नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इनका प्रकाट्य धर्म की रक्षा और संपूर्ण जगत से अन्याय, अनाचार और अत्याचार मिटाने के लिए हुआ था. मां चंद्रघंटा की उपासना साधक को आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्रदान करती है.
नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की साधना-अर्चना करने के पश्चात दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले भक्तों को यश, कीर्ति और सम्मान की प्राप्ति होती है. देवी पुराण के अनुसार माता चंद्रघंटा अपने भक्तों के हर कष्टों को दूर करती हैं.
ऐसे करें पूजा-अर्चना
माँ चंद्रघण्टा की पूजा के लिए शुद्धता एवं सफाई पहली आवश्यकता होती है, जो तन और मन दोनों से होनी चाहिए. पूजा के दरम्यान माँ चंद्रघंटा को जहां खुशबू वाली वस्तुएं इत्र एवं धूप इत्यादि बहुत प्रिय है, तो वहीं लाल रंग भी बहुत पसंद है. पूजा के दौरान लाल गुलाब एवं लाल गुड़हल के फूल उन्हें विशेष रूप से अर्पित किये जाते हैं. नैवेद्य में लाल सेब के साथ-साथ दूध और उससे बने व्यंजन, जिसमें मखाने की खीर मुख्य है, उन्हें बहुत पसंद हैं.
भोग चढ़ाते समय घंटी बजाने का भी विशेष महत्व है. मान्यता है कि घंटे की हर ध्वनि से मां चंद्रघंटा की विशेष कृपा अपने भक्तों पर बरसती हैं. ज्योतिषियों के अनुसार मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना पूरे विधि-सम्मत से की जाये तो किसी भी प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक पीड़ा से मुक्ति मिलती है. पूजा सम्पन्न होने के बाद जाने अनजाने में हुई त्रुटियों को मानते हुए माता से क्षमा प्रार्थना अवश्य कर लेनी चाहिए.
मां चंद्रघंटा की दिव्य पहचान
नवदुर्गा की तीसरी शक्ति यानी माँ चंद्रघंटा का यह स्वरूप बेहद सौम्य, शांत और मन को मोहनेवाली है. शेर पर सवार माँ चंद्रघंटा का संपूर्ण शरीर कंचन की तरह दमकता हुआ है. उन्होंने अपने दस हाथों में विभिन्न किस्म अस्त्र-शास्त्र धारण कर रखा है, मस्तष्क पर चमकता हुआ चंद्रमा विराजमान है. इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है, हांलाकि इन्हें सुर की देवी भी कहा जाता है.
चंद्रघंटा का प्रकाट्य
देवी पुराण के अनुसार माँ चन्द्रघंटा असुरों का विनाश करने हेतु माँ दुर्गा के तृतीय शक्ति के रूप में अवतरित हुई थीं. जो भयंकर दैत्यों का संहार करके देवताओं को उनके वे सारे अधिकार दिलाती हैं, जिसे असुरोँ ने अपनी असीम शक्ति का प्रयोग कर उनसे छीन लिया था. माँ चंद्रघंटा विश्व की संपूर्ण पीड़ा को हर लेती हैं. उनमें समस्त शात्रों का ज्ञान होता है. असुरी प्रवृत्ति वाले दुष्टों को देखते ही उनके कमल समान मुख को क्रोध से लाल कर देती हैं, उनकी तनी हुई भौहों के कारण उनका विकराल हो उठा स्वरूप देखकर महिषासुर समझ जाता है कि इस महाशक्ति के सामने अब वह ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकेगा. क्योंकि उसकी वह विशाल सेना जिस पर उसे गर्व होता था, मां चंद्रघंटा ने चुटकियों में तृण के समान मसल डाला था. वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि माँ के हाथों उसे सद्गति प्राप्त हो.
मां चंद्रघंटा के मंत्र
माँ चंद्रघंटा की स्तुति के अनेक मंत्र दुर्गा सप्तशती में उल्लेखित है.
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
व्रत के नियम-
अगर आप चैत्रीय नवरात्रि पर नौ दिन का उपवास रखते हुए पूजा कर रहे हैं तो निम्न नियमों का पालन अवश्य करें.
* नवरात्रि के सभी 9 दिनों तक पूरी तन-मन से श्रद्धापूर्वक और सच्ची आस्था के साथ पूजा करनी चाहिए.
* नवरात्रि के दौरान दिन के समय दूध-दही अथवा फलों का सेवन कर शाम के समय फलाहार लेना चाहिए.
* नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक सुबह शाम दोनों समय माँ दुर्गा की आरती करनी चाहिए और देवी के चढ़ाए गये प्रसाद को परिवार के सभी लोगों को बांटने के बाद खुद भी ग्रहण करनी चाहिए.
* नवरात्रि के दिन पूरे घर के साथ मंदिर को भी साफ-सुथरा एवं पवित्र रखना चाहिए.
* अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन करवाकर उन्हें उपहार और दक्षिणा देकर खुशी-खुशी उनकी विदाई करें.
* अगर संभव हो तो हवन के साथ नवमी के दिन व्रत का पारण करें.
* फलाहारी में व्रत में खाने वाले सेंधा नमक का ही प्रयोग करना चाहिए
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.