12 मार्च 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में 80 लोगों के साथ शुरु हुआ, यह 309 किलोमीटर का दांडी मार्च देखते ही देखते 50 हजार लोगों के विशाल जनसैलाब में बदल गया, जिसे देख कर ब्रिटिश अधिकारियों की नींद उड़ गई थी. जानें आखिर क्यों उठाया था महात्मा गांधी ने यह क्रांतिकारी और अहिंसक कदम? और क्या निकला था इसका निष्कर्ष?
क्या था इस व्यापक आंदोलन का मकसद
भारत पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के बाद ब्रिटिश सरकार भारतीयों पर तमाम तरह के कर अधिकतम धन उगाही करना चाहते थे. उन्होंने कर (Tax) नीति में व्यापक फेरबदलाव किया था. अंग्रेज अधिकारियों ने देखा कि नमक भारतीयों की रोजमर्रा की सबसे आवश्यक वस्तु है. लिहाजा उन्होंने आम भारतीयों को नमक बनाने, उसका संकलन करने या उसे बेचने पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया, और नमक खरीदने पर टैक्स का भुगतान जरूरी कर दिया. नमक जीवन के लिए आवश्यक वस्तु होने के कारण गांधी जी ने देशवासियों को इस असंवैधानिक नमक कानून से मुक्ति दिलाने और नमक पर हर भारतीयों को मौलिक अधिकार दिलाने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु करने की योजना बनाई.
क्या था डांडी मार्च?
ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में लगाये नमक कानून के खिलाफ गांधीजी ने साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) से समुद्र तटीय गांव दांडी तक पैदल मार्च की योजना बनाई. इसे दांडी मार्च, नमक-कानून अथव दांडी सत्याग्रह के नाम से जाना गया. 12 मार्च को शुरु हुई इस यात्रा में गांधीजी, सरोजिनी नायडू, सी राजगोपालचारी समेत 78 अनुयायी थे. 390 किमी की पैदल यात्रा 24 दिन में दांडी गांव पहुंचते-पहुंचते 50 हजार लोगों के जनसैलाब में बदल गई. 6 अप्रैल 1930 को प्रातः 6.30 बजे गांधीजी ने दांडी स्थित अरब सागर के समुद्र तट पर पहुंचकर अवैध नमक का उत्पादन कर कहा कि वे ब्रिटिश हुकूमत के हर काले कानून को इसी तरह ध्वस्त करेंगे, और अंग्रेज आलाकमान इस आंदोलन को अपने लिए एक चुनौती समझें कि अब उनके वापस जाने का समय आ गया है इस नमक-कानून के खिलाफ छिड़े आंदोलन ने देश भर में व्यापक जन-संघर्ष को जन्म दिया. यह भी पढ़ें : Sambhaji Maharaj Punyatithi 2022 Messages: छत्रपति संभाजी महाराज की पुण्यतिथि, इन मराठी WhatsApp Status, Images, Quotes के जरिए दें उन्हें श्रद्धांजलि
आंदोलन कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ये किया
महात्मा गांधी द्वारा जारी काले नमक-कानून के खिलाफ इस आंदोलन ने पूरे देश में अभूतपूर्व क्रांति ला दी. ब्रिटिश हुकूमत गांधीजी के इस सत्याग्रह आंदोलन एवं इसे जुड़े जनसैलाब को देख तिलमिला उठी थी. उन्होंने आंदोलनकारियों पर जमकर लाठियां भांजी. करीब 8 हजार आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. लेकिन इससे आंदोलन का प्रवाह किचिंत प्रभावित नहीं हुआ. यह अहिंसक आंदोलन एक साल तक चला. अंततः साल 1931 में ब्रिटिश अधिकारी इरविन-गांधी के बीच हुए समझौते के बाद नमक आंदोलन को ब्रेक लगा और गांधीजी जेल से रिहा किये गये. इस आंदोलन को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. ब्रिटिश हुकूमत के नमक काले कानून के खिलाफ दांडी मार्च एक ऐसी युगांतकारी घटना साबित हुई, जिसने न केवल ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला दी, बल्कि आजादी के सपने को साकार करने में नींव का पत्थर भी साबित हुई थी.