हिंदू धर्म में माताओं द्वारा अपने पुत्र की लंबी उम्र, सुरक्षा, अच्छी सेहत और सफलता के लिए रखे जाने वाले तमाम कठिन व्रतों में एक है जिउतिया व्रत. व्रती महिलाओं को लगभग 40 घंटे निर्जल व्रत रखना होता है. इस व्रत को जिवित्पुत्रिका के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी (नवरात्रि के दरमियान) के दिन जिउतिया व्रत रखा जाता है. अमूमन जिउतिया व्रत उत्तर एवं पूर्व भारत के कुछ हिस्सों में संपूर्ण श्रद्धा एवं आस्था के साथ रखा जाता है. इस वर्ष यह व्रत 14 सितंबर 2025, रविवार को रखा जाएगा. आइये जानते हैं इस कठिन व्रत का महात्म्य, मुहूर्त एवं पूजा विधान के बारे में..
जिउतिया व्रत का महात्म्य
जिउतिया (या जीवितपुत्रिका) व्रत एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र और उनके जीवन में आने वाले कष्टों एवं बाधाओं से रक्षा के लिए करती हैं, वस्तुतः यह व्रत माताओं के त्याग, तपस्या और ममता का अद्भुत उदाहरण है. यह पूरा व्रत महिलाएं बिना एक भी बूंद जल ग्रहण किये रखती हैं. इस दिन परंपरागत तरीके से ‘जीवित्पुत्रिका’ देवी की पूजा की जाती है, जो संतान की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं. यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाता है, बल्कि परिवार और समाज में माताओं की भूमिका और उनके समर्पण को भी उजागर करता है. यह भी पढ़ें : Lunar Eclipse 2025: कब लग रहा है चंद्र ग्रहण? क्या यह भारत में दिखेगा? हां तो कब और कहां? साथ ही जानें इस दौरान क्या करें क्या न करें!
जिउतिया व्रत शुभ मुहूर्त
आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी प्रारंभ: 05.04 AM (14 सितंबर 2025)
आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त: 03.06 AM (15 सितंबर 2025)
पारण कालः 15 सितंबर 2025 होगा.
व्रत एवं पूजा के नियम:
आश्विन मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाये जाने वाले इस व्रत में एक दिन पूर्व महिलाएं नहाय-खाय करती हैं (पवित्र एवं सादा भोजन) अगले पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं. बहुत सी जगहों पर सोहर भी गाने की परंपरा है. शुभ मुहुर्त के अनुरूप व्रती महिलाएं मिट्टी से बनी जिउतिया की मूर्ति की स्थापना करती हैं. इनके समक्ष चांदी की जिउतिया, पुष्प, अक्षत, पान, सुपारी, चंदन, हल्दी एवं रोली अर्पित करते हैं. निम्न मंत्र का जाप करते हैं,
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।
तत्पश्चात महिलाएं जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती हैं. अंत में भगवान विष्णु जी की आरती उतारते हैं अगले दिन मुहूर्त के अनुरूप स्नान-ध्यान कर ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करते हैं.
जीमूतवाहन और नागवंश की कथा:
प्राचीनकाल में गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन ने राज-पाट छोड़कर पिता की सेवा हेतु वन प्रस्थान कर गये. वहां उनकी मुलाकात एक वृद्ध नाग से हुई, जिसके पुत्र शंखचूड़ को पूर्व वचन के मुताबिक पक्षीराज गरुड़ को प्रतिदिन एक नाग को आहार के रूप में देना था. जीमूतवाहन ने जब सुना कि एक वृद्धा के इकलौते बेटे को गरूड़ का आहार बनना है, तो उन्होंने वृद्धा के पुत्र के प्राणों की रक्षा का वचन देते हुए स्वयं को गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत किया. गरुड़ उन्हें अपने पंजों में जकड़कर ले जा रहे थे, मगर अपने आहार के खामोश व्यवहार से वे हतप्रभ थे. उन्होंने अपने आहार को नीचे उतारा. तब जीमूतवाहन ने बताया कि एक वृद्धा के इकलौते बेटे की सुरक्षा स्वरूप उन्होंने खुद को समर्पित किया है. यह देखकर पक्षीराज गरुड़ प्रसन्न हुए, और उन्होंने वादा किया कि अब वह किसी भी नाग का भक्षण नहीं करेंगे.













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