भोपाल: मध्य प्रदेश में डेढ़ दशक बाद सत्ता में आई कांग्रेस की कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गुरुवार को अपने शासनकाल के 100 दिन पूरा करने जा रही है. लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने तक के 75 दिन के शासनकाल में 83 वादे पूरे किए जाने का दम भरते हुए कांग्रेस छाती ठोक रही है, मगर उसके ये वादे कितने असरदार रहे, यह बड़ा सवाल बना हुआ है. राज्य में कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार ने 26 दिसंबर को कमान संभाली थी, क्योंकि इस दिन कमलनाथ के मंत्रियों ने शपथ ली थी. कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से ही कमलनाथ और उनकी सरकार वे सारे वादे पूरे करने में लगी है, जो उसने विधानसभा चुनाव से पहले किए थे.
मुख्यमंत्री कमलनाथ लगातार किसान कर्जमाफी के फैसले का जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं. उनका दावा है कि राज्य के 50 लाख किसानों में से 22 लाख किसानों का दो लाख रुपये तक का कर्ज माफ हो चुका है, लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के कारण शेष किसानों का कर्ज माफ नहीं हो पाया है. लोकसभा चुनाव होते ही बाकी किसानों का कर्ज माफ हो जाएगा.
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वहीं, भाजपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार एक ही बात कह रहे हैं कि कमलनाथ सरकार ने किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया था, मगर अब तक किसानों का कर्ज माफ नहीं हुआ है, वह लगत आंकड़े दे रही है. चुनाव भले ही आ गए हों, मगर किसानों का कर्ज माफ होने का सिलसिला तो जारी रहना चाहिए.
कमलनाथ ने सत्ता में आने के बाद सबसे बड़ा दांव किसान पर खेला तो दूसरा दांव था नौजवान. कांग्रेस ने नौजवानों का लिए 'युवा स्वाभिमान रोजगार योजना' को अमली जामा पहनाया. इस योजना के तहत युवाओं को साल में 100 दिन उनकी पसंद का प्रशिक्षण दिया जाना है और इस दौरान उन्हें 4000 रुपये माह का भत्ता (स्टाइपेंड) दिया जाएगा. इस योजना के तहत जानवरों को चराने से लेकर बैंड बजाने तक का प्रशिक्षण देने की बात कही गई है.
जानवर चराने और बैंड बाजा बजाने का प्रशिक्षण दिए जाने पर कमलनाथ सरकार पर जमकर हमले हुए. कमलनाथ ने इन हमलों का अपने ही तरह से जवाब दिया. उनका कहना है, "कम पढ़े-लिखे लोग जिनके परिजन पीढ़ियों से बैंड बाजा बजाते आए हैं, उन्हें इसका प्रशिक्षण दिया जाए ताकि, वे देश के अन्य हिस्सों में जाकर जीविकोपार्जन करें."
लिहाजा, कमलनाथ ने किसान और नौजवान के जरिए बड़े वोट बैंक पर सेंधमारी की है, क्योंकि राज्य में कुल पांच करोड़ चार लाख मतदाता हैं. इनमें युवा मतदाता जिनकी आयु 18 से 29 वर्ष है, वे 1,53,00000 से ज्यादा हैं. वहीं किसानों की संख्या जिनका कर्ज माफ होने वाला है, वे 55 लाख के आसपास हैं. इस तरह किसान और नौजवान ही राज्य में लगभग 40 फीसदी मतदाता हैं.
राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस कहते हैं कि कमलनाथ ने राज्य की सत्ता संभालते ही उन वर्गो के लिए पूर्व में किए गए वादों को पूरा करने का अभियान चलाया, जो चुनाव को सीधे प्रभावित करने वाले हैं. विधानसभा चुनाव में किसानों की कर्जमाफी के वादे का असर दिखा और कांग्रेस को सत्ता मिली, यही कारण है कि लोकसभा चुनाव से पहले भी कांग्रेस ने किसान और नौजवान से किए वादे सबसे पहले पूरे किए.
कमलनाथ के 100 दिन के कार्यकाल पर नजर दौड़ाई जाए तो एक बात तो साफ होती है कि उन्होंने हर वर्ग को अपने वादों के जाल में फंसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. पुलिस जवानों को साप्ताहिक अवकाश का प्रावधान किया है, तो गायों के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर गौशाला खोलने का अभियान चलाया है. इतना ही नहीं, बुजुर्गो को धार्मिक स्थलों की यात्रा कराई है. पुजारियों का मानदेय 1000 से बढ़ाकर 3000 रुपये मासिक किया है.
राज्य में कांग्रेस की सरकार ने उद्योग संवर्धन नीति में बड़ा बदलाव करते हुए स्थापित होने वाले उद्योग में 70 फीसदी भर्ती में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता का वादा किया है. पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़कर 27 प्रतिशत किया तो गरीब सामान्य के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया. सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि में बढ़ोतरी की.
भाजपा की प्रदेश इकाई के महामंत्री वी.डी. शर्मा का कहना है कि कमलनाथ सरकार ने वादे पूरे करने के नाम पर सिर्फ गाल बजाने का काम किया है. किसानों की कर्जमाफी के वादे के नाम पर छला गया है, किसानों से तरह तरह के फार्म भराए गए और उनका कर्ज माफ नहीं हुआ है. नौजवानों को रोजगार देने के नाम पर ठगा गया है. आगामी लोकसभा चुनाव में प्रदेश की जनता कांग्रेस को सबक सिखाएगी.
कमलनाथ ने एक तरफ जहां 100 दिन के शासनकाल में अपनी प्रशासनिक क्षमता का लोहा मनवाने की कोशिश की है तो दूसरी ओर वे कांग्रेस को एक सूत्र में बांधने में सफल होते नजर आए हैं. लगभग 11 माह के अध्यक्षीय कार्यकाल में उन्होंने कांग्रेस को सत्ता में वापसी दिलाई तो दूसरी ओर खेमों में बंटी कांग्रेस को एकजुट करने का अभियान चलाया.
कांग्रेस के प्रवक्ता सैयद जाफर का कहना है कि कमलनाथ ने पहले संगठन और उसके बाद सत्ता की कमान संभालने के बाद उन विपक्षी नेताओं के मुंह बंद कर दिए जो तरह तरह की बयानबाजी करते थे. कमलनाथ ने पहले कांग्रेस संगठन को एक सूत्र में पिरोने का काम किया तो दूसरी ओर कांग्रेस को सत्ता तक ले जाने का रास्ता तैयार किया. चुनाव से पहले जो वादे किए थे उन्हें पूरा करने का अभियान चलाया. उन्होंने कहा कि राज्य आर्थिक कंगाली की हालत में था, उसके बाद भी किसान कर्जमाफी से लेकर तमाम वे फैसले हुए, जिन्हें करना और दूसरी सरकार के लिए आसान नहीं था.