उत्तर प्रदेश: विधानसभा के बाद अखिलेश यादव लोकसभा में भी हुए फेल, राहुल के बाद मायावती का साथ भी नहीं आया काम
एक बार फिर बीजेपी ने मारी बाजी

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव में  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की भारी जीत के करीब है. लेकिन इस बार सबसे ज्यादा कहीं कांटे की टक्कर थी वो उत्तर प्रदेश में थी. पहली बार ऐसा हुआ जब मायावती और अखिलेश यादव ने गठबंधन बनाकर मोदी को पछाड़ने का प्लान बनाया. लेकिन उनके इस सपने पर पानी फिर गया. बीजेपी ने अपने दम पर देशभर 344 सीटों पर बढ़त बना ली और यूपी में 61 सीटों पर कब्जा कर विपक्षी पार्टियों को हैरान कर दिया. इस करारी हार के बाद अब सवाल उठने लगा है कि क्या मुलायम सिंह यादव के बाद समाजवादी पार्टी को अखिलेश सफल नहीं बना पा रहे हैं.

अखिलेश यादव ने साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. उन्हें उम्मीद थी कि उनका यह फार्मूला काम करेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इस दौरान गठबंधन को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की गठबंधन को 403 सीटों में सिर्फ 54 सीटें ही हासिल हुई थीं. जिसके बाद अखिलेश के निर्णय को लेकर सवाल उठने लगा था. इस चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने 312 सीटें हासिल की थीं. जिसके बाद योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम बने और अखिलेश को कुर्सी गंवानी पड़ी थी.

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लोकसभा चुनाव 2019 रुझानो से स्पष्ट हो रहा है कि मायावती और अखिलेश के गठबंधन जादू इस बार फ्लॉप हो गया. इस बार भी बीजेपी ने यूपी में बाजी लगभग मार ली है. दरअसल माना जा रहा था कि अखिलेश और मायावती के गठबंधन का उन्हें जबरदस्त फायदा होगा. शायद यही वजह थी कि एक दूसरे के धुर-विरोधी समाजवादी पार्टी (एसपी) संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam singh Yadav) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमों मायावती (Mayawati) दशकों बाद एक मंच पर साथ बैठे है. इस प्लान का पूरा खाका अखिलेश ने तैयार किया था.

लेकिन उन्हें इस बार उम्मीदों के मुताबिक सफलता नहीं मिली. ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि क्या अखिलेश यादव सही निर्णय नहीं ले पा रहे हैं. आखिर क्यों उनकी चाल को मात मिल रहा है. फिलहाल यह विषय अखिलेश के लिए गहन मंथन का है. लेकिन ऐसे में बीजेपी का पहले विधानसभा में जीतना और फिर लोग सभा में कांग्रेस-सपा-बसपा से भीड़ के लगभग 62 सीटों ( रुझान के अनुसार, आंकड़े बदल भी कसते हैं ) तक पहुंचना अब गंभीर विषय बन रहा है.