एंटी डिफेक्शन लॉ: नेताओं को दल बदलने से ऐसे रोका जाता है, जानें कानून के बारे में सबकुछ
संसद भवन (Photo Credits : Wikimedia Commons)

देश में चुनाव होता है. पार्टियां अपने-अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारती हैं और फिर वे जीत के बाद सांसद या विधायक बनते हैं. जिसके जितने उम्मीदवार जीतते हैं उन्ही कि सरकार सत्ता में आती है. लेकिन कई बार आंकड़े ऐसे हो जाते हैं कि एक पार्टी दूसरे पार्टी के विधायकों को तोड़कर अपने पाले में लेकर आ जाती है. जिससे कम सीटों की पूर्ति तो होती है और सत्ता में वापसी का मौका मिल जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं ऐसे दलबदलू विधायकों को रोकने के एक उपाय है. जो विधायकों या सांसदों को निजी फायदे के लिए दलबदल से रोकता हो.

बता दें कि हरियाणा के एक विधायक गया लाल ने साल 1967 में एक ही दिन में दो दल बदले और 15 दिनों के भीतर तीन दलों में अंदर-बाहर हुए. यही कारण था कि दल-बदल कानून लाया गया. जिससे राजनीतिक अस्थिरता को रोका जा सके और भारतीय राजनीति की गरिमा बरकरार रहे. इसी मद्देनजर साल 1985 में 52वें संविधान संशोधन के द्वारा 10वीं अनुसूची जिसे लोकप्रिय रूप से 'दल बदल विरोधी कानून' (Anti-Defection Law) कहा जाता है.

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क्या है 'दल बदल विरोधी कानून'

संविधान के दलबदल विरोधी कानून के संशोधित अनुच्छेद 101, 102, 190 और 191 का संबंध संसद तथा राज्य विधानसभाओं में दल परिवर्तन के आधार पर सीटों से छुट्टी और अयोग्यता के कुछ प्रावधानों के बारे में है. भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची जिसे लोकप्रिय रूप से 'दल बदल विरोधी कानून' (Anti-Defection Law) कहा जाता है.

बता दें कि इसका उद्देश्य राजनीतिक लाभ और पद के लालच में दल बदल करने वाले जन-प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देना है, ताकि संसद की स्थिरता बनी रहे. हालांकि, इस अधिनियम में कई कमियां भी हैं और यहां तक कि यह कई बार दलबदल को रोकने में विफल भी रहा है.