Bhopal Gas Tragedy 36th Anniversary: भोपाल की हवाओं में आज भी घुला है वह जहर, जिसकी सजा भुगत रही है तीसरी पीढ़ी
भोपाल गैस त्रासदी (Photo Credits: Facebook)

Bhopal Gas Scandal 36th Anniversary: 2 दिसंबर 1984 रविवार की रात के करीब 12 बजे होंगे, देश का दिल कहे जानेवाले मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी में सब कुछ सामान्य था. लोग रोजमर्रा के कामकाज निपटाकर रजाइयों में दुबके हुए थे. कुछ नींद की आगोश में समा चुके थे. अचानक हवा में अजीब-सी गंध लोगों ने महसूस की. धीरे-धीरे गंध तीव्र से तीव्रतम होती गयी. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक हवा में क्या घुल गया? कुछ ने पानी से भीगे कपड़े नाक पर रखकर राहत पाने की कोशिश भी की, लेकिन स्थिति लगातार असहनीय होती जा रही थी. देखते ही देखते राह चलते राहगीर सड़कों पर अचेत होकर गिरने लगे.

घरों में भी बच्चों से लेकर वृद्धों तक सभी की हालत तत्क्षण बिगड़ती जा रही थी. थोड़ी देर में शहर में पुलिस एवं एंबुलेंस की सायरनें गूंजने लगी. प्रसारित हो रही खबरों से पता चला कि शहर के बीचो-बीच स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में जहरीली गैस मिथाइल आइसो साइनाइट की टंकी में लीक होने के कारण हवा विषैली हो रही है, कुछ ही पलों में हालत इतनी बिगड़ गयी कि सांस लेना मुश्किल होने लगा. जो लोग रजाई में दुबके पड़े थे, उसमें हजारों लोग इस काली रात की सुबह नहीं देख सके.

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मौत का तांडव अभी भी थमा नहीं था

हजारों व्यक्तियों की जान लेने के बावजूद मौत का तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा था. सुबह होते-होते शहर भर में चीख पुकार मच चुकी थी. भारी संख्या में लोग आंखों और में सीने में जलन एवं घुटन की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंच रहे थे. देखते ही देखते भोपाल और उसके आसपास के जिलों के सारे सरकारी, अर्ध सरकारी और गैर सरकारी अस्पताल तथा क्लीनिक मरीजों से भर चुके थे. सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2 दिसंबर की रात करीब 3000 निर्दोष लोगों की मौत हुई थी, सप्ताह भर में यह संख्या 8 हजार तक पहुंच चुकी थी. और जो बचे उनकी तीसरी पीढ़ी आज तक उस जहरीली गैस का दंश झेल रही है.

आज भी ऐसे सैकड़ों युवा हैं जो उस जहरीली गैस के प्रकोप से फेफड़े की बीमारी से ग्रस्त हैं. यद्यपि इस सच को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि इस खौफनाक गैस काण्ड में काल-कवलित हुए लोगों का सही आंकड़ा कभी सामने नहीं आया. सरकार द्वारा जारी एक शपथ पत्र में स्वीकार किया गया कि भोपाल के 5 लाख 20 हजार लोग इस जहरीली गैस से प्रभावित हुए थे, जिसमें 2 लाख तो मासूम बच्चे ही थे, जिनकी उम्र 15 साल से भी कम थी. भोपाल गैस त्रासदी दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा औद्योगिक हादसा माना जाता है.

मानवीय लापरवाही का नतीजा

कहा जाता है कि 1984 की उस काली रात यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी के प्लांट नंबर 'सी' स्थित टैंक नंबर 610 में भरी जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस में पानी भर गया था. अधिकारियों की लापरवाही का परिणाम यह हुआ कि केमिकल रिएक्शन से बने दबाव को टैंक सह नहीं पाया और खुल गया. इससे जहरीली गैस का रिसाव होने लगा, जिसने देखते ही देखते आसपास के पूरे इलाके को अपनी गिरफ्त में ले लिया. इस दुर्घटना का सबसे पहले शिकार फैक्टरी के इर्द-गिर्द बने झोपड़ों में रह रहे गरीब मजदूर, कर्मचारी और उनका परिवार बना.

फैक्टरी के करीब होने के कारण जहरीली गैस उनके पूरे शरीर में घुल गयी. कहते हैं कि गैस इतनी जहरीली थी कि झोपड़े में सोये मजदूर मात्र 3 मिनट में मौत की आगोश में समा चुके थे. दूसरी मानवीय भूल यह थी कि इस तरह की संभावित दुर्घटना से बचने के लिए फैक्टरी में जो अलार्म सिस्टम था, वह भी निष्क्रिय था, जिसके कारण अलार्म नहीं बजा. लिहाजा किसी को बचने-बचाने का मौका भी नहीं मिला.

फेल रही सरकारी मशीनरी और कानूनी खामियां

विश्व इतिहास की इस सबसे त्रासदीदायक औद्योगिक हादसे के लिए सरकारी और कानूनी खामियां भी कम जिम्मेदार नहीं थीं. भोपाल गैस काण्ड से पहले भी फैक्टरियों में छोटी-मोटी गैस लीक की घटनाएं हुईं, लेकिन न कंपनी ने इस दिशा में कोई कदम उठाया और ना ही सरकारी तंत्र ने किसी तरह की एक्शन लेने की कोशिश की. भोपाल गैस कांड का प्रमुख आरोपी वॉरेन एंडरसन, जो युनियन कार्बाइड फैक्टरी का प्रमुख था, उसे गिरफ्तार करने के बावजूद मामूली जुर्माने के बाद रिहा कर दिया गया.

एंडरसन कानूनी खामियों का फायदा उठाते हुए अमेरिका भाग गया. इसके बाद से भारत सरकार ने उसे अमेरिका से वापस लाने की तमाम कोशिशें कीं, लेकिन वे एंडरसन को वापस नहीं ला सके. अंततः 92 साल की उम्र में 2014 में एंडरसन की अमेरिका में मृत्यु हो गयी.