Monkey Fight in Agra: ताजमहल के शहर आगरा में बंदरों के दो समूहों के बीच भयंकर लड़ाई, दो लोगों की मौत
बंदर, (फोटो क्रेडिट्स: ANI)

ताज शहर के मध्य में बंदरों के दो समूहों के बीच एक भयंकर लड़ाई की वजह से लोगों की जान चली गई. घाटिया आज़म खान पुलिस चौकी (Ghatia Azam Khan police chowki) के शख्स ने बताया कि,' सत्संग गली में एक पुराने घर की मरम्मत चल रही थी.' मालिक और एक मजदूर एक दीवार को ध्वस्त करने के लिए उसके पास खड़े थे. तभी बंदरों की एक सेना अपने टेरिटोरियल हक़ के लिए पूरे इलाके में तोड़-फोड़ की और सोमवार शाम को क्षतिग्रस्त दीवार को गिरा दिया. इस घटना में मकान के मालिक और मजदूर मलबे नीचे दब गए. सिर पर गंभीर चोट लगने के कारण उन्हें बचाया नहीं जा सका. यह भी पढ़ें: ताजमहल में बंदरों का आतंक, फ्रांस की महिला व एक अन्य विदेशी पर्यटक को किया घायल

मृतक लक्ष्मण तुलसियानी सोने की वैल्युएशन का काम करते थे. उनका घर काफी पुराना है. इस्मिएँ तीन भाई रहते थे. घर की तीसरी मंजिल की छत और दिवार उन्होंने तुड़वा दी थी. एक जर्जर दीवार रह गई थी. सोमवार को मजदूर वी जर्जर दिवार गिरा रहे थे. घर के मालिक लक्ष्मण और एक मजदूर दूसरी मंजिल पर थे. तभी वहां लड़ते हुए 30-40 बंदर आए और उस जर्जर दीवार पर एक साथ बैठकर लड़ने लगे, जिससे दीवार गिर गई और मलबा दूसरी मंजिल पर जा गिरा. निचे खड़े घर के मालिक और मजदूर के सर पर गहरी चोट आई. घायलों को तुरंत जीजी नर्सिंग होम पहुंचाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका.

इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में आक्रोश है, उनका कहना है कि शहर में घूमने वाले बंदरों को रोकना चाहिए. इनकी वजह से खतरा बढ़ता जा रहा है, ये पहले भी हमला कर चुके हैं. आगरा के नागरिकों ने जिला प्रशासन से शहर में सिमियन उपद्रव को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने की अपील की है. आगरा नगर निगम के महापौर, नवीन जैन (Navin Jain) को शहर से वन क्षेत्रों में बंदरों को स्थानांतरित करने के लिए कहा गया है, क्योंकि कई घातक मामले सामने आए हैं. निगम ने कुछ साल पहले एक अभियान चलाया था, लेकिन पशु अधिकार समूहों ने इस अभ्यास को रोक दिया. स्थानीय लोग बड़े पैमाने पर बंदरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग करते हैं बंदरों ने पुराने शहर के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए जीना मुश्किल बना दिया है. यह भी पढ़ें: आगरा में लुटेरे बंदरों का आतंक, बैंक के अंदर से 2 लाख रुपयों से भरा बैग लेकर भागे

आगरा इन दिनों गोजातीय ( bovine), कैनाइन (canine) और सिमियन (simian) खतरे से डर रहा है. यहां तक कि पर्यटक भी इसके शिकार बन गए हैं. पिछले साल आगरा से 20 किलोमिट दूर रुनुकता गांव में (Runukta village) एक बन्दर ने मां की गोद से नवजात बच्चे को छिनकर उसकी हत्या कर दी थी, जिसके बाद इस इलाके में हाहाकार मच गया गया था. जिला अधिकारियों ने तब कई वादे किए थे लेकिन कुछ नहीं किया.

यमुना किनारा रोड के एक मंदिर के पुजारी, नंदन श्रोत्रिय (Nandan Shrotriya) ने कहा, "निर्वाचित प्रतिनिधियों ने समस्या की अनदेखी की है, लेकिन यह स्थिति वास्तव में भयावह है, क्योंकि नागरिक बंदरों के हमलों से लगातार भयभीत रहते हैं." इको-एक्टिविस्ट रंजन शर्मा ने आरोप लगाया कि हजारों हिंसक बंदर यमुना नदी के किनारे इस क्षेत्र में रहते हैं, क्योंकि कुछ आस्था में विश्वास करने वाले नियमित रूप से उन्हें केले और रोटी खिलाते हैं. पिछले अगस्त में एक स्थानीय एनजीओ 'सत्य मेव जयते' ने एक बंदर सम्मेलन आयोजित किया गया था. मुकेश जैन ने कहा, "हम नियमित रूप से अपने सुझावों के साथअधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं और यहां तक कि आर्थिक मदद करने के लिए एक प्रस्ताव भी दे रहे हैं, लेकिन कुछ अजीब कारणों से प्रशासन अपने पैर खींच रहा है," ट्रस्टी मुकेश जैन ने कहा.

कुछ बंदरों को वन क्षेत्रों में स्थानांतरित करने के लिए दो बार प्रयास किए गए, लेकिन हरित कार्यकर्ताओं (green activists) ने स्थानांतरण की प्रक्रिया को रोक दिया है. स्थिति गंभीर है. यहां सिमियन की आबादी 20 हजार से लगभग एक लाख हो चुकी है. विजय नगर कॉलोनी निवासी सुधीर गुप्ता ने कहा, "पुराने शहर के इलाकों में इनकी आबादी अधिक है, जहां छतें हैं. इसकी वजह से लोग छत की सुविधाओं का आनंद नहीं ले पा रहे हैं क्योंकि बंदर विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों पर हमला कर रहे हैं. "

मथुरा, वृंदावन से लेकर गोवर्धन और आगरा में बटेश्वर तक पूरा ब्रज मंडल सिमियन के खतरे में रह रहा है, ये भोजन छीनने या महिलाओं और बच्चों पर हमला करने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाते हैं. इनकी आबादी अभूतपूर्व रूप से बढ़ गई है. हरित कार्यकर्ता श्रवण कुमार सिंह ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान वे अधिक हिंसक हो गए, क्योंकि खाद्य आपूर्ति को रोक दिया गया था.

"घटते जंगल और फल-फूल वाले वृक्ष कम लगाए जाने से समस्या बढ़ गई है. आवश्यकता है कि वनों को विकसित किया जाए और सजावटी लोगों के बजाय अधिक फल देने वाले पेड़ लगाए जाएं. बंदर भी पारिस्थितिक तंत्र का एक हिस्सा हैं, उन्हें कोसने के बजाय हम उन्हें कुछ अधिकार प्रदान करें.