Devshayani Ashadhi Ekadashi 2019: हिंदू धर्म में भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को समर्पित एकादशी (Ekadashi) के व्रत को सभी व्रतों में उत्तम बताया गया है. खासकर आषाढ़ महीने (Ashadh Month) के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) को लेकर कई मान्यताएं जुड़ी हैं. मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार माह तक गहन निद्रा के लिए श्रीरसागर में चले जाते हैं और इस चतुर्मास के दौरान कोई मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. इन चार महीनों में श्रीहरि की भक्ति की जाती है. इस साल देवशयनी एकादशी का व्रत 12 जुलाई 2019 (शुक्रवार) को पड़ रहा है. इसे आषाढ़ी एकादशी (Ashadhi Ekadashi) और हरिशयनी एकादशी (Harishayani Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन सच्चे मन से जो भी व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) पर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा की जाती है. रात्रि जागरण कर हरि कीर्तन किया जाता है. मान्यता के मुताबिक, इसी रात्रि से भगवान का शयन काल आरंभ हो जाता है जिसे चातुर्मास या चौमासा का प्रारंभ भी कहते है. दरअसल, भगवान विष्णु की प्रतिमाओं को देखें तो वे हमेशा शेषनाग (Sheshnaag) की शय्या पर लेटे हुए दिखाई देते हैं. आखिर इसका रहस्य क्या है चलिए जानते हैं. यह भी पढ़ें: Devshayani Ekadashi 2019: देवशयनी एकादशी से गहन निद्रा में चले जाते हैं भगवान विष्णु, जानें इसका महत्व, व्रत और पूजा की विधि
शेषनाग की शय्या को कहते हैं अनंत शय्या
भगवान विष्णु के सभी अवतारों में उनके साथ कई सिरों वाले नाग को दिखाया गया है, जिसे शेषनाग कहा जाता है. भगवान विष्णु सदा शेषनाग पर ही आराम करते हैं. भले ही भगवान विष्णु का वाहन गरुड है, लेकिन वो हमेशा शेषनाग की शैया पर लेटे हुए नजर आते हैं, जिसे अनंत शय्या भी कहा जाता है.
भगवान विष्णु की ऊर्जा का है प्रतीक
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, शेषनाग को भगवान विष्णु की ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, जिस पर वो आराम करते हैं. ऐसा कहा जाता है कि शेषनाग ने अपनी कुंडली में सभी ग्रहों को पकड़ रखा है, जो भगवान विष्णु के मंत्रों का उच्चारण करते रहते हैं. भगवान विष्णु को संपूर्ण ब्रह्मांड, ग्रहों और तारों का प्रतीक कहा जाता है, जबकि शेषनाग को श्रीहरि की ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है.
शेषनाग हैं भगवान विष्णु के रक्षक
शेषनाग की शय्या पर भगवान विष्णु न सिर्फ आराम करते हैं, बल्कि वो उनकी रक्षा भी करते हैं. भगवान विष्णु ने जब-जब अवतार लिए उनकी रक्षा के लिए शेषनाग ने भी अलग-अलग अवतार लिए. जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था तब उनके पिता वासुदेव जी उन्हें नंद के घर ले जा रहे थे, उस दौरान तूफान से शेषनाग ने ही उनकी रक्षा की थी. इतना ही नहीं श्रीराम की रक्षा के लिए उनके भाई लक्ष्मण बनकर शेषनाग सदा उनके साथ रहे.
शेषनाग और श्रीहरि का संबंध है बेहद खास
भगवान विष्णु और शेषनाग के बीच के संबंध को बहुत ही खास बताया जाता है. क्षीरसागर में श्रीहरि को अपनी शय्या पर आराम करने की सुविधा देने वाले शेषनाग और भगवान विष्णु संसार से पापों का अंत करने के लिए साथ जुड़े हैं. त्रेतायुग में शेषनाग ने लक्ष्मण का रूप और भगवान विष्णु ने राम का अवतार लेकर रावण के पापों का अंत किया था. इसके बाद द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण और शेषनाग ने उनके बड़े भाई बलराम के रूप में अवतार लिया था. जहां उन्होंने कंस का वध किया था. यह भी पढ़ें: Devshayani Ekadashi 2019: मोक्षदायिनी होती है देवशयनी एकादशी, जानिए इसका महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा
गौरतलब है कि शेषनाग पर लेटे हुए भगवान विष्णु के शांत और मनमोहक चेहरे से हर किसी को यह प्रेरणा मिलती है कि कठिन समय में हमेशा धैर्य से काम लेना चाहिए और जीवन में आनेवाली समस्त परेशानियों का शांति से हल खोजना चाहिए. यहां खास बात तो यह है कि शेषनाग की शय्या पर लेटने के कारण उन्हें अनंत नारायण और शेष नारायण भी कहा जाता है.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.