नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की पत्नी जिल बाइडेन को गिफ्ट किए गए डायमंड की कीमत को लेकर सवाल उठाए गए हैं. विदेश मंत्रालय (MEA) के सूत्रों के मुताबिक, यह डायमंड लैब में तैयार किया गया था, जिसकी कीमत प्राकृतिक हीरों की तुलना में काफी कम होती है.
MEA सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री द्वारा गिफ्ट किए गए 7.5 कैरेट के डायमंड की कीमत ₹15,000 से ₹25,000 प्रति कैरेट के बीच है. इस प्रकार, इसकी कुल कीमत लगभग ₹1.1 लाख से ₹1.9 लाख के बीच बैठती है. वहीं, अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट द्वारा इस डायमंड की कीमत $20,000 (₹16.5 लाख) बताई गई, जो प्राकृतिक हीरों की ऊंची कीमतों पर आधारित लगती है.
लैब-ग्रोउन डायमंड की कम कीमत और बढ़ती डिमांड
लैब-ग्रोउन डायमंड्स की कीमत हाल के दिनों में 25-30% तक गिर चुकी है. इसका मुख्य कारण बाजार में इनकी बढ़ती उपलब्धता और लोगों के बीच इनकी बढ़ती लोकप्रियता है. फेस्टिव सीजन के दौरान इनकी मांग में तेजी से इजाफा हुआ है, क्योंकि ये प्राकृतिक हीरों की तुलना में किफायती और आकर्षक विकल्प साबित हो रहे हैं.
Official sources have questioned the valuation of the diamond gifted by Prime Minister #NarendraModi to #JillBiden, wife of US President Joe Biden.
MEA sources pointed out that the 7.5-carat diamond the PM gifted to Jill Biden was grown in a lab which is much cheaper than… pic.twitter.com/DDUwM2bOUb
— The Times Of India (@timesofindia) January 4, 2025
क्या है लैब-ग्रोउन डायमंड?
लैब-ग्रोउन डायमंड, प्राकृतिक हीरों का सिंथेटिक रूप है, जो प्रयोगशालाओं में विशेष तकनीकों से तैयार किया जाता है. यह प्राकृतिक हीरों की तरह दिखता है, लेकिन इसकी कीमत काफी कम होती है. इनकी बढ़ती लोकप्रियता और सस्ते दामों ने इसे गहनों की दुनिया में एक प्रमुख विकल्प बना दिया है.
अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट की वैल्यूएशन पर सवाल
MEA सूत्रों ने यह भी इशारा किया कि अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने इस डायमंड की वैल्यूएशन प्राकृतिक हीरों की कीमतों के आधार पर की है. जबकि, गिफ्ट किए गए डायमंड की असली कीमत लैब-ग्रोउन होने की वजह से बहुत कम है.
प्रधानमंत्री मोदी का यह गिफ्ट भारत में लैब-ग्रोउन डायमंड इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के प्रयास का भी हिस्सा माना जा सकता है. इससे पर्यावरण-संवेदनशील गहनों को प्रोत्साहन मिलता है और भारत की इस तकनीक को वैश्विक पहचान मिलती है.