Bathukamma Festival 2022: कौन हैं 'बथुकम्मा'? क्यों कहते हैं इसे फूलों का पर्व? जानें 8 दिवसीय इस महापर्व का महत्व एवं पूजा विधि!
Bathukamma Festival

तेलंगाना को नये राज्य के रूप में मान्यता मिलने के साथ ही एक उत्सव बथुकम्मा की परंपरा शुरू हुई. फूलों और स्थानीय खूबसूरत लड़कियों के नृत्य एवं गीत से सजे इस उत्सव में एक बार जिसने भी शिरकत की वह इसे देखने एक बार तेलंगाना जरूर आयेगा.

भारत के दक्षिण में स्थित तेलंगाना राज्य में लड़कियों द्वारा मनाया जाने वाला नृत्य एवं गीतों से सजा पर्व है, बथुकम्मा. इसे बतुकम्मा एवं बठुकम्मा आदि के नाम से भी पुकारा जाता है. यह पर्व शालिवाहन संवत की अमावस्या से शुरू होकर नौ दिनों (25 सितंबर से 3 अक्टूबर 2022) तक मनाया जाता है. तेलुगु में बथुकम्मा का अर्थ है, जीवन में वापस आना माँ.’ वास्तव में यह देवी सती से वापस लौटने की प्रार्थना है. मान्यता है कि देवी सती ही माता पार्वती के रूप में लौटी थीं, इसीलिए यह पर्व देवी पार्वती यानी गौरी को समर्पित माना जाता है. इस दिन मां गौरी के मंदिर को फूलों से सजाया जाता है. इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि यह पर्व स्त्री-सम्मान के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. यह भी पढ़ें : World Alzheimer’s Day 2022 Quotes: विश्व अल्जाइमर दिवस पर इस रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए शेयर करें ये प्रेरणादायक कोट्स

बथुकम्मा की पूजा-विधि

अमावस्या की सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत्ति होने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें. घर के मुख्य आंगन के एक हिस्से में गाय के गोबर से लीप कर चौक बनाएं. चौक में गोपुरम तैयार करें. इसे रंग बिरंगे फूलों से सजाएं. इसके बाद धूप एवं दीप जलाकर देवी गौरी की पूजा की जाती है. इस दरम्यान स्थानीय लड़कियां रंग बिरंगी पोशाक पहनकर गोपुरम के चारों ओर लोक नृत्य करते हुए गाती हैं. यह प्रक्रिया नौ दिनों तक चलती है, हर दिन गोपुरम पर फूलों की एक परत चढ़ाते हैं. अंतिम दिन यह गोपुरम बड़ा और अत्यंत आकर्षक बन जाता है. इन नौ दिनों तक भिन्न-भिन्न किस्म के पकवान भी गोपुरम पर चढ़ाये जाते हैं. अंतिम दिन आसपास के गांव के लोग सामूहिक रूप से गोपुरम के दर्शन एवं पूजा करते हैं और आनंद उठाते हैं.

बथुकम्मा पर्व का महत्व

इसे फूलों का पर्व भी कहा जा सकता है, दरअसल वर्षा ऋतु के कारण पृथ्वी गीली रहती है, और तमाम किस्म के फूल खिलने लगते हैं. फूलों के कारण प्रकृति में बहार आ जाती है. लोग इस पूजा के माध्यम से प्रकृति को धन्यवाद देते हैं. इसके साथ-साथ यह पर्व तेलंगाना की संस्कृति, सभ्यता एवं परंपराओं को भी दर्शाता है. इस पर्व में स्त्री को विशेष सम्मान दिया जाता है. आठ दिवसीय इस पर्व में प्रत्येक दिन गोपुरम पर फूलों का परत चढ़ाते हैं. आठवें दिन तक आते-आते यही गोपुरम मंदिर की आकृति सरीखा बन जाता है. महिलाएं प्रतिदिन इसकी पूजा करती है. बथुकम्मा की पूजा महालय अमावस्या से प्रारंभ होकर नवरात्रि के अष्टमी तक पूरे धूमधाम के साथ मनाया जाता है. अष्टमी के दिन गोपुरम को करीबी नदी अथवा जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है.

बथुकम्मा की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार दैत्यराज महिषासुर के साथ लंबे युद्ध के पश्चात उसका संहार करने के बाद वे बहुत थक गईं, और युद्ध के पश्चात वे गहन निद्रा में लीन हो गईं. लोगों ने उन्हें जगाने के लिए प्रार्थना एवं पूजा पाठ आदि किया. अंततः दशमी के दिन वह गहन निद्रा से बाहर आईं. कहते हैं इसके बाद से ही इस दिन को बथुकम्मा के रूप में मनाया जाने लगा.