नेपाल के प्रधानमंत्री खड़ग प्रसाद शर्मा ओली चार दिन के दौरे पर चीन में हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद यह उनका पहला द्विपक्षीय दौरा है. परंपरा से हटकर, उन्होंने भारत के बजाय चीन को अपनी पहली मंजिल चुना.ओली जुलाई में तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं. आमतौर पर नेपाल का प्रधानमंत्री सबसे पहले नई दिल्ली का दौरा करता रहा है. लेकिन ओली ने इस बार बीजिंग जाना चुना. हालांकि 2008 में प्रधानमंत्री बनने के बाद कमल दहल प्रचंड भी भारत से पहले चीन गए थे.
बीजिंग में ओली चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली च्यांग से मुलाकात करेंगे. नेपाल के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सुवंगा प्राजुली ने बताया कि ओली सोमवार शाम बीजिंग पहुंचे.
ओली हमेशा से भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते रहे हैं. हालांकि, उन्होंने भारत पर निर्भरता कम करने के लिए चीन का रुख ज्यादा किया है. चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि दोनों देशों के नेता पारंपरिक दोस्ती को गहरा करने, बेल्ट एंड रोड सहयोग बढ़ाने और आपसी हित के मुद्दों पर चर्चा करेंगे.
बैठक में पिछली परियोजनाओं की वित्तीय संरचना पर चर्चा होगी. इनमें पोखरा के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण भी शामिल है. इस परियोजना में इस्तेमाल हुए चीनी कर्ज को अनुदान में बदलने पर बातचीत हो सकती है.
ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल के उप सचिव प्रदीप ज्ञावाली ने कहा कि कोविड और नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता की वजह से धीमी पड़ी परियोजनाओं को फिर से शुरू करना भी एजेंडे में होगा.
दौरे से पहले नेपाल सरकार ने चीन से दो करोड़ डॉलर की मदद स्वीकार कर ली. यह घोषणा रविवार को सूचना और संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने की. मीडिया से बातचीत में गुरुंग ने बताया कि मंत्रिपरिषद की बैठक ने प्रधानमंत्री के दौरे की सफलता की कामना की और अनुदान सहायता के तहत प्रस्तावित परियोजनाओं को स्वीकृति दी. इसके अलावा, नेपाल सरकार ने 30 करोड़ चीनी युआन यानी लगभग 41.3 करोड़ डॉलर की अतिरिक्त परियोजनाओं को भी मंजूरी दी है.
प्रधानमंत्री ओली के चीन दौरे के दौरान कई बड़ी परियोजनाओं पर चर्चा होगी. इनमें तोखा-खहरे टनल रोड निर्माण, मस्टैंग के कोरला बॉर्डर पॉइंट पर स्पेशल इकोनॉमिक जोन का निर्माण, संखुवासभा के किमाथांका में सड़क निर्माण और चितवन कैंसर अस्पताल में बोन मैरो सेवा शुरू करना आदि शामिल हैं. गुरुंग ने कहा कि इन परियोजनाओं से नेपाल के बुनियादी ढांचे और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा.
भारत और चीन के बीच संतुलन
दक्षिण एशिया में नेपाल की स्थिति भारत और चीन दोनों के लिए अहम है. हालांकि, व्यापार के मामले में भारत का दबदबा ज्यादा है. 2023-24 में नेपाल के कुल व्यापार में भारत का हिस्सा 65 फीसदी था, जबकि चीन का 15 फीसदी. विदेशी निवेश में भी भारत आगे है. पिछले साल भारत ने नेपाल में 75 करोड़ डॉलर से ज्यादा का निवेश किया, जबकि चीन ने 25 करोड़ डॉलर का.
चीन के प्रभाव वाले क्षेत्रों में नेपाल का इलेक्ट्रिक वाहन बाजार प्रमुख है. यहां चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 70 फीसदी है. नेपाली मीडिया के मुताबिक, नई दिल्ली से औपचारिक निमंत्रण न मिलने की वजह से ओली ने चीन को अपना पहला गंतव्य चुना.
विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल को अपने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देनी चाहिए. काठमांडु स्थित थिंक टैंक आईआईडीएस के अखिलेश उपाध्याय ने कहा, "नेपाल एक छोटा देश है. उसे अपनी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए बड़े देशों की प्रतिद्वंद्विता से बचना चाहिए.”
बड़ा कूटनीतिक प्रभाव
ओली का यह दौरा नेपाल-चीन संबंधों के लिए नया अध्याय हो सकता है. यह दक्षिण एशिया में चीन की बढ़ती भूमिका को भी दर्शाता है. इस दौरे के नतीजे भारत और चीन के साथ नेपाल के संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं, खासकर बुनियादी ढांचे, व्यापार और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में.
चीन और नेपाल के बीच बढ़ते आर्थिक और रणनीतिक सहयोग के संकेत इस दौरे के साथ और स्पष्ट हो रहे हैं. प्रधानमंत्री ओली के नेतृत्व में नेपाल ने बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) के तहत चीन के साथ गहरे संबंध बनाए हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि ओली का यह दौरा नेपाल के दीर्घकालिक आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा. इन परियोजनाओं से न केवल नेपाल के विकास को रफ्तार मिलेगी बल्कि यह भारत और चीन के बीच नेपाल की कूटनीति के संतुलन का भी प्रतीक होगा.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)