धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि अजा एकादशी का व्रत रखने वालों को अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद के कृष्णपक्ष की एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है. हर एकादशी की तरह इस एकादशी पर भी भगवान श्रीहरि के नाम का व्रत एवं पूजा-अर्चना की जाती है. ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि अजा एकादशी रखने वाले जातक को अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 2 सितंबर गुरुवार को अजा एकादशी का व्रत रखा जायेगा. आइए जानें अजा एकादशी का महत्व, पूजा विधान मुहूर्त एवं इससे जुड़ी पारंपरिक कथा.
अजा एकादशी का महात्म्य
महाभारत युद्ध में अर्जुन के गांडीव से लाखों सैनिकों के मारे जाने से व्यथित हो भगवान श्रीकृष्ण से कहा. हे पार्श्व, मेरे हाथ लाखों बेगुनाह मारे गये हैं. इस महापाप को नष्ट करने का कोई उपाय बताएं. श्रीकृष्ण ने अर्जुन से अजा एकादशी का महात्म्य बताते हुए उन्हें भी यह व्रत रखने का सुझाव दिया. श्रीकृष्ण ने कहा, हे अर्जुन, भाद्रपद के कृष्णपक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं. इस दिन व्रत एवं भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की पूजा करने से मानव के सौ जन्मों के पाप कर्मों का नाश हो जाता है. यह एकादशी वस्तुतः अशुभ प्रभावों को दूर पर शुभ फल देनेवाली होती है. इस व्रत को करने से जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
व्रत एवं पूजा विधान
अन्य एकादशियों की तरह अजा एकादशी के व्रत में भी प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर सूर्य को जल चढ़ाएं. इसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अब शुभ मुहूर्त के अनुरूप एक छोटी सी चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर गंगाजल का छिड़काव करें. अब स्वयं पूर्व की ओर मुख करके बैठें. चौकी पर पानी भरा मिट्टी का कलश स्थापित करें. भगवान श्रीहरि की धातु की प्रतिमा चौकी पर स्थापित करके धूप दीप प्रज्जवलित करें. भगवान विष्णु का आह्वान करें. इसके पश्चात श्रीहरि की प्रतिमा के समक्ष पीले फल, पीले फूल, मिष्ठान, अक्षत, रोली,
तुलसी का पत्ता, लौंग, चंदन, सुपारी और नारियल अर्पित करें. श्रीहरि व लक्ष्मीजी की पूजा के दरम्यान ‘ॐ अच्युताय नमः’ मन्त्र का 108 बार जाप करें. अब पूरे दिन फलाहार रहते हुए शाम के समय श्रीहरि के सामने गाय के घी का दीप प्रज्जवलित करते हुए पूजा करें, और अजा एकादशी की पारंपरिक कथा सुनें अथवा सुनाएं, अंत में आरती उतारें. संभव हो तो रात्रि जागरण करें. अगले दिन प्रातः स्नानादि कर ब्राह्मणों को वस्त्र एवं दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें और इसके बाद व्रत का पारण करें. यह भी पढ़ें : Aja Ekadashi 2021 HD Images: अजा एकादशी पर इन मनमोहक WhatsApp Wishes, Facebook Messages, GIF Greetings, Wallpapers के जरिए दें शुभकामनाएं
अजा एकादशी (3 सितंबर 2021) का शुभ मुहूर्त
एकादशी प्रारंभः 06.21 AM से (02 सितंबर 2021)
एकादशी समाप्तः 07.44 AM तक (03 सितंबर 2021)
अजा एकादशी की व्रत कथा
प्राचीनकाल में हरिश्चंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा थे. वे सत्य के उपासक एवं सिद्धांतवादी शासक थे. एक घटना क्रम के कारण उन्हें अपना राजपाट त्याग देना पड़ा. सच की रक्षा के लिए उन्हें अपनी पत्नी, पुत्र और यहां तक कि खुद को भी बेच देना पड़ा. वे राजा से चांडाल बनकर इंसानों के मृत देह को जलाना और जरूरत पड़ने पर मृतक के कपड़े पहनकर गुजर करना पड़ता था. अकसर बेचैन होकर वह सोचा कि वह कहां जाये, ताकि स्वयं का उद्धार कर सकें. एक दिन श्मशान भूमि पर गौतम ऋषि पधारे. हरिश्चंद्र ने उन्हें प्रणाम करते हुए अपनी सारी कहानी बताई. उऩकी दुःख कथा सुनकर गौतम ऋषि कहने लगे, हे राजन, आज से सातवें दिन अजा एकादशी आयेगी. तुम पूरे विधि-विधान से उस पूरे दिन व्रत रहते हुए श्रीहरि की पूजा करना. इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जायेंगे. अजा एकादशी के दिन गौतम ऋषि के कथनानुसार हरिश्चंद्र ने व्रत रखते हुए भगवान श्रीहरि की पूजा-अर्चना की. शीघ्र ही उसके सारे पाप नष्ट हो गये. उनका मृत पुत्र जीवित हो गया, पत्नी के साथ वह पुनः राजसिंहासन पर बैठे. जीवन की सारी खुशियां मनाते हुए उन्हें बैकुण्ठधाम की प्राप्ति हुई.