American Independence Day 2019: स्वतंत्र अमेरिका की 243वीं जयंती, जानिए कैसे अमेरिकी क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत से दिलाई थी अपने देश को आजादी

आज स्वतंत्र अमेरिका की 243वीं जयंती मनाई जा रही है. स्वतंत्रता का जश्न मनाने के लिए प्रत्येक 4 जुलाई को अमेरिका में राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है. संसार में सर्वप्रथम लिखित संविधान 1789 ई. में संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका में लागू हुआ.

स्वतंत्र अमेरिका की 243वीं जयंती (Photo Credits: File Image)

American Independence Day 2019: सुविख्यात समुद्री नाविक क्रिस्टोफर कोलम्बस ने सन् 1492 में अमेरिकी महाद्वीप की खोज की थी. हालांकि अमेरिका पहुंचने वाला कोलम्बस पहला यूरोपीय नहीं था, लेकिन कोलम्बस ने यूरोपियों और अमेरिका के मूल निवासियों के बीच संबंधों को खूब बढ़ावा दिया. इसके बाद से ही यूरोप से लोगों का यहां आने का सिलसिला शुरू हुआ. कोलम्बस ने अमेरिका (America) के एक खूबसूरत द्वीप हिस्पानिओला पर बस्ती बसाने की प्रक्रिया शुरू की. इस प्रकार तरह अमेरिका की धरती पर स्पेनिश उपनिवेशवाद की शुरुआत हुई. लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा उठाया ब्रिटिश अधिकारियों ने. ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के सहारे उन्होंने शीघ्र ही संपूर्ण अमेरिका पर आधिपत्य जमा लिया. लेकिन अपने दमनात्मक रवैये के कारण ब्रिटिश हुकूमत (British Government) ज्यादा दिन यहां नहीं टिक सके. विरोध इतना बढ़ा कि 4 जुलाई 1776 में ब्रिटिश सेना को यहां से अपना बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ा. आज दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति अमेरिका अपनी आजादी का 243वीं वर्षगांठ (243rd Anniversary of American Independence Day) मना रहा है.

ब्रिटिश हुकुमत के कठोर रवैयों ने एकजुट किया अमेरिकी लोगों को

भारत की ही तरह अमेरिका भी कभी ब्रिटिश साम्राज्‍य का गुलाम था. यहां भी ब्रिटेन ने ईस्ट इंडिया कंपनी के सहारे उपनिवेश के लिए अमेरिका में कदम रखा था. लेकिन उनकी मंशा कुछ और थी. उपनिवेश बढ़ाने के साथ-साथ वह अमेरिकी धरती पर अपना कब्जा करते रहे. उस समय चूंकि ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति था, इसलिए किसी के विरोध करने का प्रश्न ही नहीं उठता था. धीरे-धीरे ब्रिटिश हुकूमत ने अमेरिकियों पर कठोर कानून लादने शुरू किये. जो मूल अमेरिकनों के लिए किसी भी कीमत पर हितकारी नहीं था. ब्रिटिश हुकूमत केवल चाबुक से बात करती थी. वास्तव में स्वतंत्रता संग्राम की यह लड़ाई ग्रेट ब्रिटेन और उत्तर अमेरिकी उपनिवेशों के बीच था. यही वजह थी कि जब ब्रिटिश हुकूमत की नापाक हरकतें बढ़ने लगीं तो अमेरिकियों ने खुले आम विद्रोह का जेहाद छेड़ दिया. उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के ऐरे-गैरे आदेशों को ठुकराना शुरू कर दिया. ब्रिटिश हुकूमत ने जब जवाब में कड़ा रुख अख्तियार किया तो विद्रोह भी उतना ही ज्यादा गहराता गया. यह 1765 के आसपास की बात है.

ब्रिटिश सरकार का दमनात्मक रवैया

ब्रिटिश सरकार के दमनात्मक एवं कठोर नियम-कानून अमेरिका में किसी को रास नहीं आ रहे थे. लिहाजा अमेरिकियों का विद्रोह लगातार बढ़ता जा रहा था. ब्रिटिश शासन से मुक्ति पाने के लिए लोग घरों से सड़कों पर आने लगे थे. 16 दिसंबर, 1773 को अमेरिका में 'बोस्टन टी पार्टी' की घटना ने अमेरिकी ब्रिटेन के खिलाफ अमेरिकी विद्रोहियों को और भी भड़का दिया. इसके बाद वह हुआ जिसका अहसास ब्रिटिश हुकूमत को भी नहीं थी.

क्या थी कहानी ‘बोस्टन टी पार्टी’ की

दरअसल ब्रिटिश संसद ने चाय व्यापार के सम्बन्ध में एक कानून बनाकर ईस्ट इंडिया कंपनी के मार्फत अमेरिका में सस्ती दर पर चाय बेचने की अनुमति दे दी थी. चाय का व्यापार बढ़ाने के लिए यह उनका सबसे कारगर कदम था. अमेरिका के शेष उपनिवेशवासियों को इस रियायत के पीछे षड़यंत्र की बू आई. उन्होंने सोचा कि यदि संसद व्यापारिक मामलों पर एकाधिकार रखेगी तो उपनिवेश के व्यापार को घाटा होगा. उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी के कुछ जहाज बोस्टन बंदरगाह पर खड़े थे. बोस्टनवासियों ने सारे जहाज़ों को लूट लिया और उसमें रखे 342 चाय के बक्सों को समुद्र में फेंक दिया.

ब्रिटिश संसद ने दमन की नीति का समर्थन करते हुए मेसाचुसेट्स एक्ट पास किया. ब्रिटिश सैनिक कमांडर को अमेरिकन प्रान्तों का राज्यपाल बना दिया गया. बोस्टन बंदरगाह के सारे व्यवसाय पर ताला लगा दिया गया. इसके पश्चात क्यूबेक एक्ट के तहद कनाडा की सीमा ओहायो नदी तक बढ़ा दी गई. रोमन कैथलिकों को विशेष सुविधा मुहैया करवाई गई.

और चरम पर पहुंची स्वतंत्रता की यह लड़ाई

ब्रिटिश हुकूमत की दमनात्मक नीतियों का प्रतिकूल असर उपनिवेशों पर पड़ा. वे आपस में संगठित हो गए. 5 सितम्बर 1774 ई. को फिलेडेलफिया में पहली कांग्रेस की बैठक हुई. उपनिवेश वासियों ने अपने अधिकारों का एक घोषणापत्र तैयार किया. ब्रिटिश संसद द्वारा पारित सारे कानूनों को समाप्त करने की मांग की गई. ब्रिटेन के साथ किसी भी प्रकार के आयात-निर्यात बंद करने के प्रस्ताव पर मुहर लगाई गयी. इसके पूर्व की लॉर्ड नॉर्थ उपनिवेशों के साथ समझौता प्रस्ताव रखते, तबतक युद्ध की घोषणा हो चुकी थी. ब्रिटिश हुकूमत वाले अमेरिकियों की स्वतंत्रता की यह लड़ाई चरम पर पहुंच गयी थी. यह भी पढ़ें: अमेरिकी सीनेट ने अमेरिका-मेक्सिको सीमा के लिए 4.5 अरब डॉलर की दी मंजूरी

'प्रतिनिधित्‍व नहीं तो कर नहीं' का नारा

इस घटना के तीन साल बाद फिलडेल्फिया में सम्पन्न द्वितीय महाद्वीपीय कांग्रेस अधिवेशन में ब्रिटेन से संयुक्त राज्य अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी गई. अमेरिका में आजादी की यह लड़ाई करीब 7 साल (1776 से 1783) तक चली. 1781 में अमेरिका और फ्रांस की संयुक्त सेना ने मिलकर लार्ड कार्नवालिस की ब्रिटिश सेना को ब्रिटिश वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया.

4 जुलाई, 1776 को डेलवेयर, पेन्सिलवेनिया, न्यू जर्सी, जॉर्जिया, कनेक्टिकट, मैसाचुसेट्स बे, मैरीलैंड, दक्षिण कैरोलिना, न्यू हैम्पशायर, वर्जीनिया, न्यूयॉर्क, उत्तरी कैरोलिना और रोड आइसलैंड ने ब्रिटिश हुकूमत की इतिश्री हो गयी. अमेरिका की आजादी के दौरान अमेरिकियों का नारा 'प्रतिनिधित्‍व नहीं तो कर नहीं' था. यह नारा 1765 में दिया गया. अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अंतिम लड़ाई जीती गयी. 30 अप्रैल, 1789 से 4 मार्च 1797 तक जॉर्ज वाशिंगटन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर रहे.

स्वतंत्रता का जश्न मनाने के लिए प्रत्येक 4 जुलाई को अमेरिका में राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है. संसार में सर्वप्रथम लिखित संविधान 1789 ई. में संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका में लागू हुआ. प्रजातंत्र की नींव भी सर्वप्रथम अमेरिका में ही रखी गई. इसीलिए गणतंत्र की जननी भी अमेरिका को ही कहा जाता है,

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