Bihu 2020: असम का खास पर्व बिहू! जानें साल में तीन बार क्यों मनाते हैं? क्या है खासियत तीनों बिहू में!
बिहू, (फोटो क्रेडिट्स: Wikimedia Commons)

Bihu 2020: भारत के अधिकांश पर्व आध्यात्म और प्रकृति के बहुत करीब से जुड़े होते हैं. असम का लोकप्रिय बिहू भी कुछ ऐसे ही पर्वों में एक है. बिहु वास्तव में फसलों एवं किसानों से संबंधित पर्व है. बल्कि ऐसा कहा जाए कि अन्य भारतीय पर्वों की तुलना में बिहू का पर्व प्रकृति के कुछ ज्यादा करीब है तो शायद गलत नहीं होगा. क्योंकि साल में तीन बार मनाया जाने वाला यह पर्व हर बार फसलों की कटाई के समय ही मनाया जाता है. तीनों ही बिहु पर्व ‘भोगाली बिहू’, दूसरा ‘बोहाग बिहू’ और तीसरा ‘कोंगाली बिहू’ के नाम से लोकप्रिय हैं. आइए जानें इन पर्वों का महात्म्य, इतिहास एवं रोचक बातें...

पहले नई फसलों की पूजा करते है, फिर उसे खाते हैं किसान

इस पर्व पर कृषक अपनी फसलों की कटाई करते हैं और ईश्वर को अच्छी फसलों के लिए धन्यवाद देते हैं. बिहू पर नए अनाज पककर तैयार होते हैं और इन फसलों को भोग स्वरूप भगवान को चढ़ाते हैं. नई फसलों की पूजा के बाद उन्हीं नई फसलों का पकवान बनाकर भगवान को भोग चढ़ाया जाता है. इसके बाद ही किसान इन फसलों का खुद भी सेवन करता है और अतिरिक्त फसल को मंडी में पहुंचाता है.

तीन बिहू भोगाली, रोंगाली और कोंगाली बिहू

बिहू साल में तीन बार मनाई जाती है, जिस प्रकार एक खेत में तीन मुख्य फसलें होती हैं, उसी तरह बिहु का पर्व तीनों फसलों की कटाई के समय सेलीब्रेट किया जाता है. प्रथम ‘भोगाली’ अर्थात जो माघ माह में, दूसरा ‘रोंगाली’ यानी बोहाग बिहू और तीसरा ‘कोंगाली’ बिहू.

भोगाली बिहू

माघ महीने में संक्रांति के पहले दिन से ‘भोगाली बिहू’ मनाया जाता है. इसे ‘माघ बिहू’ भी कहते हैं. इस बिहू का नाम भोगाली इसलिए रखा गया है क्योंकि इस बिहू में खान-पान ज्यादा होता है. क्योंकि इस माह कटने वाले फसलों में तिल, चावल, नारियल, गन्ना जैसी फसलें आती हैं. इन फसलों से तरह-तरह के व्यंजन बनाए और खाए जाने का रिवाज होता है. यह भी पढ़ें: Kati Bihu 2019: असमिया समुदाय के प्रमुख त्योहारों में से एक है काटी बिहू, जानिए असम में क्यों मनाया जाता है यह पर्व और क्या है इसका महत्व

संक्रांति के पहले दिन को ‘उरूका’ कहते हैं. इस रात गांव के लोग मिलकर खेती की जमीन पर खर के मेजी बनाकर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के साथ भोज करते हैं. इस दिन कलाई की दाल खाने की विशेष परंपरा होती है. इस रात लोग आग जलाकर रात भर जागते हैं. प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व किसी नदी अथवा तालाब में स्नान करते हैं. स्नान के बाद खर से बने हुए मेजी को जला कर हाथ तापते हैं, तथा पेठा, दही, चिवड़ा आदि खाते हैं. इसी दिन संपूर्ण भारत में संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल इत्यादि पर्व भी मनाए जाते हैं.

रोंगाली बिहू

बैसाख अर्थात अप्रैल माह से शुरू होनेवाला यह बिहू सात दिन तक अलग-अलग रीति-रिवाज से मनाया जाता है. इसे रोंगाली बिहू के नाम से भी जाना जाता है. इसमें पहले दिन को गाय बिहू कहते हैं. इस दिन लोग सुबह अपनी गायों को नदी में ले जाकर नहलाते हैं. उसके बाद उन्हें लौकी, बैंगन आदि खिलाया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से पूरे साल गाएं स्वस्थ रहती हैं. शाम के समय जहां गाय बांधी जाती है, उनके लिए नई रस्सी का इस्तेमाल किया जाता है. औषधि वाले पेड़-पौधे जला कर मच्छर-मक्खी भगाए जाते हैं. इस दिन लोग दिन में केवल दही चिवड़ा ही खाते हैं.

पहले बैसाख में आदमी का बिहू शुरू होता है. उस दिन भी सभी लोग कच्ची हल्दी से नहाने के बाद नए कपड़े पहनकर पूजा-पाठ करते हैं और दही चिवड़ा एवं पेठा-लडडू इत्यादि खाते हैं. इसी दिन से असमिया लोगों का नया साल आरंभ माना जाता है. इस बिहू पर संक्रांति के दिनों से ही बिहू नाच-गाते हैं. इसमें 20-25 लोगों की एक मंडली होती है जिसमें युवक एवं युवतियां पारंपरिक साजों के साथ पारंपरिक सामूहिक बिहू करते हैं. इसी दौरान युवक-युवतियां अपने-अपने मनपसंद जीवन-साथी चुनते हैं और अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करते हैं, इसलिए असम में बैसाख माह में ज्यादा विवाह होते हैं.

कंगाली बिहू या काति बिहू

धान असम की मुख्य फसल है, इसलिए धान लगाने के बाद जब धान की फसल में बालियां आने लगती हैं, उस समय कीड़े धान की फसल को नष्ट कर देते हैं. इन कीड़ों से बचाने के लिए कार्तिक महीने की संक्रांति के दिन में शुरू होता है काति बिहू. जिसे कंगाली बिहू भी कहते हैं. इस बिहू को काति इसीलिए कहा जाता है क्योंकि उस समय फसलें हरी-भरी नहीं होतीं.

संक्रांति के दिन में आंगन में तुलसी का पौधे लगाया जाता है और इसमें प्रसाद चढ़ा कर दीया जलाया जाता है और भगवान से प्रार्थना की जाती है कि खेती ठीक से रखें.