जयपुर, 30 दिसंबर : राजस्थान गले तक कर्ज में डूबा हुआ है. भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में राज्य का कर्ज बढ़कर 5,37,013 करोड़ रुपये हो गया है. पंजाब के बाद राजस्थान देश का सबसे ज्यादा कर्ज वाला राज्य है. इस राज्य को कांग्रेस से जीतने के बाद राजस्व कैसे लाया जाए, यह बीजेपी सरकार के सामने अरबों डॉलर की चुनौती बनी हुई है. वित्तीय निहितार्थों के अलावा, मंत्रिमंडल की विलंबित घोषणा भाजपा के सामने एक और परीक्षा है. सूत्रों का कहना है कि सबसे बड़ी चुनौतियां गृह और वित्त हैं, क्योंकि यही वो प्रमुख मुद्दे हैं, जिनके दम पर बीजेपी ने राजस्थान में वापसी की है. कानून-व्यवस्था से निपटना और घटता राजस्व अभी भी भाजपा के लिए चिंता का विषय है.
चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेगिस्तानी राज्य के लोगों के लिए कई गारंटी की घोषणा की. उन्होंने कहा कि राजस्थान में डबल इंजन की सरकार सभी समस्याओं से अधिक कुशलता से निपटेगी. हालांकि, राजस्थान में ये गारंटी कैसे पूरी होंगी, क्योंकि सरकार कमजोर वित्तीय प्रबंधन से जूझ रही है, क्या ये सवाल हर जगह पूछा जा रहा है? पिछली सरकार द्वारा शुरू की गई जनकल्याणकारी योजनाओं का क्या होगा? यह एक और सवाल है, जो घूम रहा है. हालांकि, मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने घोषणा की है कि राजस्थान में कांग्रेस द्वारा शुरू की गई जनकल्याणकारी योजनाएं रद्द नहीं की जाएंगी, लेकिन, अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि उन्हें कैसे लागू किया जाएगा. यह भी पढ़ें : PM Narendra Modi In Ayodhya: अयोध्या में उज्ज्वला योजना के 10 करोड़वें लाभार्थी के घर पहुंचे पीएम मोदी, आवास पर पी चाय
चुनाव से कुछ महीने पहले, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य में मुफ्त बिजली योजना शुरू की, जिसके तहत घरेलू ग्राहकों को 200 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाती है, जबकि किसानों को हर महीने 2,000 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाती है. यह मुफ्त बिजली योजना भाजपा सरकार को महंगी पड़ रही है और बिजली कंपनियां आर्थिक तौर पर बर्बादी के कगार पर हैं. घाटा 1.20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का आंकड़ा छू चुका है. फिलहाल मुफ्त बिजली योजना से सरकार के खजाने पर सालाना 7,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. सूत्रों ने बताया कि नए मुख्यमंत्री ने पिछली कांग्रेस सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को जारी रखने का वादा किया है, इसलिए इस घाटे को पूरा करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगी.
मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान राजस्थान में महंगे पेट्रोल और डीजल का मुद्दा उठाया था और उन्होंने कीमतें कम करने का वादा किया था क्योंकि अन्य भाजपा शासित राज्यों की तुलना में राजस्थान में पेट्रोल और डीजल 10-11 रुपये प्रति लीटर महंगे हैं. कड़ी आलोचना के बावजूद भी गहलोत सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम कम नहीं किए, क्योंकि राजस्थान सरकार वैट से मोटी कमाई कर रही थी. 2021-22 और 2022-23 में राज्य सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर वैट से 35,975 करोड़ रुपये वसूले, जो देश के 18 राज्यों द्वारा वसूले गए 32,000 करोड़ रुपये के टैक्स से ज्यादा हैं. अब, नई सरकार को वादे के मुताबिक, पेट्रोल-डीजल के दाम दूसरे बीजेपी शासित राज्यों के बराबर लाने होंगे. मौजूदा आय की भरपाई कैसे होगी यह नई सरकार के लिए चुनौती होगी.
गहलोत अपनी चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना का प्रचार कर रहे थे और उन्होंने पिछले बजट में बीमा राशि बढ़ाकर 25 लाख रुपये कर दी थी. उनका चुनावी वादा था कि अगर कांग्रेस सरकार दोबारा सत्ता में आई तो राजस्थान के लोगों को 50 लाख रुपये का बीमा दिया जाएगा. वहीं, बीजेपी शासित राज्यों में 5 लाख रुपये का आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा मिलता है. यह भी सभी के लिए नहीं है, जबकि राजस्थान में चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ सभी को दिया जा रहा है. चिरंजीवी योजना पर फैसला लेना बीजेपी सरकार के लिए आसान नहीं होगा. गहलोत ने वरिष्ठ नागरिकों की वृद्धावस्था पेंशन में बढ़ोतरी की थी और हर साल 15 फीसदी बढ़ोतरी का प्रावधान किया था. इससे राज्य पर सालाना 12,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा. फिलहाल, इस योजना में केंद्र सरकार का योगदान सिर्फ 367 करोड़ रुपये है.
मोदी ने राजस्थान के 76 लाख परिवारों को उज्ज्वला योजना के तहत 450 रुपये में गैस सिलेंडर देने का वादा किया है. ऐसे में इस योजना के बाद राज्य सरकार पर 626.40 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, ऐसा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी का कहना है. इन वित्तीय संकटों के अलावा, कानून और व्यवस्था भाजपा सरकार के लिए एक और बड़ी परीक्षा है, यही वह मुद्दा है जिसे पार्टी ने विधानसभा चुनाव अभियानों के दौरान सबसे अधिक उठाया था. दूसरा, नई सरकार को प्रतियोगी परीक्षाओं के आयोजन के लिए भी ठोस योजना बनानी होगी क्योंकि राजस्थान पेपर लीक के लिए बदनाम है. नए मुख्यमंत्री के लिए सांप्रदायिक सौहार्द बनाना भी बड़ा मुद्दा होगा, क्योंकि पिछले पांच सालों में करौली, भीलवाड़ा और जोधपुर समेत कई शहरों में सांप्रदायिक हिंसा हुई है.
फिलहाल बीजेपी 100 दिन के एक्शन प्लान की बात कर रही है. ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव खत्म होने तक पुरानी सरकार की योजनाएं ही चलती रहेंगी. छह माह बाद भाजपा सरकार का विजन स्पष्ट हो जाएगा. पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह भी साफ हो जाएगा कि वह जनता की उम्मीदों पर किस हद तक खरा उतरेंगे. इस बीच, नए चेहरों के आने से चारों ओर सकारात्मकता है. सचिवालय के किसी भी वरिष्ठ अधिकारी या किसी आम आदमी से पूछें, वे कहते हैं कि विकास बदलाव के साथ आता है और अब उन्हें यह विकास देखने की उम्मीद है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ''एक बार कैबिनेट की घोषणा हो जाने के बाद हमारी प्रेरणा बढ़ेगी, इतने दिनों तक रुके रहने के बाद असली काम शुरू होगा.'' उन्होंने कहा, ''एक मुख्यमंत्री राज्य नहीं चला सकता या इतने सारे विभाग नहीं संभाल सकता. कैबिनेट गठन में यह देरी बीजेपी के लिए अच्छी नहीं लग रही है.''