लोकतंत्र के इस महापर्व में हर नागरिक की जिम्मेदारी होती है कि वो अपने कर्तव्यों का निर्वाह बड़े ही जिम्मेदारी से पूरा करे. मसलन चुनाव के दौरान अपने मत का प्रयोग कर एक अच्छी सरकार लाएं तकी देश के विकास का कार्य तेजी से हो. लेकिन क्या आपने कभी सोचा जिस ईवीएम मशीन पर आप पूरे भरोसे के साथ वोट डालतें है उसे कहां और कैसे बनाया जाता है. जिस ईवीएम मशीन में आप अपने उम्मीदवार को चुनते हैं उसमें और कितने कैंडिडेट्स का नाम शामिल किया जा सकता है. क्या आप जानते हैं कि एक ईवीएम मशीन में कितने वोट डाले जाते है.
आमतौर पर जनता ईवीएम मशीन के बारे में बस वोट डालने और कैंडिडेट के निशानी को देख वोट डालते हैं, लेकिन अगर आपके मन में यह सवाल है और इसका जवाब नहीं मिला हो अब तक तो इस खबर को आप जरूर पढ़ें, क्योंकि जिस ईवीएम मशीन को लेकर कई बार विवाद खड़ा हो चुका है उसके बारे में कुछ जरूर जानलें.
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ईवीएम (EVM) में कैंडिडेट के नाम: एक ईवीएम मशीन में कुल 64 कैंडिडेट के नाम शामिल किए जा सकते हैं. लेकिन अगर कैंडिडेट की संख्या 64 से अधिक हो जाती है तो ऐसे में चुनाव आयोग को मतदान के लिए बैलेट का उपयोग कर के चुनाव करवाना पड़ता है. एक बैलेटिंग यूनिट में 16 उम्मीदवारों के लिए जनता वोटिंग करती है और एक नियंत्रण कक्ष में ऐसे बैलइटिंग यूनिट4 से अधिक नहीं शामिल किया जा सकता है.
ईवीएम (EVM) में ऐसे क्रम में रखा जाता है कैंडिडेट्स का नाम: ईवीएम में कैंडिडेट का नाम उस राज्य की भाषा के आधार पर तय होता है, जैसे अगर उस राज्य में हिंदी भाषा का अधिक प्रयोग होता है तो क, ख, ग,घ, के आधार पर उनका नाम नियुक्त किया जाता है. आपको बता दें कि एक ईवीएम में 3,840 वोट डाले जा सकते हैं.
यहां बनती है ईवीएम (EVM) मशीन: चुनाव आयोग ने ईवीएम का डिजाइन का भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), बेंगलुरु और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL), हैदराबाद के साथ मिलकर किया है. साल 2004 में ईवीएम से चुनाव हुए थे और उसके जो क्रांति आई आज तक इसी से चुनाव किया जाता है. वैसे 1982 में ईवीएम से चुनाव किया गया था लेकिन परिणाम से असंतुष्ट होकर एक उम्मीदवार ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगा दी, जिसके बाद से नहीं हुआ.
ईवीएम मशीन (EVM) बनाने खर्च होते हैं इतने रुपये: आपको बता दें कि ईवीएम मशीन को बनाने में 5.500 रुपये की लागत आती है. इन ईएवीएम मशीनों को 1989-1990 में जब मशीनों को खरीदा गया था.













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