बगलामुखी जयंती सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण दिवस है. इस दिन श्रद्धालु देवी बगलामुखी की पूजा करते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी बगलामुखी सच्चे मन और विधि-विधान से पूजा-व्रत करने से शत्रुओं का नाश होता है, कोर्ट-कचहरी में चल रहे विवाद समाप्त होते हैं, और जीवन में आनेवाली सभी समस्याओं तथा नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है. आइये जानते हैं बगलामुखी के संदर्भ में कुछ दिव्य जानकारियां...
कौन हैं माँ बगलामुखी?
वस्तुतः बगला संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है दुल्हन. अर्थात दुल्हन की तरह अलौकिक सौंदर्य और अपार शक्ति के कारण देवी का नाम बगलामुखी पड़ा. देवी को पीतांबरा, बगला, वल्गामुखी, वागलार्नुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है. मां बगलामुखी मंत्र स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करने में मदद करता है. देवी बगलामुखी संपूर्ण ब्रह्मांड की रचयिता नियंत्रक एवं संहारक हैं. वह आदिशक्ति हैं का ही एक स्वरूप हैं, जो संपूर्ण ब्रह्मांड की उपस्थिति की व्याख्या हैं, जिनके बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती. वह आठवीं महाविद्या हैं. देवी के 108 विशिष्ट नाम हैं. रत्नों से जड़ित सिंहासन पर विराजमान होकर देवी शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी बगलामुखी दशमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं. वह संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का अवतार हैं और शत्रुओं के नाश, वाणी सिद्धि और वाद-विवाद में विजय के लिए इनकी पूजा की जाती है. यह भी पढ़े :Ganga Saptami 2024: ‘गंगा सप्तमी’ पर मोक्ष-दायिनी ‘गंगा’ पर कोट्स के जरिये भेजें अपनी शुभकामनाएं!
बगलामुखी का महात्म्य
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार देवी बगलामुखी के प्रकाट्य को ही बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है. देवी बगलामुखी को माता पीतांबरा या ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहते हैं. उनके मस्तक पर पीले रंग की बिंदी और सुनहरे रंग का चंद्रमा सुशोभित होता है. मां बगलामुखी के मंत्रों का जाप कर स्वाधिष्ठान चक्र की कुंडलिनी को जागृत किया जाता है. माँ बगलामुखी का व्रत-अनुष्ठान करने वालों को इस दिन भोजन दान अवश्य करना चाहिए. देवी बगलामुखी वह माँ हैं, जो किसी की कुंडली में मंगल ग्रह से संबंधित सारे दोषों एवं समस्याओं का निराकरण कर भक्त पर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं.
मां बगलामुखी की पूजा की तिथि और शुभ समय
वैदिक पंचांग के अनुसार बगलामुखी जयंती हर वर्ष वैशाख माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है. इस साल बगलामुखी जयंती 15 मई 2024 को मनाई जाएगी.
वैशाख शुक्ल पक्ष अष्टमी प्रारंभः 04.19 AM (15 मई 2024, बुधवार)
वैशाख शुक्ल पक्ष अष्टमी समाप्तः 06.22 AM (16 मई 2024, गुरुवार)
हिंदू शास्त्रों के अनुसार 15 मई को उदयातिथि होने से इसी दिन मां बगलामुखी की पूजा एवं व्रत किया जाएगा.
पूजा का शुभ मुहूर्तः 01.05 PM (14 मई 2024) से अगले दिन 05.49 AM तक पूजा का शुभ मुहूर्त है, दैवयोग से इसी घड़ी में सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है, इससे पूजा का महत्व बढ़ जाता है.
बगलामुखी जयंती पूजा विधि
देवी बगलामुखी जयंती के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर, पीला वस्त्र धारण करें, क्योंकि माँ बगलामुखी को पीला रंग अत्यंत प्रिय है. मंदिर एवं स्थल के आसपास की साफ-सफाई कर गंगाजल का छिड़काव करें. अब एक साफ-सुथरी छोटी चौकी मंदिर के सामने रखकर इस पर पीला वस्त्र बिछाएं. एवं इस पर माँ बगलामुखी की प्रतिमा तस्वीर स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित करें, और निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा जारी रखें.
'क्क ऐं ऐ क्क ह्रीं बगलामुखी ईशानाय भूतादिपतये,
वृषभ वाहनाय कर्पूर वर्णनाय त्रिशूल हस्ताय सपरिवाराय,
एहि एहि मम्। विघ्नान् विभंज्जय विभंज्जय,
क्क मम पत्नी अस्य अकाल मृत्यु मुखं मृत्यु स्तम्भय स्तम्भ्य,
क्क हृीं मम पत्नी अस्य आकाल मृत्यु मुखं भेदय भेदय,
क्क वश्यम् कुरू कुरू, क्क हृीं बगलामुखि हुम फट् स्वाहा।'
दाएं हाथ में पीले चावल, हल्दी, पीला फूल और कुछ सिक्के लेकर माँ बगलामुखी की पूजा एवं व्रत का संकल्प लें. देवी को पीले रंग की चुनरी चढ़ाने के बाद पीले फूलों का हार पहनाएं. इसके पश्चात दूध से बनी पीले रंग की मिठाई एवं पीला फल अर्पित करें. पूजा के अंत में माँ बगलामुखी की आरती उतारें. संध्याकाल में देवी के नाम किसी पवित्र नदी अथवा सरोवर में दीप-दान करें. मान्यता है कि इससे जीवन में आ रही सारी बाधाएं कट जाती हैं. अगले दिन सुबह-सवेरे स्नान-ध्यान करने के पश्चात ही व्रत तोड़ें.