महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भले ही अदम्य साहस और जुझारूपन का परिचय देते हुए भारत को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई हो, देश ने उन्हें महात्मा की पदवी से सम्मानित किया हो, लेकिन यह भी सत्य है कि वे बचपन में बेहद डरपोक एवं बुद्धु थे. कम से कम उनके बचपन कहानियां तो यही कहती हैं. 2 अक्टूबर 1869 को जन्में मोहनदास करमचंद्र गांधी (महात्मा गांधी) की 152वीं जयंती पर आइये जानें गांधी जी के बालपन के रोचक किस्से. Gandhi Jayanti 2021 Wishes: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर इन हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Messages, GIF Greetings, Quotes के जरिए दें शुभकामनाएं.
बीड़ी के लिए नौकर की जेब से पैसे चुराने की आदत!
बचपन में गांधी जी को एक रिश्तेदार के साथ बीड़ी पीने की लत लग गई थी. पहले तो काकाजी बीड़ी पीकर फेंकते थे. गांधीजी उसे चुपचाप उठाकर रख लेते जैसे ही एकांत में मौका पाते उसी रिश्तेदार के साथ पीते थे. लेकिन जब जली बीड़ी नहीं मिलती तब वे घरेलू नौकर की जेब से पैसे चुराते और उससे बीड़ी खरीदकर पीते थे.
लेकिन कभी-कभी खरीदी बीड़ी को छिपाना मुश्किल हो जाता कि इसे छिपाएं कहां. उनके मित्र ने सलाह दिया कि लौकी की सूखी टहनी का टुकड़ा जला कर पीने से भी बीड़ी जैसा आनंद मिलता है. लेकिन गांधी जी को लौकी की टहनी में बीड़ी जैसा संतोष नहीं प्राप्त हुआ.
शर्मीले और शांत प्रकृति के
गांधी जी जब सात साल के थे, वे पिताजी के साथ पोरबंदर से राजकोट आ गये थे. उनका एडमिशन राजकोट की ग्रामशाला में करवाया गया था. वे पढ़ाई में औसत थे. यहीं उन्होंने हाईस्कूल पूरा किया. वह बचपन से शांत एवं शर्मीले स्वभाव के थे.
स्कूल में किसी से बात करना उन्हें पसंद नहीं था. जैसे ही स्कूल की घंटी बजती, वे क्लास में प्रवेश करते थे, और जैसे ही छुट्टी की घंटी बजती, सबसे पहले वही क्लास रूम से बाहर निकलते और घर पहुंच जाते. इसीलिए कोई मित्र नहीं था. कहते हैं कि दोस्त नहीं बनाने की मुख्य वजह यही थी कि उन्हें लगता था कि कोई उनका मजाक उड़ायेगा, जो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा.
भूतों से बहुत डरते थे गांधी जी!
गांधी जी बचपन में भूतों से बहुत डरते थे. रात होने के बाद वे बाहर नहीं निकलते थे. उन्हें लगता था कि जैसे ही वे बाहर निकलेंगे, कोने में छिपा भूत उन पर चढ़ जायेगा. एक दिन उन्हें दूसरे कमरे में जाना था, लेकिन अंधेरा होने से वे डर रहे थे. काफी समझाने-बुझाने पर वे निकले, लेकिन फिर वापस चले गये.
पास खड़ी रंभा दाई ने पूछा, -क्या बात है. गांधी जी ने उसे बताया कि मुझे बगल के कमरे में जाना है, पर भूत से डर लग रहा है. रंभा ने उनके प्यार से समझाया, बेटा राम का नाम लो, भूत भाग जायेगा, गांधी जी राम-राम जपते गये और काम करके वापस आ गये. कहते हैं कि इसके बाद गांधी जी ने शब्द को एक मंत्र मान लिया था.
अध्यापक ने गांधी जी को बूट से क्यों ठोकर मारा
गांधी जी की आत्मकथा में उल्लेखित है कि एक बार उनके विद्यालय में शहर के शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर दौरे पर आये. उन्होंने छात्रों को अंग्रेजी के पांच शब्द लिखने के लिए कहा, गांधी जी ने एक शब्द की स्पेलिंग गलत लिखी, तब अध्यापक ने गांधी जी को बूट की नोक मारते हुए इशारा किया कि वह बगल वाले का देखकर दुरुस्त करे.
अध्यापक के इशारे का गांधी जी ने यह अर्थ लगाया कि वे अगल-बगल देखने से मना रहे हैं. परिणाम यह हुआ कि सारे बच्चों के पांचों शब्द सही थे, सिवाय गांधी जी के. अध्यापक ने बस इतना कहा कि तुम बुद्धु हो.
श्रवण कुमार की मातृ-पितृ भक्ति देख द्रवित हो उठे थे गांधी
बचपन में गांधी जी को स्कूली पुस्तकें पढ़ना पसंद नहीं था. अध्यापक पुस्तक पढ़वाते तो वे उसे बेमन से पढ़ते, लेकिन एक दिन पिताजी एक पुस्तक उन्हें दिखी, जो श्रवण कुमार की पितृभक्ति की मर्मातंक कहानी थी. यह कहानी उन्हें इतनी भाई कि पुस्तक पूरी करके ही वे उठे.
श्रवण कुमार की मातृ-पितृ भक्ति से वे बहुत प्रभावित हुए थे. उन्हीं दिनों गांधी जी को बायस्कोप में श्रवण कुमार की कहानी देखने को मिली, कि कैसे श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवर में बैठाकर तीर्थयात्रा पर निकला, मगर दशरथ की तीर से उसकी मृत्यु हो जाती है, तब उनके माता-पिता के रुदन ने गांधी जी को व्यथित कर दिया था.