कोलकाता, 4 नवंबर : पिछले कुछ वर्षों से पश्चिम बंगाल में राज्य प्रशासन, खासकर पुलिस पर राज्य सरकार या सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ किसी भी तरह की आलोचना, व्यंग्य और सोशल मीडिया मीम्स के प्रति असहिष्णुता का आरोप लगाया गया है. राज्य प्रशासन और सत्तारूढ़ दल की यह असहिष्णुता दो रूप ले रही है. पहला है त्वरित पुलिस कार्रवाई, जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी के किसी शीर्ष नेता के बारे में नकारात्मक सार्वजनिक बयान देने वाले या यहां तक कि सोशल मीडिया पर कोई मीम पोस्ट करने या साझा करने वाले किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी शामिल है.
दूसरा है किसी विपक्षी दल या यहां तक कि किसी गैर-राजनीतिक संगठन द्वारा किसी कार्यक्रम या रैली के आयोजन की अनुमति को तत्काल अस्वीकार करना, अगर वह किसी ऐसे मुद्दे पर हो जो सरकार के खिलाफ हो. यदि उक्त रैली या कार्यक्रम राज्य के किसी शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी या सत्तारूढ़ दल के नेता के आवास या कार्यालय के नजदीक हो तो अस्वीकृति भी अपरिहार्य है. ऐसे मामलों में, आयोजकों को अनुमति के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ता है और बाद वाला हमेशा आगे बढ़ने की अनुमति देता है. यह भी पढ़ें : गुजरात में हुई गिरफ्तारियां अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति राज्य सरकार की असहिष्णुता की खोलती हैं पोल
पुलिस प्रशासन को ऐसे मुद्दों पर असहिष्णु और अतिरंजित दृष्टिकोण के लिए कई बार कलकत्ता उच्च न्यायालय की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा है. पिछले महीने, कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जय सेनगुप्ता की एकल-न्यायाधीश पीठ ने तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी के लोकसभा सदस्य अभिषेक बनर्जी पर एक सोशल मीडिया मीम बनाने के लिए मुर्शिदाबाद जिले के लालगोला से एक युवक को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को फटकार लगाई थी. पुलिस ने गिरफ्तार युवक का लैपटॉप भी जब्त कर लिया है.
पुलिस से सवाल करते हुए कि युवक को बिना नोटिस दिए क्यों गिरफ्तार किया गया, न्यायमूर्ति सेनगुप्ता ने इस बात पर भी नाराजगी व्यक्त की कि कैसे कोलकाता के उत्तरी बाहरी इलाके बारानगर से एक पुलिस टीम इतनी तत्परता के साथ एक युवक को गिरफ्तार करने के लिए दूर लालगोला तक गई. उन्होंने पुलिस को युवक का लैपटॉप तुरंत लौटाने का भी निर्देश दिया. इस साल मार्च में एक विपक्षी नेता को गिरफ्तार करने में अतिउत्साह के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पुलिस बल की निंदा की थी. राज्य कांग्रेस नेता और कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील कौस्तव बागची ने मीडिया से बातचीत के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के जीवन पर एक पूर्व नौकरशाह द्वारा लिखी गई किताब का जिक्र किया था.
उसी रात, उत्तरी कोलकाता के बर्टोला पुलिस स्टेशन की एक पुलिस टीम उत्त24 परगना जिले के बैरकपुर में बागची के आवास पर पहुंची और तनाव भड़काने के आरोप में गिरफ्तार करने से पहले पूरी रात उससे पूछताछ की. हालांकि भारतीय दंड संहिता की गैर-जमानती धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया, बागची को गिरफ्तारी के आठ घंटे के भीतर जमानत पर रिहा कर दिया गया. बाद में, बागची ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया और पुलिस पर अति उत्साही होने का आरोप लगाया. अदालत ने बागची को बिना कोई नोटिस दिए गिरफ्तार करने के लिए शहर पुलिस की निंदा की और यह भी कहा कि इस तरह की पुलिस कार्रवाई इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए दिशानिर्देशों के खिलाफ थी. उच्च न्यायालय ने शहर के पुलिस आयुक्त को मामले में बर्टोला पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी की भूमिका की जांच करने का भी निर्देश दिया.
दरअसल, 34 साल के वाम मोर्चा शासन को समाप्त कर 2011 में पार्टी के सत्ता में आने के ठीक एक साल बाद ही तृणमूल कांग्रेस की असहिष्णुता स्पष्ट हो गई. जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्रा को 2012 में ममता बनर्जी और तत्कालीन तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव मुकुल रॉय से संबंधित एक कार्टून फॉरवर्ड करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. अप्रैल 2012 में, महापात्रा ने उस कार्टून को ईमेल के माध्यम से कोलकाता के दक्षिणी बाहरी इलाके में एक हाउसिंग सोसाइटी के कुछ सदस्यों को भेज दिया. समूह में से किसी ने स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई. जल्द ही महापात्रा और हाउसिंग कॉम्प्लेक्स के तत्कालीन सचिव सुब्रत सेनगुप्ता, जो पेशे से इंजीनियर थे, को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए के तहत मामला दर्ज किया गया.
हालाकि महापात्रा और सेनगुप्ता दोनों को जमानत पर रिहा कर दिया गया, लेकिन मामला जारी रहा. 2016 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईटी अधिनियम की धारा 66ए को रद्द करने और सभी राज्य सरकारों को इस अधिनियम के तहत सभी मामलों को बंद करने और वापस लेने के आदेश के बाद भी पुलिस ने महापात्रा के खिलाफ मामला जारी रखा. आख़िरकार 11 साल की लंबी लड़ाई लड़ने के बाद 2023 की शुरुआत में महापात्रा को कोलकाता की एक निचली अदालत ने सभी आरोपों से बरी कर दिया. दूसरे आरोपी सेनगुप्ता की 2019 में 80 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई.