नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपनी आंखें गड़ाना शुरू कर दिया है. बीजेपी की साल 2019 में पूर्ण बहुमत की सरकार भले ही बन गई हो, पर उसे रायबरेली सीट न पाने का मलाल मन में खटक रहा है. इसी कारण भाजपा ने कांग्रेस (Congress) के विधान परिषद सदस्य और गांधी परिवार के खास रहे दिनेश प्रताप सिंह को सोनिया के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा था. उनके भाई हरचंदपुर से विधायक राकेश सिंह (Rakesh Singh) भी इन दिनों बीजेपी के पक्ष में सुर मिलाते देखे जा सकते हैं. आजकल रायबरेली सदर से विधायक अदिति सिंह ने भी पार्टी में बागवती सुर छेड़ रखा है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत करके वह पहले ही अपने बदले हुए सुर का संकेत दे चुकी हैं.
#माना जाता है कि अदिति सिंह (Aditi Singh) को राजनीति में लाने का श्रेय प्रियंका गांधी को जाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में योगी सरकार की ओर से 36 घंटे तक चलने वाला विधानसभा सत्र बुलाया गया. बसपा सपा और कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष ने इसका बहिष्कार किया. इसी दिन प्रियंका गांधी का लखनऊ में पैदल मार्च था. लेकिन अदिति सिंह उसमें नहीं पहुंचीं.
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पार्टी लाइन को नजरअंदाज करते हुए देर शाम वह विधानसभा के विशेष सत्र में पहुंच गईं. उन्होंने विधानसभा सत्र में न केवल हिस्सा लिया, बल्कि अपने विचार भी व्यक्त किए. अदिति सिंह को कांग्रेस के बहिष्कार के बाद भी विशेष सत्र में भाग लेने और सत्ता की तरफ से विपक्ष वाला असली साथ देने का इनाम मिला है. उन्हें वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गई है. कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा अदिति सिंह का नया ठिकाना हो सकती है.
अदिति सिंह ने आईएएनएस से कहा, "मैंने सोचा कि रायबरेली की विधायक होने के नाते विकास के मुद्दे पर और राष्ट्रीय विषय में मुझे भाग लेना चाहिए. जनता ने मुझ पर विश्वास करके सदन में भेजा है. मैंने अपने भाषण में देशहित की बात रखी है. मुझे विकास के लिए चुना गया है." बीजेपी में शामिल होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि राजनीति संभावनाओं का खेल है, पर अभी ऐसा कुछ भी नहीं है.
राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल का कहना है, "अदिति सिंह के पिता के न रहने के बाद उनके राजनीतिक विरोधी अदिति सिंह को कमजोर करने में लग गए. अदिति सिंह कमजोर पड़ रही थीं. उनके पास मजबूती का कोई आधार नहीं था. उनके घर पर उनके पिता की दबंगई का सिस्टम आगे बढ़ाना वाला भी कोई बचा नहीं है. इसके बाद राहुल और सोनिया का करीबी बताया जाना उनके कैरियर को नुकसान पहुंचा रहा था."
उन्होंने कहा, "अदिति अपने संरक्षण और राजनीतिक भविष्य की दिशा ढूंढने का प्रयास कर रही हैं. हालांकि कांग्रेस इन्हें हटाने का कोई जोखिम नहीं लेगी, क्योंकि कांग्रेस तकनीकी रूप से कोई गलती नहीं करेगी. इसका उदाहरण दिनेश सिंह के भाई हरचंदपुर के विधायक राकेश सिंह पर भाजपा का समर्थक बन जाने के बाद भी कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं करना है."
अदिति सिंह रायबरेली सदर से पहली बार कांग्रेस विधायक चुनी गई हैं. उनके पिता अखिलेश सिंह भी कई बार विधायक रह चुके थे. पिछले दिनों उनके निधन पर शोक जताने के लिए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भी रायबरेली स्थित उनके आवास पर गए थे, तभी से अदिति का रुख बदला-बदला बताया जा रहा है.
अदिति सिंह के पिता अखिलेश सिंह रायबरेली सीट से पांच बार विधायक रहे हैं. उन्होंने अपना सियासी सफर कांग्रेस से शुरू किया था. साल 1993 में वह कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा के लिए पहली बार निर्वाचित हुए थे. कांग्रेस से निकाले जाने के बाद भी कई बार निर्दलीय विधायक चुने गए. उनको हराने के लिए कांग्रेस ने एड़ी-चोटी का जोर कई बार लगाया, लेकिन सफल नहीं हो पाई. कहा जाता है कि अखिलेश सिंह का खौफ ऐसा था कि कांग्रेसी उनके डर से पोस्टर भी नहीं लगा पाते थे.
हालांकि सितंबर, 2016 में अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह कांग्रेस में शामिल हुईं. इस दौरान अखिलेश सिंह की कांग्रेस में वापसी हुई. चुनाव में अखिलेश सिंह के रसूख के चलते रायबरेली में सदर से कांग्रेस को एकतरफा वोटें मिलती थीं जो सोनिया गांधी की जीत का अंतर बढ़ा देती थीं. लेकिन कुछ दिन पहले ही बीमारी के चलते अखिलेश सिंह का निधन हो गया. अब भाजपा अदिति सिंह को अपने पाले में लाकर कांग्रेस को मात देने के प्रयास में है.