लोकसभा चुनाव 2019: सेक्सुअल वर्कर्स के लिए उठी पेंशन, पहचान पत्र और बैंक अकाउंट उपलब्ध कराने की मांग
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit-Pixabay)

नई दिल्ली:  चुनावी माहौल में महिला वोटों को रिझाने के लिए महिला सशक्तिकरण और आरक्षण जैसे कई वादे विभिन्न चुनावी दलों ने किए हैं. लेकिन देशभर में यौन कर्मी के तौर पर काम करने वाली लगभग 50 लाख महिलाओं के लिए अभी भी चुनाव के अहम मुद्दे पहचान सुनिश्चित करने वाले सरकारी दस्तावेज, बैंक खाते, पेंशन और उनके बच्चों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य की सुविधा दिलवाना है.

बीते सप्ताह दिल्ली में विभिन्न महिला संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में जुलूस निकाला. इस जुलूस में कई यौन कर्मी और उनके बीच काम करने वाले संगठन भी शामिल हुए.

दिल्ली के जीबी रोड में काम करने वाली एक यौन कर्मी अनीता (बदला हुआ नाम) ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘हमारे लिए सबसे अहम मुद्दा बैंक खातों और पेंशन का है. कलकत्ता के सोनागाछी में काम करने वाली अधिकतर यौन कर्मियों के बैंक खाते खुले हैं. इससे वह अपनी बचत की रकम उसमें जमा कर सकती हैं. लेकिन दिल्ली या देश के अन्य शहरों में हम जैसी कई यौन कर्मियों के पास पहचान पत्र, आधार या अन्य किसी तरह के सरकारी दस्तावेज ही नहीं है. ऐसे में हमारे बैंक खाते कहां से खुलेंगे. जब एक उम्र के बाद हमारे पास काम नहीं होगा तो उसके लिए हम अपनी बचत को जमा कैसे करेंगे? यदि हमारे बैंक खाते नहीं खुल सकते तो सरकार को हमें 45 की उम्र के बाद कम से कम पेंशन ही देनी चाहिए.’’

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यौन कर्मियों के बीच काम करने वाले संगठन ‘ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स’ की अध्यक्ष कुसुम ने कहा, ‘‘आमतौर पर समाज में लोग यौनकर्मियों को फिल्म या टेलीविजन में उनके चित्रण से जानने-समझने की कोशिश करते हैं. लेकिन हकीकत में उनकी समस्याएं टीवी की दुनिया से बहुत अलग हैं. देशभर में महिला अधिकारों की बात हो रही है. हम चाहते हैं कि राजनीतिक दल हमें कम से कम महिलाओं के मूलभूत अधिकार देने की बात तो करें.’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस काम को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने की मांग हम पहले से कर रहे हैं. लेकिन इस क्षेत्र में मानव तस्करी भी एक बड़ी समस्या है. इसे लेकर यौन कर्मियों को कई तरह की पुलिस यातनाओं से भी गुजरना पड़ता है. हमने यौन कर्मी क्षेत्र में मानव तस्करी या जबरन किसी को इस काम में लगाने से रोकने के लिए कई शहरों में स्व-नियमन बोर्ड (एसआरबी) गठित करने में सफलता हासिल की है. हम चाहते हैं कि सरकार इस मॉडल को कानूनी मान्यता दे ताकि मानव तस्करी को रोका जा सके.’’

एक अन्य यौन कर्मी शबाना (बदला हुआ नाम) ने कहा कि यौन कर्मियों को मूलभूत स्वास्थ्य और उनके बच्चों को शिक्षा की सुविधा लेने में भी तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यौनकर्मियों के रहने के स्थान, उनके काम के चयन को लेकर उन्हें सामाजिक सुविधाओं की प्राप्ति में भेदभाव और अपमान सहना पड़ता है. यौनकर्मियों के बच्चों को समान अवसर उपलब्ध नहीं होते. उन्हें स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता और अस्पतालों में हमें जांच के दौरान हिकारत से देखा जाता है. सरकार को हमें इन भेदभावों से बचाने के लिए कुछ करना चाहिए.’’