कोच्चि, 16 फरवरी : केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने बुधवार को उन दस कानून स्नातकों को अंतरिम राहत दे दी, जिन्होंने बार काउंसिल ऑफ केरल (बीसीके) द्वारा निर्धारित 15,900 रुपये के नामांकन शुल्क को चुनौती दी थी. न्यायमूर्ति शाजी पी. चाली ने बार काउंसिल को कानून के तहत निर्धारित 750 रुपये के शुल्क के भुगतान के अधीन याचिकाकर्ताओं से आवेदन स्वीकार करने का निर्देश दिया, और इससे अधिक कुछ भी एकत्र नहीं करने का निर्देश दिया. मुझे लगता है कि यह उचित है कि बार काउंसिल को कानून के तहत निर्धारित 750 रुपये के अलावा किसी भी अतिरिक्त शुल्क के लिए जोर दिए बिना नामांकन के लिए आवेदन प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है. प्रतिवादी बार काउंसिल को याचिकाकर्ताओं से आवेदन प्राप्त करने का निर्देश होगा.
एनार्कुलम में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज के 2019-22 बैच के दस लॉ ग्रेजुएट याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए कहा कि बीसीके द्वारा निर्धारित नामांकन शुल्क उनके और कई अन्य लोगों के लिए एक बड़ी वित्तीय बाधा है. दलील में आरोप लगाया गया कि बीसीके अधिवक्ता अधिनियम द्वारा निर्धारित 750 रुपये से अधिक की राशि वसूलने के लिए नियम से परे काम कर रहा है. यह भी पढ़ें : एसएंडपी ने अडाणी ट्रांसमिशन के ईएसजी मूल्यांकन को ‘समीक्षा के तहत’ रखा
याचिका में कहा गया, कानून में स्पष्ट रूप से नामांकन शुल्क की राशि निर्धारित करने के बावजूद, प्रथम प्रतिवादी (केरल बार काउंसिल) वर्तमान में कानून स्नातकों से 15,900 रुपये (या अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के आवेदकों के मामले में 15,400 रुपये) की राशि ले रहा है. याचिकाकर्ताओं ने यह भी ध्यान दिलाया कि उच्च न्यायालय ने 2017 में कहा था कि राज्य बार काउंसिल अधिवक्ता अधिनियम के अनुसार 750 से अधिक नामांकन शुल्क तय नहीं कर सकती है और शीर्ष अदालत ने फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया था.