लखनऊ: अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा पांच एकड़ जमीन देने के फैसले के बाद मस्जिद निर्माण के लिए यहां सरकारी जमीन की तलाश शुरू हो गई है. हलांकि अभी सरकारी रूप से इस मुद्दे पर बयान देने से अधिकारी बच रहे हैं. लेकिन मौखिक आदेश के तहत तहसील के लेखपालों को इस कार्य के लिए लगाया गया है. तहसील सूत्रों के अनुसार, पांच एकड़ सरकारी जमीन अच्छी लोकेशन पर मिल पाना बहुत मुश्किल है. इसी कारण भगवान राम की सबसे बड़ी प्रतिमा को लगाने के लिए मीरापुर मांझा गांव को चुना गया है. वहां के किसानों से बातचीत हो रही है। सॉलिड वेस्ट मैंनेंजमेंट बनाने के लिए नगर निगम को खुद जमीन चाहिए. ऐसे में अभी बहुत सारे पेंच नजर आ रहे हैं, जो कि पांच एकड़ जमीन की खरीदारी में रोड़ा अटका रहे हैं.
हालांकि निर्णय के बाद कुछ खुद सामने आकर जमीन देने की बात कह रहे हैं। मीर बाकी के रिश्तेदार रजी हसन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी से स्वीकार करने का आह्वान किया है. उन्होंने कहा कि मस्जिद के निर्माण के लिए यदि सरकार पहल करती है तो वह सहनवां में जमीन देने को तैयार हैं.उन्होंने कहा, "सबसे बड़ी अदालत से फैसला आने के बाद से बातों का वक्त खत्म हो गया है.अब कुछ करने का समय है. ऐसे में इस संवेदनशील मुद्दे के लिए सबको आगे आना चाहिए और मिल बैठकर यह मामला निपटा लेना चाहिए. " यह भी पढ़े: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला, अयोध्या में जश्न की इजाजत नहीं
एक निजी विद्यालय के चेयरमैन डॉ. संजय तिवारी भी अपनी जमीन देने के लिए सामने आए हैं. उनकी जमीन 14 कोसी परिक्रमा के नजदीक है.उनका कहना है कि यदि सरकार चाहे तो मस्जिद के लिए उनकी जमीन का इस्तेमाल कर सकती है. सोहावल तहसील के मुस्तफाबाद निवासी राजनारायण दास ने मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन दान देने का प्रस्ताव दिया है. उन्होंने बताया कि उनकी यह जमीन सोहावल तहसील के मुस्तफाबाद गांव में है. राजनारायण ने कहा कि "सरकार हमसे मुफ्त में जमीन लेकर मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंप दे। इसके लिए जल्द ही जिलाधिकारी से मिलकर जमीन दान करने का प्रस्ताव सौंपूंगा."
लखनऊ: अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा पांच एकड़ जमीन देने के फैसले के बाद मस्जिद निर्माण के लिए यहां सरकारी जमीन की तलाश शुरू हो गई है. हलांकि अभी सरकारी रूप से इस मुद्दे पर बयान देने से अधिकारी बच रहे हैं. लेकिन मौखिक आदेश के तहत तहसील के लेखपालों को इस कार्य के लिए लगाया गया है. तहसील सूत्रों के अनुसार, पांच एकड़ सरकारी जमीन अच्छी लोकेशन पर मिल पाना बहुत मुश्किल है. इसी कारण भगवान राम की सबसे बड़ी प्रतिमा को लगाने के लिए मीरापुर मांझा गांव को चुना गया है. वहां के किसानों से बातचीत हो रही है। सॉलिड वेस्ट मैंनेंजमेंट बनाने के लिए नगर निगम को खुद जमीन चाहिए. ऐसे में अभी बहुत सारे पेंच नजर आ रहे हैं, जो कि पांच एकड़ जमीन की खरीदारी में रोड़ा अटका रहे हैं.
हालांकि निर्णय के बाद कुछ खुद सामने आकर जमीन देने की बात कह रहे हैं। मीर बाकी के रिश्तेदार रजी हसन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी से स्वीकार करने का आह्वान किया है. उन्होंने कहा कि मस्जिद के निर्माण के लिए यदि सरकार पहल करती है तो वह सहनवां में जमीन देने को तैयार हैं.उन्होंने कहा, "सबसे बड़ी अदालत से फैसला आने के बाद से बातों का वक्त खत्म हो गया है.अब कुछ करने का समय है. ऐसे में इस संवेदनशील मुद्दे के लिए सबको आगे आना चाहिए और मिल बैठकर यह मामला निपटा लेना चाहिए. " यह भी पढ़े: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला, अयोध्या में जश्न की इजाजत नहीं
एक निजी विद्यालय के चेयरमैन डॉ. संजय तिवारी भी अपनी जमीन देने के लिए सामने आए हैं. उनकी जमीन 14 कोसी परिक्रमा के नजदीक है.उनका कहना है कि यदि सरकार चाहे तो मस्जिद के लिए उनकी जमीन का इस्तेमाल कर सकती है. सोहावल तहसील के मुस्तफाबाद निवासी राजनारायण दास ने मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन दान देने का प्रस्ताव दिया है. उन्होंने बताया कि उनकी यह जमीन सोहावल तहसील के मुस्तफाबाद गांव में है. राजनारायण ने कहा कि "सरकार हमसे मुफ्त में जमीन लेकर मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंप दे। इसके लिए जल्द ही जिलाधिकारी से मिलकर जमीन दान करने का प्रस्ताव सौंपूंगा."
अब सुन्नी वक्फ बोर्ड इसमें कानूनी राय लेने जा रहा है. इस जमीन पर मस्जिद बनाने के साथ ही वेलफेयर के क्या-क्या काम हो सकते हैं, इस पर फैसला कानूनी राय आने के बाद लिया जाएगा. अयोध्या के जिलाधिकारी अनुज झा ने आईएएनएस को बताया, "सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जमीन के बारे में किसी से किसी प्रकार का संपर्क नहीं किया गया है. क्योंकि जमीन सरकार को देनी है.सरकार इसके लिए गाइडलाइन तय करेगी, इसके बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा. "