Bhadariya Navami 2019: अक्षय तृतीया के समान होता है भडली नवमी का महत्व, 11 जुलाई के बाद नहीं होंगे मांगलिक कार्य
भगवान विष्णु (Photo Credits: Facebook)

Bhadli Navami 2019: सनातन धर्म में भडली नवमी (Bhadli Navami) का विशेष महत्व इसीलिए माना जाता है, क्योंकि इसके दो दिन पश्चात ही देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi)  शुरू हो जाती है और देवशयनी एकादशी के साथ ही किसी भी प्रकार के शुभ कार्य पर पूरी तरह प्रतिबंध लग जाता है. यह देवशयनी एकादशी से पहले का आखिरी शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat) होता है, जिसमें बिना कोई पंचांग देखे आप कोई भी शुभ कार्य शुरू कर सकते हैं. आइये जानें हमारे हिंदू धर्म में क्या महात्म्य होता है भडली नवमी का.

आषाढ़ मास की शुक्लपक्ष की नवमी तिथि के दिन संपूर्ण भारत में बड़ी धूमधाम के साथ भडली (भडल्या) नवमी मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व आज यानी 10 जुलाई को मनाया जा रहा है. आज के रवि योग के साथ-साथ गुप्त नवरात्रि का समापन भी रहेगा, इस वजह से भडली नवमी का महात्म्य बढ़ जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि भडली नवमी को अक्षय तृतीया के समान ही शुभ एवं मंगलकारी माना जाता है. अक्षय तृतीया की तरह भडली नवमी के दिन भी बिना पंचांग देखे किसी भी घड़ी कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न अथवा प्रारंभ कर सकते हैं. कहा जाता है कि इस विशेष तिथि के दिन जिसका भी विवाह होता है, उसका दांपत्य जीवन अत्यंत खुशहाल एवं समृद्धिशाली होता है. वह ताजिंदगी धन-धान्य एवं परिवार से संतुष्ट रहता है.

भडली नवमी का महात्म्य

गौरतलब है कि भडली नवमी के दूसरे दिन यानी ग्यारस से देवशयनी एकादशी शुरू हो जाती है. मान्यता है कि देवशयनी से चार माह पश्चात कार्तिक शुक्लपक्ष तक किसी भी तरह का शुभ एवं मंगल कार्य पर रोक लग जाता है. इतने लंबे समय तक प्रतिबंध लगने के कारण भडली नवमी का महत्व काफी बढ़ जाता है. अधिकांश घर परिवार में शादी के लिए यह आखिरी मौका होता है जब वह घर में शुभ विवाह का आयोजन कर सकते हैं, कोई शुभ कार्य शुरू कर सकते हैं

लक्ष्मी नारायण की होती है पूजा-अर्चना

शास्त्रों के अनुसार भडली नवमी के दिन भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा अर्चना की जाती है. बहुत-सी जगहों पर व्रत भी रखने का विधान है. भडली नवमी के दिन विष्णु भक्त को स्नान-ध्यान के पश्चात धुले अथवा नये वस्त्र धारण करके ही पूजा अर्चना करनी चाहिए. इस दिन व्रत रहने से पूजा एवं मन्नत की मान्यता बढ़ जाती है. पूजा के दरम्यान लक्ष्मी नारायण जी को फल, पीला अथवा लाल फूल, धूप, दीप, अगरबत्ती के साथ हल्दी, कुमकुम या केसर से रंगे हुए चावल, किशमिश, पिस्ता, बादाम, काजू, लौंग, इलायची और चांदी अथवा सोने का सिक्का चढ़ाना चाहिए. पूजा के पश्चात ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर विदा करने के उपरांत ही खाना खाना चाहिए. यह भी पढ़ें: Devshayani Ekadashi 2019: देवशयनी एकादशी से गहन निद्रा में चले जाते हैं भगवान विष्णु, जानें इसका महत्व, व्रत और पूजा की विधि

सिद्ध योग 

भडली नवमी के दिन इस बार सौभाग्यवश रवि योग भी पड़ रहा है, जिसे बेहद सिद्ध योग कहा जाता है. मान्यता है कि भडली नवमी के ही दिन इंद्राणी ने कठिन तप एवं पूजन करके देवराज इंद्र को पति के रूप में प्राप्त किया था. भडली नवमी के दिन वैवाहिक समारोह के साथ-साथ आभूषणों, जमीन-जायदाद, भवन एवं वाहन खरीदना बेहद शुभ माना जाता है. इसके दो दिन बाद ही चातुर्मास शुरू हो जाता है. इसके साथ ही किसी भी तरह के मांगलिक कार्यों पर अघोषित प्रतिबंध लग जाता है. इस अवधि में सिर्फ धार्मिक आयोजन सम्पन्न किये जा सकते हैं. विशेषकर इन चार मास तक भगवान विष्णु की ही पूजा अर्चना की जाती है.

विवाह का अबूझ मुहूर्त

उत्तर भारत में आषाढ़ शुक्लपक्ष की नवमी का विशेष महत्व है. इस तिथि को वैवाहिक बंधन के लिए अबूझ मुहूर्त का समय माना जाता है. मान्यता है कि जिन लोगों के विवाह किसी वजह से नहीं हो पा रहे हैं. अथवा शुभ मुहूर्त में कोई समस्या आ रही है तो उसे बिना पंचांग देखे, आज के ही दिन उसकी शादी करवा दी जाए तो उनका दांपत्य जीवन अत्यंत मधुर और सफल होता है. उनके जीवन में किसी भी तरह की नैराश्यता अथवा नकारात्मकता नहीं आने पाती.