Monkeypox: 11 देशों में फैला मंकीपॉक्स- समझिए क्या है यह वायरस, इसके लक्षण और इलाज
मंकीपॉक्स (Photo Credits: ANI)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 11 देशों में मंकीपॉक्स (Monkeypox) के 80 मामलों की पुष्टि की है. यूरोप के कई देशों में मंकीपॉक्स के मामले लगातार बढ़ रहे है. ऑस्ट्रेलिया में भी इसके दो मामले दर्ज किए गए हैं. हालांकि दोनों संक्रमित पुरुष यूरोप से ऑस्ट्रेलिया लौटे थे. डब्ल्यूएचओ (WHO) ने कहा कि वह इस वायरस को और समझने के लिए अभी काम करा रहा है. इजराइल में मंकीपॉक्स का पहला संदिग्ध मामला मिला

हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी जारी की है कि ब्रिटेन में मंकीपॉक्स वायरस के मामले बढ़ सकते हैं. ब्रिटेन में संक्रमण का मौजूदा प्रसार अफ्रीका के बाहर सबसे ज्यादा है और यह यूरोप के कई देशों, उत्तरी अमेरिका तथा अब ऑस्ट्रेलिया में फैल गया है. उन पुरुषों में संक्रमण के कई मामले आ रहे हैं जो पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाते हैं.

पुणे के डॉ ईश्वर गिलाडा (Dr Ishwar Gilada) ने बताया कि मंकीपॉक्स एचआईवी की तरह जूनोटिक (zoonotic) है जो शुरू में बंदर वायरस के रूप में आया था जिसे सिमियन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (Simian Immunodeficiency Virus) कहा जाता है. ऐसे वायरस जानवरों में फैलते हैं लेकिन इंसानों तक पहुंच जाते हैं. पिछले 40 वर्षों में सभी संक्रमण वायरल रहे हैं. हमारे पास बहुत शक्तिशाली एंटी-वायरल नहीं है. इस बीच ये वायरल म्युटेट हो रहे हैं.

मंकीपॉक्स को लेकर उन्होंने कहा कि इस बात को कोई नहीं कह सकता कि एक वायरस कब महामारी बन जाएगा. खासकर कोविड-19 के बाद, जो एक छोटे से शहर से पूरी दुनिया में फ़ैल गया. जिस वजह से दो साल तक दुनिया रूक गई. लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है. फिलहाल और स्टडी करने की आवश्यकता है.

मंकीपॉक्स क्या है?

मंकीपॉक्स एक ऑर्थोपॉक्सवायरस से होता है, जो चेचक यानी स्मॉलपॉक्स से संबद्ध वायरस है. चेचक केवल मनुष्यों को संक्रमित करता है लेकिन मंकीपॉक्स एक पशु वायरस है जो किसी बंदर या अन्य जानवर द्वारा काटे जाने या खरोंच मारने पर मनुष्यों को भी संक्रमित कर सकता है.

मंकीपॉक्स से संक्रमण का पहला मामला 1970 में कांगो गणराज्य में दर्ज किया गया था. यह फिर से उबरने वाली बीमारी है जो 2017 के बाद से नाइजीरिया और कांगो में बड़े पैमाने पर फैल रही है.

मंकीपॉक्स कैसे फैलता है?

यह श्वसन संबंधी वायरस है और संपर्क में आए बिना भी मनुष्यों में फैल सकता है. हालांकि, आम तौर पर यह मनुष्यों के बीच आसानी से नहीं फैलता और केवल करीबी संपर्क के मामलों में ही फैलता है. अध्ययनों में पाया गया है कि मंकीपॉक्स से संक्रमित किसी व्यक्ति के संपर्क में आने वाले करीब तीन फीसदी लोग संक्रमित होंगे.

मंकीपॉक्स के लक्षण

इस संक्रमण की चपेट में आने के एक या दो हफ्ते बाद बुखार, सिर में दर्द, कोशिकाओं के छोटे या गोलाकार समूह में सूजन और हड्डियों में दर्द के लक्षणों के साथ संक्रमण फैलता है. इसमें आम तौर पर बुखार आने के एक से तीन दिनों में त्वचा पर दाने निकल आते हैं, खासतौर से चेहरे, हाथों और पैर पर.

संक्रमित की मौत का खतरा!

वायरस के दो प्रकार हैं, पहला जिसमें मृत्यु दर करीब एक प्रतिशत है और दूसरे में मृत्यु दर करीब 10 प्रतिशत है. ब्रिटेन में फैला संक्रमण कम गंभीर प्रकार का लगता है लेकिन एक प्रतिशत मृत्यु दर कोविड की तरह है, इसलिए यह एक चिंता का विषय है. बच्चों में यह अधिक गंभीर होता है.

सितंबर 2018 में ब्रिटेन के कॉर्नवॉल में एक नौसैन्य अड्डे में नाइजीरिया से आए एक व्यक्ति में मंकीपॉक्स का मामला सामने आया. इसके बाद ब्लैकपूल में नाइजीरिया से ही लौटे एक व्यक्ति में संक्रमण का पता चला तथा अस्पताल में एक नर्स भी संक्रमित हो गयी. नाइजीरिया में 2017 के बाद से मंकीपॉक्स के 500 से अधिक मामले आए हैं और आठ लोगों की मौत हो चुकी है.

मंकीपॉक्स ने बढ़ाई चिंता

वैज्ञानिक इस बात में उलझे हुए हैं कि पूर्व में दुर्लभ एक संक्रमण अब इतना सामान्य क्यों हो रहा है. चेचक से रक्षा करने वाले टीके मंकीपॉक्स से भी बचाव करते हैं. चेचक के उन्मूलन की घोषणा को 40 साल बीत गए हैं और ज्यादातर व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम 70 के दशक में ही बंद हो गए, इसलिए 50 वर्ष तक की आयु के कुछ ही लोगों ने टीका लगवा रखा है. टीका पांच से 20 साल या उससे अधिक समय तक प्रतिरक्षा देता है लेकिन हर साल करीब एक से दो प्रतिशत तक उसका असर कम हो सकता है.

वैक्सीन से रूकेगा प्रसार

मंकीपॉक्स के खिलाफ प्रभावी वैक्सीन उपलब्ध हैं. जबकि दूसरी और तीसरे पीढ़ी के चेचक के वैक्सीन वैक्सिनिया वायरस का इस्तेमाल करते हैं. वैक्सिनिया ऑर्थोपॉक्सवायरस है, जो चेचक तथा मंकीपॉक्स के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान करता है लेकिन कुछ लोगों में इसका गंभीर नकारात्मक असर हो सकता है खासतौर से कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में. मंकीपॉक्स के प्रसार के खिलाफ सबसे अच्छी रणनीति संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों की पहचान करना और उन्हें वैक्सीन लगाना है.