Valentine's Day or Black Day: सोशल मीडिया पर आए दिन कुछ न कुछ चौंकाने वाली खबरें वायरल होती रहती हैं. खबरें कितनी सच्ची होती हैं अथवा झूठी, इस पर अकसर बहस होती है. लेकिन सच सच होता है और झूठ झूठ. अंततः सच्चाई सामने आ ही जाती है. पिछले कुछ सालों से एक और चौंकाने वाली खबरों ने लोगों को हिला कर रख दिया है. इस खबर के अनुसार ब्रिटिश सरकार ने सरदार भगत सिंह, राजगुरू एवं सुखदेव को 23 मार्च 1931 को नहीं बल्कि 14 फरवरी 1931 को ही फांसी पर चढ़ा दिया था.
लेकिन जब इतिहास के पन्ने खंगाले गये तो सच्चाई सामने आई कि भगत सिंह और उनके दोनों क्रांतिकारी साथियों को 24 मार्च को फांसी देने का दिन मुकर्रर किया गया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 23 मार्च को ही गुपचुप तरीके से फांसी पर चढ़ा दिया, क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत को भय था कि इनकी फांसी की खबर से जनक्रांति भड़क सकती है, जिस पर नियंत्रण रख पाना आसान नहीं था. आइये इस खबर की तह तक चलते हैं.
मुख्य मुद्दा वेस्टर्न कल्चर का?
प्रत्येक वर्ष की 14 फरवरी को जब सारी दुनिया वैलेंटाइन डे मनाती है, बहुत से भारतीय इस दिन को पश्चिमी ट्रेंड का मुद्दा बनाकर इसका विरोध करते हैं, वे इस दिन को ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ के रूप में मनाने का अभियान चलाना चाहते थे. वहीं कुछ लोग वायरल खबरों के आधार पर इस दिन को काला दिवस के रूप में अंकित करना चाहते हैं.
वैलेंटाइन डे नहीं काला दिवस!
गत कुछ वर्षों से हर वैलेंटाइन-डे के दिन एक व्हाट्सएप संदेश वायरल हो रहा है कि 14 फरवरी 1931 के दिन ब्रिटिश हुकूमत ने हमारे तीन युवा क्रांतिकारियों भगत सिंह, राजगुरू एवं सुखदेव को गुपचुप तरीके से फांसी पर लटकाया था. व्हाट्सएप पर यह संदेश भी रहता है कि 14 फरवरी के दिन को हमें वैलेंटाइन-डे के रूप में नहीं बल्कि तीन युवा और महान क्रांतिकारियों की शहादत के प्रतीकस्वरूप काला दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए.
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उधर वायरल हुई इस खबर में कोई सच्चाई नहीं थी. क्योंकि इतिहास के पन्नों में यही दर्ज है कि भगत सिंह, सुखदेव एवं बटुकेश्वर को 23 मार्च के 1931 के दिन ही फांसी पर चढ़ाया गया था.
सोशल मीडिया का मिथ्य
पिछले कुछ सालों से वैलेंटाइन डे पर हो रहे इस मिथ्य खबर का जगह-जगह पर्दाफाश किया गया. इसके बावजूद हर वर्ष वैलेंटाइन डे पर व्हाट्सएप पर फिर से यही खबर फैलकर सोशल मीडिया के अलग-अलग मंचों पर प्रसारित कर दिया. जबकि इस गलत खबर कि 14 फरवरी को भगत सिंह व उनके साथियों को फांसी की सजा गई थी का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं दे सका. तब उन्होंने अपने दावों को पुख्ता करने के लिए एक नया सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया.
साल 2017 में कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने दावा किया कि भगत सिंह और उनके दो साथी क्रांतिकारियों को वास्तव में 14 फरवरी 1931 को फांसी की सजा सुनाई थी, और 23 मार्च को फांसी दी गयी थी.
प्रेम दिवस के बजाय काला दिवस?
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कार्यकर्ताओं ने दावा किया था कि 14 फरवरी 1931 के दिन तीनों महान क्रांतिकारियों को लाहौर जेल में मौत की सजा सुनाई गयी थी, अलबत्ता उन्हें फांसी 23 मार्च को दी गयी. हांलाकि बाद में इस खबर की भी कोई पुष्टि नहीं हो सकी, क्योंकि मूल सच्चाई यह थी कि भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को 14 फरवरी नहीं बल्कि 7 अक्टूबर 1930 को ही फांसी की सजा सुना दी गयी थी.
14 फरवरी की तिथि का इस संदर्भ में कोई महत्व ही नहीं
दरअसल तीनों क्रांतिकारियों की मृत्यु की सजा और फांसी पर लटकाये जाने का 14 फरवरी से कोई ताल्लुक ही नहीं है. सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली में केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. दिल्ली बम फेंकने के मामले की सुनवाई 7 मई 1929 को शुरु हुई और 12 जून को दोनों को दोषी करार देते हुए लाहौर जेल ले जाया गया.
भगत सिंह लाहौर काण्ड के भी आरोपी थे. उन पर ब्रिटिश अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या का आरोप था. इस मामले में मुकदमा 10 जुलाई को शुरू हुआ था.