें
* दीपावली की रात पूजन के लिए मिट्टी से बने श्रीगणेश और माता लक्ष्मी की प्रतिमाएं ही लेनी चाहिए. इसकी दो वजहें हैं, एक मिट्टी को पवित्र माना जाता है, दूसरी मिट्टी की प्रतिमाएं पानी में प्रवाहित करने से प्रतिमा घुलकर मिट्टी में मिल जाती है और पर्यावरण पर भी विपरीत असर नहीं पड़ता.
* कई जगहों पर दीपावली की रात केवल माता लक्ष्मी की ही पूजा करते हैं, लेकिन उत्तर भारत के लोग लक्ष्मी जी के साथ-साथ श्रीगणेश जी की प्रतिमा की भी पूजा-अर्चना कर शुभ लाभ की अपेक्षा करते हैं. ऐसे में गणेश जी की मूर्ति खरीदते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि गणेश जी की मूर्ति में सूढ़ दाहिनी ओर हो.
* धनतेरस का दिन इतना पावन होता है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी गणेश जी की पूजा में लगने वाली सभी वस्तुओं की खरीदारी धनतेरस के दिन ही खरीदें. मसलन श्रीगणेश लक्ष्मी जी की प्रतिमा, पूजा स्थल पर रखने के लिए बर्तन, रूई की लंबी एवं गोल बत्ती, कपूर, देशी घी, धूप, सरसों या तिल का तेल, हल्दी, कुमकुम, अक्षत (चावल), मिठाइयां, खील, बताशे, शक्कर के खिलौने, फूल-माला, शहद इत्यादि.
* भगवान धन्वंतरि चिकित्सा एवं सेहत के देवता हैं. इसलिए अगर आप चिकित्सक हैं अथवा चिकित्सा के पेशे से हैं, तो कुछेक चिकित्सकीय यंत्र की खरीदारी धनतेरस के दिन कर सकते है.
* माता लक्ष्मी वहीं वास करती हैं, जहां साफ-सफाई होती है, इसलिए धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी की प्रतिमा घर पर लाने से पूर्व लोग अपने-अपने घरों की साफ-सफाई एवं साज-सज्जा करते हैं. इसी तरह से लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए वास्तु के अनुरूप आकर्षक रंगोली बनाएं.
* धनतेरस की रात्रि के समय अपने शयनकक्ष के पूर्व-पश्चिम कोने में मां लक्ष्मी की तस्वीर और यंत्र को लाल रंग के वस्त्र बिछे पाटले पर रखकर दीप जलाकर उनकी पूजा करें. यहां एक बात ध्यान रखने की यह है कि धनतेरस के दिन कुबेर की पूजा करते समय धूप का प्रयोग न करें, इसके साथ ही धनतेरस से लेकर भाई दूज तक लगातार पांच दिनों तक माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर एवं परिवार में सुख एवं शांति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें: Dhanteras 2019: धनतेरस पर होती है लक्ष्मी-कुबेर की पूजा, जानिए दिवाली से पहले मनाए जाने वाले इस पर्व की तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व
* दीपावली से पूर्व घर की साफ-सफाई वास्तु के अनुरूप करें. अनावश्यक वस्तुओं को घर में न रखकर बाहर कर दें. अगर संभव है तो धनतेरस की शाम पीपल के वृक्ष में तांबे के लोटे से जल अर्पित करें.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.