Bhoot Chaudas 2023: बुरी आत्माओं से मुक्ति हेतु इस दिन होती है काली पूजा! जानें इस संदर्भ में कुछ रोचक जानकारियां!
Bhoot Chaudas 2023

कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भिन्न-भिन्न जगहों पर भूत चौदस, काली चौदस एवं छोटी दीवाली के नाम से भी जाना जाता है. यह पर्व मुख्य दीपावली से एक दिन पूर्व मनाया जाता है. इस दिन परंपरानुसार माँ महाकाली की पूजा की जाती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसी दिन माँ काली प्रकट हुई थीं. मान्यता है कि इस दिन माँ काली की पूजा से घर में भूत-प्रेत अथवा बुरी आत्माओं से मुक्ति मिलती है. भूत चौदस रूप से पश्चिम बंगाल एवं असम में विशेष महत्व है. आइये जानते हैं भूत चौदस के महात्म्य, मुहूर्त, एवं कुछ हैरान भरे तथ्य..

भूत चौदस का महात्म्य

देवी पुराण में देवी काली उग्र स्वभाव वाली देवी के रूप में वर्णित है, जिन्होंने सृष्टि की रक्षार्थ आतताइयों का नाश किया था. काली चौदस के दिन कालिका के विशेष पूजन-अनुष्ठान से असाध्य बीमारियां दूर होती हैं, ब्लैक मैजिक के बुरे प्रभाव नष्ट होते हैं. राहु अथवा शनि दोष से मुक्ति हेतु माँ काली की पूजा अचूक मानी गई है. ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन रात्रि में काली देवी की पूजा के पश्चात काली चालीसा का पाठ करना चाहिए. ऐसा करने से नौकरी एवं रोजगार में चल रहे संकट मिटते हैं. तांत्रिक वर्ग इस दिन सिद्धियां हासिल करने के लिए महाकाली साधना करते हैं. यह भी पढ़ें : Karwa Chauth 2023: इस करवा चौथ पर बन रहे 3 विशिष्ठ योग कितने शुभ होंगे? जानें इसका महात्म्य, मुहूर्त, एवं पूजा-विधि!

बुरी आत्माओं से मुक्ति हेतु होती है मां चामुंडा की पूजा

मान्यताओं के अनुसार भूत चतुर्दशी की रात मां चामुंडा एवं माँ काली की पूजा होती है. माँ चामुंडा जहां अपने भयावह रूप से बुरी आत्माओं को भगाती हैं, वहीं महाकाली का भयावह रूप बुरी आत्माओं को घरों में प्रवेश करने से रोकती हैं. इसीलिए लोग अपने घर के विभिन्न प्रवेश द्वारों एवं खिड़कियों पर 14 मिट्टी के दीपक जलाते हैं. ध्यान रहे केवल 14 दीपक ही जलाने चाहिए.

भूत चतुर्दशी की मूल तिथि

कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी प्रारंभः 01.57 PM (11 नवंबर 2023) से

कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी समाप्तः 02.44 PM (12 नवंबर 2023) तक

काली चौदस की पूजा निशिकाल मुहूर्त में होती है.

काली पूजा मुहूर्तः 11.39 PM (11 नवंबर 2023) से 12.32 AM (12 नवंबर 2023) तक

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा

कहा जाता है कि नरकासुर ने कठोर तपस्या करके कई शक्तियां हासिल कर ली थी, जिसके बाद से वह निरंकुश होकर ऋषि-मुनियों एवं देवताओं को प्रताड़ित करता था. परेशान होकर देवतागण भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे. भगवान श्रीकृष्ण ने देवताओं को भयमुक्त रहने का आश्वासन देते हुए कहा कि वह शीघ्र ही नरकासुर का संहार करेंगे. उसी समय भविष्यवाणी हुई कि नरकासुर की मृत्यु उसकी पत्नी के हाथों होगी. तब श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के सहयोग से नरकासुर का संहार किया, जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया वह कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का दिन था.