HC on Suicide due to Love Failure: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम में असफलता के कारण आत्महत्या कर लेता है, तो उसकी प्रेमिका पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है. सिंगल-जज जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू ने कहा कि यदि कोई छात्र परीक्षा में खराब प्रदर्शन के कारण आत्महत्या करता है या कोई मुकदमा खारिज होने के कारण आत्महत्या कर लेता है, तो शिक्षक या संबंधित वकील को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. Kirpan on Flights: फ्लाइट में कृपाण ले जाने की परमिशन के लिए इंडिगो के पायलट ने किया हाई कोर्ट का रूख.
यदि कोई प्रेमी प्रेम में असफलता के कारण आत्महत्या करता है, तो महिलाम को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए नहीं ठहराया जा सकता है. कमजोर या दुर्बल मानसिकता वाले व्यक्ति द्वारा लिए गए गलत निर्णय के लिए, किसी अन्य व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.'' जस्टिस साहू ने 7 दिसंबर को पारित आदेश में कहा, आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए महिला को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
अदालत ने 24 वर्षीय महिला और उसके दो भाइयों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप को रद्द कर दिया. महिला और उसके भाईयों पर उसके पूर्व प्रेमी की आत्महत्या के लिए मामला दर्ज किया गया था. अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, मृतक की 23 जनवरी, 2023 को अपने घर में आत्महत्या से मृत्यु हो गई. उसने आवेदक-महिला और उसके भाइयों को दोषी ठहराते हुए एक सुसाइड नोट छोड़ा था.
अपने दो पेज के सुसाइड नोट में शख्स ने आरोप लगाया कि उसका महिला के साथ कम से कम 8 साल से प्रेम संबंध था. हालांकि, उसने उससे अपना रिश्ता तोड़ दिया और दूसरे आदमी से शादी कर ली. उसने आगे उसके भाइयों पर आरोप लगाया कि उन्होंने उसे अपनी बहन के साथ संबंध न रखने की धमकी दी थी और इसलिए, उसने यह कदम उठाया. व्यक्ति के चाचा द्वारा दायर एक शिकायत पर, राजनांदगांव पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया और जिला न्यायालय ने 13 अक्टूबर, 2023 को उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत आरोप तय किए.
तीनों ने इस आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की. जस्टिस साहू ने कहा कि महिला और अन्य पर मुकदमा चलाने के लिए रिकॉर्ड पर प्रथम दृष्टया कोई सामग्री उपलब्ध नहीं थी. सुसाइड नोट के संबंध में कोर्ट ने कहा कि धमकियों की प्रकृति इतनी चिंताजनक नहीं थी कि एक 'सामान्य व्यक्ति' आत्महत्या के बारे में सोचने पर मजबूर हो जाए.
कोर्ट ने कहा, "सरल शब्दों में कहें तो सुसाइड लेटर में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह लगे कि आवेदकों ने मृतक के आसपास ऐसा माहौल बना दिया था कि उसके लिए आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था."