East India Company: व्यवसाय की आड़ में भारत में कदम रखने वाली ईस्ट इंडिया ने भारत पर पूर्णतः नियंत्रण तो हासिल कर लिया, मगर 1857 के सेना विद्रोह के बाद ब्रिटिश हुकूमत को लगा कि अगर ऐसा ही होता रहा तो भारत उनके हाथ से चला जायेगा, और वह भारत जैसा बड़ा उपनिवेश देश खोना नहीं चाहते थे. अंततः ब्रिटिश सरकार ने 02 अगस्त को ईस्ट इंडिया के कब्जे से भारत पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया, जिसके लिए एक विशेष विधेयक पारित किया गया और भारत पर सर्वोच्च प्रतिनिधित्व के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा वायसराय की उपाधि शुरुआत हुई. आइये जानते हैं किस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत पर ब्रिटिश हुकूमत ने अधिकार जमाया. यह भी पढ़े: 31 जनवरी: भारत में अंग्रेजी शासन के नींव की पहली ईंट, ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’
क्या था सत्ता हस्तान्तरण विधेयक?
सत्ता हस्तांतरण वाले इस विधेयक के प्रावधान में भारत पर शासन कर रही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भंग करने और उस शक्ति को ब्रिटिश सरकार को हस्तांतरित करने का आह्वान किया गया था. यूनाइटेड किंगडम के तत्कालीन प्रधानमंत्री लॉर्ड पामस्टर्न ने भारत के प्रशासन कमियों का हवाला देते हुए इस बिल को पेश किया, जो ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश सरकार को सत्ता हस्तांतरित करेगा. यह विधेयक 1858 में भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (जिसे अंग्रेजों ने 'भारतीय विद्रोह' नाम दिया) के अगले वर्ष विद्रोह के बाद के प्रभाव को शांत करने के लिए पारित किया गया था.
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी जो मूलतः एक ब्रिटिश ज्वाइंट स्टॉक कंपनी थी, की स्थापना भारतीयों के साथ व्यापार करने के लिए की गई थी. उपमहाद्वीप और उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत और बलूचिस्तान में हुए अचानक और हिंसक विद्रोह के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थे, इस वजह से भारत में भारी पैमाने पर तबाही हुई. नियंत्रण की कमी और घटना को होने देने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी की कड़ी आलोचना की गई. दुबारा ऐसा आपदा से बचने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को अपनी सारी शक्ति ब्रिटिश हुकूमत को सौंपनी पड़ी. अंततः ईस्ट इंडिया कंपनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया, जिसकी वजह से इसकी सारी प्रशासनिक शक्तियां ब्रिटिश सरकार के हाथों में चली गई, और इसके साथ ही भारत ब्रिटिश हुकूमत को हस्तांतरित हो गई.
1857 के विद्रोह से अंग्रेज भी भयभीत थे
साल 1857 का विद्रोह बिल्कुल अप्रत्याशित था और उसने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी. ब्रिटिश समाचार पत्रों ने अंग्रेजों पर भारतीयों के भयानक अत्याचारों की झूठी खबरें छापी, जिससे अंग्रेजों की भारतीयों के प्रति धारणाएं बदल गईं, क्योंकि मूल भारतीयों को बहुत सरल और सहज स्वभाव वाला माना जाता था, लेकिन ब्रिटिश तंत्र के कुप्रचार से अंग्रेज उन्हें खूनी और मुजरिम के रूप में देखने लगे थे. 1857 के गदर से अंग्रेजी हुकूमत भयभीत तो हुई, लेकिन धन का प्रबल स्रोत होने के कारण भारत उनके लिए एक महत्वपूर्ण उपनिवेश था. इसके अलावा भारत से उगाए जाने वाले टैक्स के कारण लंदन से किसी को सब्सिडी की आवश्यकता नहीं थी.
सेना का पुनर्गठन
1857 के इस विद्रोह से ब्रिटिश हुकूमत को भी अहसास हुआ कि भारत में उनका शासन दोषरहित नहीं था, इसमें सुधार की आवश्यकता थी, हालांकि वे जानते थे कि भारत में वे सुरक्षित नहीं हैं, इसमें सुधार के लिए उन्होंने सेना में पुनर्गठन किया. इसके तहत यूरोपीय सैनिकों की संख्या 80 हजार होगी, भारतीयों की संख्या कम होगी. सिपाहियों की भर्ती देश के विभिन्न हिस्सों से की जाएगी, विशेषकर उन क्षेत्रों से जो अंग्रेजों के प्रति तटस्थ थे और अलग-अलग भाषाएं बोलते थे, ताकि सैनिक एकता न होने पाए. सेना के कमांडिंग ऑफिसर को दंड देने का अधिकार बढ़ा दिया गया.
अंततः भारत पर ब्रिटिश सरकार काबिज हुई
1857 से पहले ब्रिटेन में कंपनी के कुशासन के विरुद्ध रोष उबल रहा था, जिसे ब्रिटिश सरकार परेशान थी. वह ऐसे समय की तलाश में थी, जिसके माध्यम से वह भारत को व्यापारिक कंपनी से छीन सकें. 1857 के विद्रोह के रूप में एक अवसर सामने आया जिसने लंदन में अधिकारियों को ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की अनुमति दी. 1857 का विद्रोह अंग्रेजों के लिए एक बड़ा झटका था. सैनिक विद्रोह को दबाने के बाद ब्रिटिश संसद ने 2 अगस्त 1858 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश सरकार को सत्ता हस्तांतरित करते हुए भारत सरकार अधिनियम पारित किया. 1857 की घटनाओं के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी की छवि इतनी ख़राब हो गई कि उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन करने का अधिकार हमेशा के लिए खो दिया.