Shaheed Bhagat Singh Jayanti: भारत को अंग्रेजी हुकूमत से निजात दिलाने वाले महान क्रांतिकारी नायकों में सरदार भगत सिंह एक अति विशिष्ठ नाम है. भगत सिंह ने युवावस्था में ही अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया, वह जो ठान लेते थे, उसे पूरा करके दम लेते थे. यही वजह है कि ब्रिटिश शासक उनके नाम से कांपते थे. उनकी साहसिकता, देशभक्ति और शहादत का जज़्बा आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है. 28 सितंबर 1907 को पंजाब में जन्में आजादी के इस महानायक की देश 117वीं जयंती मनाने जा रहा है. आइये जानते हैं इस महानायक के जीवन के कुछ रोमांचकारी और यादगार पहलू ..
प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा: सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान में) के बंगा नामक गांव में हुआ था. भगत सिंह अपने परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि से प्रभावित थे. उनके पिता और चाचा स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे, जिस वजह से उनमें छोटी उम्र से ही राष्ट्रवाद की भावना पैदा हुई.
कट्टरपंथी विचारधाराएं: कई समकालीनों के विपरीत, भगत सिंह ने मार्क्सवादी विचारधाराओं को अपनाया और लेनिन और मेजिनी सहित दुनिया भर के क्रांतिकारी लोगों से प्रेरित हुए. उनका मानना था कि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हिंसक विद्रोह की आवश्यकता है.
क्रांतिकारी संगठन: वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRSA) में शामिल हुए. उन्होंने कई महत्वपूर्ण क्रांतिकारी कार्य किए. तत्पश्चात उन्होंने युवाओं को संगठित करने हेतु 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना की. यह भी पढ़ें : World Contraception Day 2024: विश्व गर्भ दिवस पर कुछ प्रेरक कोट्स! सशक्तिकरण, वैकल्पिक व्यवस्था एवं प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं!
असेंबली में बम फेंकना: 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ दिल्ली असेंबली में बम फेंककर ब्रिटिश हुकूमत का ध्यान आकर्षित किया. साथ ही यह भी दर्शा दिया कि भारतीय युवा अन्याय के खिलाफ खड़े हो रहे हैं.
भूख हड़ताल: कारावास के दौरान, भगत सिंह राजनीतिक कैदियों के लिए बेहतर इलाज की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर चले गये. उन्होंने भारतीय कैदियों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित किया और व्यापक जन समर्थन प्राप्त किया.
न्यायालय में प्रदर्शन और गिरफ्तारी: गिरफ्तारी के बाद, भगत सिंह ने अपने विचारों को साझा करने का एक बड़ा मंच पाया. उन्होंने अदालत में अपने विचारों को प्रस्तुत किया, और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे.
फांसी का सामना: 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी दी गई. उन्होंने अपने अंतिम समय में भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. उनका यह साहस और निष्ठा आज भी युवाओं को प्रेरित और प्रभावित करती है.
अंतिम पत्र: फांसी पर झूलने से पहले, उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के नाम एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपने विचारों और स्वतंत्रता के प्रति अपने समर्पण को व्यक्त किया. यह पत्र आज भी प्रेरणा का स्रोत है.