नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को एक याचिकाकर्ता को कोर्ट में अनौपचारिक भाषा, जैसे 'yeah', का उपयोग करने पर फटकार लगाई. CJI ने कोर्ट की मर्यादा की याद दिलाते हुए कहा, "यहां 'yeah' मत कहिए, 'yes' कहिए. यह कोई कॉफी शॉप नहीं, बल्कि एक अदालत है." CJI चंद्रचूड़ ने आगे कहा, "मुझे थोड़ा 'yeah' कहने से एलर्जी है." यह घटना तब घटी जब कोर्ट एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने एक न्यायाधीश के खिलाफ इन-हाउस जांच की मांग की थी क्योंकि न्यायाधीश ने उसे राहत नहीं दी थी.
याचिकाकर्ता, जो स्वयं पक्षकार के रूप में अदालत में उपस्थित थे, ने एक याचिका का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को प्रतिवादी के रूप में जोड़ा था. उन्होंने बताया कि यह याचिका मई 2018 में दायर की गई थी.
इस याचिका पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए, CJI चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता से कहा, "आप किसी न्यायाधीश को प्रतिवादी बनाकर जनहित याचिका कैसे दायर कर सकते हैं? कुछ गरिमा होनी चाहिए. आप सिर्फ यह नहीं कह सकते कि मुझे इस न्यायाधीश के खिलाफ इन-हाउस जांच चाहिए. जस्टिस रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रहे हैं. वह भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं. आप सिर्फ इसलिए यह नहीं कह सकते कि मुझे जांच चाहिए क्योंकि आप अदालत में सफल नहीं हुए. हम इस तरह की याचिकाएं बर्दाश्त नहीं कर सकते."
याचिकाकर्ता का कहना था कि जस्टिस गोगोई ने उनकी याचिका को गलत तरीके से खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने अपनी सेवा से बर्खास्तगी को चुनौती दी थी. उनके अनुसार, फैसले में "कानून की गंभीर गलतियां" थीं.
CJI ने स्पष्ट रूप से कहा, "चाहे फैसला सही हो या गलत, सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय हो चुका है. आपकी पुनर्विचार याचिका खारिज हो चुकी है. अब आपको क्यूरिटिव याचिका दायर करनी चाहिए, लेकिन आप कह रहे हैं कि आपको क्यूरिटिव नहीं करनी है."
जोर से बोलने पर वकील को लगाई थी फटकार
इससे पहले, 9 सितंबर को, कोलकाता बलात्कार और हत्या मामले की सुनवाई के दौरान भी CJI चंद्रचूड़ ने एक वकील को जोर से बोलने पर फटकार लगाई थी और कहा था कि वह अपनी आवाज़ को नीचे रखें.
CJI चंद्रचूड़ ने कोर्ट की गरिमा बनाए रखने पर जोर दिया और कहा कि कोर्टरूम में अनुशासन और सम्मान का पालन करना अनिवार्य है. चाहे याचिकाकर्ता हो या वकील, हर किसी को अपनी बात शालीनता से और मर्यादा में रहकर ही रखनी चाहिए. न्यायालय केवल एक कानूनी मंच नहीं है, बल्कि न्याय की गरिमा को बनाए रखने का स्थान है, जहाँ अनुशासन का पालन किया जाना चाहिए.