कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन देश भर में ‘गोविंदा’ का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इसे 'दही हांडी', 'गोविंदा', 'गोपाला कला' अथवा 'उत्तल उत्सवम्' जैसे नामों से भी जाना जाता है. गोविंदा की धूम संपूर्ण महाराष्ट्र और गोवा विशेषकर मुंबई में तो देखते बनती है. जब पूरा शहर गोविंदा के रंग में रंगा होता है, क्या पुरुष, क्या स्त्रियां और क्या बच्चे सभी उत्सव का हिस्सा बनते हैं. दरअसल यह पर्व तब और रोमांचक हो जाता है, जब यह प्रतिस्पर्धी का रूप ले लेता है. इस पर्व पर विभिन्न क्षेत्रों की ‘गोविंदा’ की टीमें जगह-जगह भ्रमण करती है, और सार्वजनिक जगहों पर काफी ऊंचाई पर टंगे माखन की हांडी को मानव पिरामिड बनाकर तोड़ने की कोशिश करती हैं. तिथि के अनुसार इस वर्ष दही हांडी का पर्व 7 सितंबर 2023 को मनाया जाएगा. आइये जानते हैं इस पर्व के बारे में विस्तार से...
दही हांडी का महत्व
कृष्ण जन्मोत्सव के अगले दिन भगवान कृष्ण की बाल सुलभ लीलाओं पर आधारित दही-हांडी का पर्व मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का यह बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को दही मक्खन बहुत प्रिय था, वह अक्सर अपने ग्वाल-बालों के साथ पड़ोसियों के घर घुसकर छींके पर टंगे मक्खन की हांडी उतारकर खाते और इधर-उधर बिखेर का भाग जाते थे. Janmashtami 2023 Date, Puja and Shubh Muhurat: किस दिन मनाएं जन्माष्टमी? जानें पूजा का समय और शुभ मुहूर्त
माता यशोदा से सजा मिलने के बावजूद बाल कृष्ण अगले दिन पुनः चोरी-छिपे मक्खन खाते और ग्वालिन के आने से पहले चुपचाप निकल जाते थे. गोविंदा का पर्व भगवान श्रीकृष्ण की उन्हीं लीलाओं को परिभाषित करता है. इस दिन जगह-जगह दो से तीन सौ फीट की ऊंचाई पर मटकी टांगी जाती है. जिसे कृष्ण का प्रतीक बनकर लोग फोड़ते हैं, यह सदियों पुरानी परंपरा आज भी उतनी ही जोश-खरोश के साथ मनाई जाती है.
क्या है दही-हांडी उत्सव!
जन्माष्टमी के दूसरे दिन मटकी फोड़ने वाले युवाओं की अपनी-अपनी टीम मैदान, सड़क या सोसायटी में काफी ऊंचाई पर टंगे मटकी को फोड़ने के कंपटीशन में हिस्सा लेती हैं. हर टीम अपने-अपने ग्रुप के साथ मिलकर मानव पिरामिड बनाते हैं और हांडी फोड़ने की कोशिश करते हैं. इस अवसर को रोमांचक बनाने के लिए विभिन्न सोशल संस्थाएं मटकी फोड़ने वाली टीम को एक बड़ी धनराशि और शील्ड प्रदान करती हैं, कभी-कभी मटकी इतनी ऊंचाई पर लटकी होती है, कि नौ से दस लेयर में नीचे से ऊपर तक पिरामिड बनाई जाती हैं, आयोजनकर्ता प्रत्येक टीम को तीन मौके देते हैं, अंततः विजेता को पुरस्कृत किया जाता है. हालांकि मटकी तोड़ने के प्रयास में भारी संख्या में गोविंदा घायल भी होते हैं, मगर जोश की कमी नहीं होती.
लड़कियों की भी सहभागिता
आज जब लड़कियां हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं, इसी मद्देनजर पिछले कुछ वर्षों से गोविंदा कार्यक्रम में लड़कियों की भी सहभागिता बढ़ी है. मुंबई में जगह-जगह महिला गोविंदा की टीम दही हांडी की प्रतियोगिता में उतरती हैं, और पुरुषों के मुकाबले भारी संख्या में लड़कियों की टीम भी दही हांडी प्रतियोगिताएं जीत रही हैं.