भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान, सरदार पटेल ने अपनी दूरदर्शिता और कूटनीति से कई रियासतों को भारत में मिला लिया. इनमें से एक रियासत थी लक्षद्वीप. लक्षद्वीप एक 36 द्वीपों समूह है जो भारत के पश्चिमी तट से लगभग 300 किलोमीटर दूर स्थित है. द्वीप की आबादी ज्यादातर मुस्लिम है. विभाजन के समय, पाकिस्तान ने लक्षद्वीप पर कब्जा करने की कोशिश की.
दूरदराज होने की वजह से लक्षद्वीप पर दोनों में से किसी देश का ध्यान तुरंत नहीं गया था. दोनों अपने-अपने मेनलैंड की रियासतों को अपने साथ मिलाने की कोशिश में लगे थे. सरदार पटेल ने साढ़े 5 सौ के करीब रियासतों को भारत में मिला लिया था. 1947 में के अगस्त महीने में दोनों ही देशों का ध्यान लक्षद्वीप पर गया. व्यापार, व्यावसाय और सुरक्षा के लिहाज से भी ये द्वीप समूह भारत के लिए जरूरी था. Lakshadweep Video: भारत का स्वर्ग है लक्षद्वीप, पानी के नीचे बसी है अलग दुनिया, दिल छू लेगी यहां की खूबसूरती
पाकिस्तान ने सोचा कि लक्षद्वीप में मुस्लि रहते है, तो क्यों न लक्षद्वीप पर कब्जा कर लिया जाए. वहीं भारत में सरदार पटेल भी एक्टिव हो चुके थे. उन्होंने दक्षिणी रियासत के मुदालियर भाइयों से कहा कि वे सेना लेकर फटाफट लक्षद्वीप पहुंचे. रामास्वामी और लक्ष्मणस्वामी मुदालियर आईलैंड पहुंचे और उन्होंने तिरंगा फहकार ऐलान कर दिया कि अब ये भारत का हिस्सा है.
वहीं भारत के पहुंचने के कुछ देर बाद ही पाकिस्तानी युद्धपोत भी लक्षद्वीप आ धमका, लेकिन भारतीय झंडे को फहरता देख वे बेरंग होकर वापस लौट गए. इस तरह से लक्काद्वीप, मिनिकॉय और अमीनदीवी द्वीपसमूह भी भारत से जुड़ गया. भारत का झंडा फहराने के बाद साल 1956 में इसे केंद्र शासिक राज्य का दर्जा मिला. साल 1971 में इन आइलैंड्स का सम्मिलित नाम पड़ा- लक्षद्वीप.
लक्षद्वीप हमारे देश की सुरक्षा के लिहाज से काफी अहम है. यहां से दूर-दूर तक के जहाजों पर नजर रखी जा सकती है. चीन के बढ़ते समुद्री दबदबे के बीच भारत लक्षद्वीप में मजबूत बेस तैयार कर रहा है ताकि समुद्र में हो रही एक्टिविटी पर नजर रखी जा सके.
लक्षद्वीप भले ही भारत का हिस्सा है, लेकिन यहां जाने के लिए भारतीयों को भी परमिट की जरूरत होती है. ऐसा वहां मौजूद आदिवासी समूहों की सुरक्षा और उनके कल्चर को बचाए रखने के लिए किया जा रहा है.