
भले ही बीजेपी दिल्ली में सत्ता में आ गई हो, लेकिन आम आदमी पार्टी और कांग्रेस भी उसकी जीत में अहम भूमिका निभाते हैं."दिल्ली में जाति से ज्यादा वर्ग के आधार पर मतदान होता है”, यह बात आरती जेरथ ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कही. जेरथ एक मशहूर राजनीतिक विश्लेषक हैं और सालों से दिल्ली की राजनीति को करीब से देखती आ रही हैं.
हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. दिल्ली में पिछले करीब 12 साल से आम आदमी पार्टी की सरकार थी. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी को 27 साल के बाद दिल्ली में जीत हासिल हुई है. एक लोकतंत्र में जनता अपना गुस्सा और प्रेम चुनाव के दौरान दिखा देती है. पिछले कुछ सालों में दिल्ली में जो भी घटनाएं हुईं, इस बार के मतदान में उसका साफ असर दिखाई पड़ा.
‘शीश महल' और घोटालों की राजनीति
भारत में पहले भी कई राज्यों में घोटालों की वजह से बड़ी-बड़ी सरकारें गिरी हैं. इस बार शराब घोटाले की चर्चा आम आदमी पार्टी के लिए घातक साबित हुई. पहले तो पार्टी के बड़े नेता मनीष सिसोदिया का 2023 में जेल जाने, और फिर पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल के 2024 में जेल जाने से आम आदमी पार्टी की ईमानदारी की छवि का बड़ा धक्का लगा.
आरती जेरथ कहती हैं, "बीजेपी, आम आदमी पार्टी की छवि में जबरदस्त चोट पहुंचाने में कामयाब रही. केजरीवाल के घर से लेकर शराब घोटाले तक देखें तो लोगों को लगा कि उनके ‘आम नेता' अब खुद आम आदमी नहीं रहे."
आरती बताती हैं कि दस साल पहले लोगों ने दो बड़ी पार्टियों से थक हारकर आम आदमी पार्टी को वोट दिया था. उन्होंने कहा, "उनके शिक्षा और स्वास्थ्य के वादों से जनता खुश थी लेकिन हाल के दिनों में दिल्ली की प्रदूषण, वहां की सड़कें और नागरिक सुविधाएं ध्वस्त होता देख जनता ने इस बार किसी और को मौका देने का फैसला किया.”
आरती जेरथ ने जनता के इस रोष को ‘प्रोटेस्ट वोट' भी कहा है, यानी वो वोट जो किसी पार्टी को किसी दूसरी पार्टी के विरोध में दिया गया हो.
दिल्ली के ओखला विहार में जज की परीक्षा की तैयारी कर रहे मोहम्मद अनस खान का कहना है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में 10 साल से थी लेकिन शहर की हालत बद से बदतर ही हुई है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "आप कब तक शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर वोट लेंगे. दस सालों में आप एक भी विश्वविद्यालय नहीं खोल पाए. कुछ सरकारी स्कूलों को ठीक कर देने से जनता हमेशा आपको वोट तो नहीं देगी.”
मिडल क्लास का बदलता रुझान
एक समय पर आम आदमी पार्टी आम जनता के बीच अपनी जगह बनाने में सफल रही थी क्योंकि जनता उसमें खुद को देख पाती थी. यानी, एक ऐसी पार्टी जो शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सेवाओं पर ध्यान देना चाहती है और इस बुनियादी ढांचे के साथ लोगों को मौके देना चाहती है. यही किसी भी मिडल क्लास इंसान की कामना होती है. जेरथ बताती हैं कि खास बात यह है कि यह वर्ग जाति में ज्यादा बंटा हुआ नहीं है. उन्होंने कहा, "इस वर्ग में अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) का वर्ग आता है और दिल्ली में कुछ छोटी पॉकेटों को छोड़कर यह वर्ग भी जाति से ज्यादा आकांक्षाओं के अनुसार वोट करता है.”
दिल्ली में बीजेपी ने 22 अन्य पिछड़ी जातियों के उम्मीदवार खड़े किए थे जिनमें से 16 उम्मीदवार जीते हैं. बीजेपी वे सभी 7 सीटें जीतने में सफल रही जिनमें 10 फीसदी ओबीसी आबादी है.
लोकनीति सीएसडीएस सर्वे के अनुसार बीजेपी को राजधानी में सवर्ण जातियों का साथ तो मिला ही, साथ ही गुज्जर और यादव समुदायों के अलावा उन्हें बाकी पिछड़ी जातियों का भरपूर समर्थन मिला है.
आप ने मुस्लिम वोट भी खोए
दिल्ली में मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र कुल सीटों के लगभग 30 फीसदी हैं जो किसी भी पार्टी की जीत-हार में अहम भूमिका निभाते हैं. 2013 आम आदमी पार्टी भारतीय राजनीति में एक विरोधाभास के रूप में सामने आई थी जिसे हर वर्ग और जाति का समर्थन मिला था. एक समय पर कांग्रेस को भी यह विशेषाधिकार प्राप्त था. अब आम आदमी पार्टी भी उसी दो राहे पर आकर खड़ी है. भले ही आप ने मुस्लिम बहुल इलाकों की सीटें फिर से जीत ली हों लेकिन उनका मुस्लिम वोट घटा है.
चुनाव आयोग के आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि 2015 में जिन निर्वाचन क्षेत्रों में 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी थी, वहां आम आदमी पार्टी के औसत मुस्लिम वोट 2015 में 57,118 से बढ़कर 2020 में 67,282 हो गए. इसका मतलब लगभग 18 फीसदी की बढ़त. लेकिन यही वोट 2025 में घटकर 58,120 हो गए, यानी 2020 से लगभग 13.6 प्रतिशत की गिरावट.
जिन इलाकों में मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से ऊपर थी वहां भी आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 2020 से 2025 में लगभग 15 फीसदी गिरा है.
इस वोट शेयर में गिरावट की वजह पूछने पर आरती बताती हैं कि मुस्लिम समुदाय आम आदमी पार्टी से कई कारणों से नाखुश था. "सीएए-विरोधी प्रदर्शन में मुस्लिम समुदाय को आप का समर्थन नहीं मिला. और फिर 2020 के दिल्ली दंगों में भी आम आदमी पार्टी ने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया, और ज्यादातर इस मुद्दे से दूरी बनाए रखी.” एक समय पर केजरीवाल पर उम्मीदें टिकाने वाले मुस्लिम समुदाय ने खुद को इस समय अकेला पाया और शायद यही वजह रही कि आप का मुस्लिम वोट शेयर इस चुनाव में घटा.
मुस्लिम बहुल इलाकों में आने वाले निर्वाचन क्षेत्र कस्तूरबा नगर, मुस्तफाबाद और वजीरपुर में मुस्लिम वोट कांग्रेस और आप में बंटा जिसका फायदा बीजेपी को पहुंचा. मुस्तफाबाद में बीजेपी का वोट शेयर पहले जितना ही रहा (42 फीसदी) लेकिन आम आदमी पार्टी को 2025 में मुस्लिम वोट में 33 फीसदी की गिरावट दिखी. इस बार ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम ने वहां 16.6 फीसदी वोट लिए वहीं कांग्रेस ने 6 फीसदी वोट अपने नाम किए.
आरती का कहना है कि ये सब सीएए विरोधी प्रदर्शन के बाद मुस्लिम जनता का केजरीवाल की चुप्पी पर गुस्सा जाहिर करता है.
आप के दलित वोट में भी लगी सेंध
आम आदमी पार्टी ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित ज्यादातर सीटें अपने नाम कीं. लेकिन इन 12 सीटों पर भी उनके वोट इस बार बीजेपी और कांग्रेस की झोली में भी गिरे हैं. उत्तर पूर्वी दिल्ली के निर्वाचन क्षेत्र सीमापुरी में जहां 2020 में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर लगभग 66 फीसदी रहा था, वही 2025 में गिरकर 48.4 फीसदी हो गया. फिर भी पार्टी ने जीत हासिल कर ही ली.
करोल बाग और पटेल नगर में भी ऐसी ही हालत रही. लेकिन आप को सबसे बड़ा धक्का लगा बवाना, मादीपुर, मंगोलपुरी और त्रिलोकपुरी सीटों पर. इन सभी सीटों पर बीजेपी जीती है.
आरती जेरथ बताती हैं कि बीजेपी को लोग मध्यम वर्ग की पार्टी के रूप में देखने लगे हैं. एक ऐसी पार्टी जो गरीबों और हाशिए पर रह रहे लोगों के हित में काम नहीं करती लेकिन मिडल क्लास की कामनाओं को देखते हुए नीतियां बनाती है. हालांकि विपक्ष का कहना है कि बीजेपी केवल पूंजीवादी लोगों के हितों को देखती है और उनके लिए काम करती है.
भारत में लोगों के मतदान के पीछे की सोच को समझने के लिए हर समुदाय को गहराई से समझना जरूरी है और साथ ही उन्हें जाति, धर्म और वर्ग के साथ मिलाकर देखना होगा. इस बार राजधानी में भारतीय जनता पार्टी की जीत से आम आदमी पार्टी के लिए कई सबक लेकर आई है.