नई दिल्ली, 16 जुलाई: दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 सप्ताह 5 दिन की गर्भावस्था को समाप्त करने कीमांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता, अविवाहित महिला, जिसकी गर्भावस्था एक सहमति संबंध से उत्पन्न होती है, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत स्पष्ट रूप से किसी भी क्लॉज द्वारा कवर नहीं की गई है.मणिपुर की स्थायी निवासी महिला, जो वर्तमान में नई दिल्ली में रह रही है, उसने अपनी याचिका में कहा कि वह बच्चे को जन्म नहीं दे सकती क्योंकि वह एक अविवाहित महिला है और उसके साथी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया है. यह भी पढ़ें: कोटा के स्कूल में बच्चों को सिखाया जा रहा 'अम्मी-अब्बू' कहना, चिंता में अभिभावक
इसने आगे कहा कि विवाह से बाहर जन्म देने से उसका बहिष्कार होगा और उसकी मानसिक पीड़ा होगी. चूंकि वह केवल बी.ए. स्नातक जो गैर-कामकाजी है, वह बच्चे को पालने और संभालने में सक्षम नहीं होगी. महिला ने अपनी याचिका में कहा कि वह मानसिक रूप से मां बनने के लिए तैयार नहीं है और गर्भावस्था को जारी रखने से उसके लिए गंभीर शारीरिक और मानसिक चोट लगेगी.
अगर वह गर्भावस्था जारी रखती है, तो उसके लिए उसके बच्चे और सामाजिक कलंक के कारण भविष्य में उसकी शादी करना संभव नहीं होगा.
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने 15 जुलाई को एक आदेश में कहा, "अधिनियम की धारा 3(2)(ए) के अवलोकन में प्रावधान है कि चिकित्सक गर्भावस्था को समाप्त कर सकता है, बशर्ते गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक न हो. अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) उन परिस्थितियों में समाप्ति का प्रावधान करती है जहां गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक है लेकिन 24 सप्ताह से अधिक नहीं है."
कार्ट ने कहा कि हालांकि, गर्भावस्था नियमों के 2021 संशोधन के अनुसार, यह उन महिलाओं को अनुमति देता है जिनकी गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक उम्र के कानूनी रूप से समाप्त की जा सकती है. हालांकि, अविवाहित महिलाओं को प्रावधान में निर्दिष्ट नहीं किया गया है.
रिट याचिका को खारिज करते हुए आदेश में कहा गया, "उपरोक्त के मद्देनजर, यह अदालत इस स्तर पर अंतरिम आवेदन पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है."