Dattatreya Jayanti 2019: दत्त जयंती कब है? जानें त्रिदेवों के अंश कहे जाने वाले भगवान दत्तात्रेय के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा
दत्त जयंती 2019 (Photo Credits: File Image)

Datta Jayanti 2019: हिंदू धर्म में भगवान ब्रह्मा (Brahma), विष्णु (Vishnu) और महेश (Mahesh) को त्रिदेव (Tridev) कहा जाता है. इन त्रिदेवों को सनातन धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है और भगवान दत्तात्रेय (Bhagwan Dattatreya)  को त्रिदेवों का स्वरूप माना जाता है. ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंश दत्तात्रेय को श्री गुरुदेवदत्त के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि उन्होंने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी. भगवान दत्तात्रेय महर्षि अत्रि और सती अनुसुइया की पुत्र थे. हिंदू पंचांग के अनुसार, दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा तिथि को प्रदोषकाल में हुआ था, इसलिए हर साल मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त अथवा दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) मनाई जाती है. इस साल दत्त जयंती 11 दिसंबर 2019 को मनाई जाएगी.

दत्तात्रेय भगवान के स्वरूप का वर्णन किया जाए तो उनके तीन सिर हैं और छह भुजाएं हैं. मान्यता है कि उनके भीतर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों त्रिदेवों के संयुक्त अंश समाहित हैं. दत्त जयंती के अवसर पर उनके बाल स्वरूप की पूजा की जाती है. चलिए जानते हैं दत्त भगवान के जन्म से जुड़ी दिलचस्प पौराणिक कथा.

दत्त भगवान के जन्म से जुड़ी कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार देवर्षि नारद त्रिदेवियों के पास बारी-बारी से जाकर देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करते हैं. नारद से देवी अनुसूया के गुणगान सुनकर तीनों देवियां ईर्ष्या से भर उठी. तीनों देवियों ने अपने-अपने पतियों ब्रह्मा, विष्णु और महेश से देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की बात करने लगीं. आखिरकर त्रिदेवों को अपनी पत्नियों की जिद के आगे विवश होना पड़ा.

इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों एक साथ साधु के वेश में देवी अनुसूया की कुटिया के सामने जाकर खड़े हो गए. जब देवी अनुसूया उन्हें भिक्षा दे रही थीं, तब उन्होंने भिक्षा लेने से मना करते हुए भोजन करने की इच्छा प्रकट की. देवी अनुसूया ने अपने द्वार पर आए साधुओं की बात मानते हुए उनका अतिथि सत्कार किया और उनके लिए प्रेम भाव से भोजन लेकर आईं, लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इंकार कर दिया.

त्रिदेवों ने कहा कि जब तक देवी अनुसूया वस्त्रहीन होकर भोजन नहीं परोसेंगी, तब तक वो भोजन नहीं करेंगे. साधु के वेश में आए त्रिदेवों की बात सुनकर देवी अनुसूया हैरान रह गईं और गुस्से से भर गईं. हालांकि उन्होंने अपने पतिव्रत धर्म के बल पर तीनों की मंशा को जान लिया. उन्होंने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया और देखते ही देखते तीनों बालरुप में आ गए. बालरुप में आए तीनों देवों को देवी अनुसूया ने भोजन कराया और प्रेमपूर्वक उनका पालन करने लगीं.

इसी तरह जब कई दिन बीत गए और जब ब्रह्मा, विष्णु, महेश घर नहीं लौटे तब देवियों को अपने पतियों की चिंता सताने लगी. जब तीनों देवियों को इसके बारे में ज्ञात हुआ तब उन्हें अपनी भूल पर पछतावा हुआ और तीनों ने देवी अनुसूया से क्षमा मांगी. देवी अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरुप में ही रहना होगा. यह भी पढ़ें: December 2019 Festival Calendar: विवाह पंचमी से हो रही है दिसंबर माह की शुरुआत, देखें इस महीने पड़नेवाले सभी व्रत, त्योहार और छुट्टियों की पूरी लिस्ट

देवी अनुसूया की बात सुनकर त्रिदेवों ने अपने-अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया, जिसका नाम दत्तात्रेय रखा गया. उनके तीन सिर और छह हाथ बने. त्रिदेवों के अंश से बने दत्तात्रेय को पाने के बाद माता अनुसूया ने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़का, जिसके बाद तीनों देव फिर से अपने वास्तविक रूप में आ गए.

गौरतलब है कि त्रिदेव के रूप में जन्में भगवान दत्तात्रेय को पुराणों के मुताबिक वैज्ञानिक माना जाता है. उनके कई गुरु थे, क्योंकि उनका मानना था कि व्यक्ति को जीवन में हर एक तत्व से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. दत्त भगवान की पूजा गुरु के रूप में की जाती है, क्योंकि उनके कई शिष्य भी हुए जिनमें परशुराम, स्वामी कार्तिकेय और प्रहलाद का नाम भी शामिल है.