Maharishi Dayanand Jayanti 2023: पीएम मोदी रविवार, 12 फरवरी 2023 को सुबह 11 बजे इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम, दिल्ली में महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के उपलक्ष्य में सालभर चलने वाले समारोह का उद्घाटन करेंगे. इस अवसर पर पीएम मोदी सभा को भी संबोधित करेंगे. बता दें, इसकी जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा साझा की गई है.
देश-दुनिया के इतिहास में 12 फरवरी की तारीख बेहद अहम
देश-दुनिया के इतिहास में 12 फरवरी की तारीख अहम है. इस तारीख को सारी दुनिया स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती के रूप में मनाती है. महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को हुआ था. उन्होंने समाज सुधारक के बतौर तत्कालीन प्रचलित सामाजिक असमानताओं से लड़ने के लिए 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी. आर्य समाज ने सामाजिक सुधारों और शिक्षा पर जोर देकर देश की सांस्कृतिक और सामाजिक जागृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. Yashoda Jayanti 2023 Wishes: यशोदा जयंती की इन हिंदी WhatsApp Messages, Facebook Greetings, Quotes, Photos के जरिए दें शुभकामनाएं
समाज सुधारकों और महत्वपूर्ण हस्तियों को सम्मानित करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध
उल्लेखनीय है कि भारत सरकार समाज सुधारकों और महत्वपूर्ण व्यक्तियों, विशेष रूप से उन लोगों का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिनके योगदान को अभी तक अखिल भारतीय स्तर पर उनका देय नहीं दिया गया है. भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस घोषित करने से लेकर श्री अरबिंदो की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने तक, पीएम मोदी इस तरह की बड़ी पहल का नेतृत्व कर रहे हैं. इसी कड़ी में यह सालभर चलने वाले समारोह मनाया जाएगा.
स्वामी दयानंद सरस्वती से जुड़ी अहम जानकारी
ऐसे में हमारे लिए स्वामी दयानंद सरस्वती के बारे में विस्तार से जानना भी बेहद दिलचस्प है. ज्ञात हो, स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म ’12 फरवरी, 1824′ को गुजरात के टंकरा में हुआ था. उनके पिता का नाम कृष्णजी लालजी तिवारी और मां का नाम यशोदाबाई था. उनके पिता कर-कलेक्टर होने के साथ ब्राह्मण परिवार के अमीर, समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे. दयानंद सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता. आगे चलकर वह संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए.
निंदा की परवाह किए बिना हिंदू समाज का कायाकल्प करना बनाया था अपना ध्येय
महर्षि दयानंद के हृदय में आदर्शवाद की उच्च भावना, यथार्थवादी मार्ग अपनाने की सहज प्रवृत्ति, मातृभूमि को नई दिशा देने का अदम्य उत्साह, धार्मिक-सामाजिक-आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से युगानुकूल चिन्तन करने की तीव्र इच्छा तथा भारतीय जनता में गौरवमय अतीत के प्रति निष्ठा जगाने की भावना थी. उन्होंने किसी के विरोध तथा निंदा की परवाह किए बिना हिंदू समाज का कायाकल्प करना अपना ध्येय बना लिया.
1875 में गिरगांव में की आर्यसमाज की स्थापना
इसी क्रम में स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में गिरगांव में आर्यसमाज की स्थापना की. आर्यसमाज के नियम और सिद्धांत प्राणिमात्र के कल्याण के लिए हैं. उन्होंने वेदों की सत्ता को सदैव सर्वोपरि माना. स्वामी जी ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य और संन्यास को अपने दर्शन प्रमुख आधार बनाया.
सबसे पहले 1876 में दिया स्वराज्य का नारा
उन्होंने ही सबसे पहले 1876 में स्वराज्य का नारा दिया. उसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया. सत्यार्थ प्रकाश के लेखन में उन्होंने भक्ति-ज्ञान के अतिरिक्त समाज के नैतिक उत्थान एवं समाज-सुधार पर भी जोर दिया. उन्होंने समाज की कपट वृत्ति, दंभ, क्रूरता, अनाचार, आडंबर एवं महिला अत्याचार की भर्त्सना करने में संकोच नहीं किया. उन्होंने धर्म के क्षेत्र में व्याप्त अंधविश्वास, कुरीतियों एवं ढकोसलों का विरोध किया. धर्म के वास्तविक स्वरूप को स्थापित किया.
1846 में सत्य की खोज मे निकल पड़े
अपनी छोटी बहन और चाचा की हैजे के कारण हुई मृत्यु से वे जीवन-मरण के अर्थ पर गहराई से सोचने लगे और वे 1846 में सत्य की खोज मे निकल पड़े. गुरु विरजानन्द के पास पहुंचे. गुरुवर ने उन्हें पाणिनी व्याकरण, पातंजलि-योगसूत्र तथा वेद-वेदांग का अध्ययन कराया. गुरु दक्षिणा में उन्होंने मांगा-विद्या को सफल कर दिखाओ, परोपकार करो, सत्य शास्त्रों का उद्धार करो, मत-मतांतरों की अविद्या को मिटाओ, वेद के प्रकाश से इस अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करो, वैदिक धर्म का आलोक सर्वत्र विकीर्ण करो. यही तुम्हारी गुरु दक्षिणा है.